Love one another as Jesus loves you. (hug self and turn from side to side)
Children’s Songbook
Try to show kindness in all that you do. (nod head up and down)
Be gentle and loving in deed and in thought, (hug self and turn from side to side)
For these are the things Jesus taught. (nod head up and down)
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में, बेबीलोनियन साम्राज्य ने यहूदिया साम्राज्य पर विजय प्राप्त की, जिसमें यरूशलेम भी शामिल था। कई यहूदियों को बंदी बना लिया गया और उन्हें बेबीलोन में स्थानांतरित होने के लिए मजबूर किया गया। निर्वासन के इस दौर को बेबीलोनियन निर्वासन या बेबीलोनियन एग्ज़ाइल के नाम से जाना जाता है। यहूदियों की राजनीतिक स्वाधीनता तो रोमंस ने 66 BC में ही खत्म कर दी थी, लेकिन ईसाई धर्म के वर्चस्व में आने के बाद रोम के पहले ईसाई सम्राट कोंसटेंटाइन ने यरुशलम को फिर से आबाद कर यहूदियों पर राज किया।
यहूदी निर्वासित कई दशकों तक बेबीलोन में रहे। विदेशी भूमि में होने के बावजूद, उन्होंने अपने समुदाय को बनाए रखा, अपनी धार्मिक प्रथाओं को सुरक्षित रखा और यहूदियों के रूप में अपनी पहचान बनाए रखने की कोशिश की। उन्होंने अपनी आस्था यानी अपने धर्म को छोड़ा नहीं और विश्वास को बनाए रखा।
हम जब खबरों में देख रहे हैं कि फ़्रांस जल रहा है उस से कुछ सप्ताह पहले ही हमने इसी सिविलाइजेशन स्टोरीज़ सीरीज़ के एक वीडियो में बताया था कि पुस्तकालय जलाना दुनिया को किसने सिखाया और वो ऐसा क्यों करते थे। आप इसे हमारे चैनल पर देख सकते हैं। आज हम बात करेंगे कि दुनिया को मोहब्बत बाँटने के नाम पर मार-काट करना किसने सिखाया था।
पिछले वीडियो में हमने बात की थी कि आख़िर यहूदियों के मंदिरों को कैसे ध्वस्त किया गया था और रोमन साम्राज्य को तबाह कर ईसाई धर्म के प्रसार के काम में कैसे पूरे यूरोप को ईसाइयों ने चर्च से ढक दिया था।
इसके बाद आख़िरकार बेबीलोन साम्राज्य जब पर्शियंस यानी फारसियों के हाथ आया, तब यहूदियों को अपनी मातृभूमि में लौटने की अनुमति दी गई। फ़ारसी राजा ने बेबीलोनियन निर्वासन को ख़त्म कर यरूशलम में यहूदियों के मंदिर को फिर बनाने के निर्देश दिये थे।
वो वहाँ की नदी किनारे अपनी मातृभूमि जियोन को याद कर उसके गीत गाते थे। जैसे एक गीत आपने सुना ही होगा जो कि कुछ ऐसा है-
By the rivers of Babylon, there we sat down
Yeah, we wept, when we remembered Zion
मोहब्बत बाँटने वालों ने पूरे यूरोप में किया था नरसंहार
इस टाइमलाइन में इस सबके बीच ईसाई धर्म अपनी ठीक ठाक जगह यूरोप में बना चुका था। ईसाई जब अपने धर्म का विस्तार कर रहे थे तो उनका नारा सिर्फ़ और सिर्फ़ समाज में मोहब्बत बाँटने का था। वो कहते थे –
Jesus Christ Showed Us How to Love Others
Love one another as Jesus loves you. (hug self and turn from side to side)
Try to show kindness in all that you do. (nod head up and down)
Be gentle and loving in deed and in thought, (hug self and turn from side to side)
For these are the things Jesus taught. (nod head up and down)
लेकिन सवाल ये था कि जिनकी ज़ुबान पर जीसस के नाम पर मोहब्बत बाँटने वाले गीत थे उन्होंने क्रूसेड का रास्ता क्यों चुना? लोगों को नफ़रत छोड़कर प्यार बाँटने के गीत गाने वालों ने पूरे यूरोप में तबाही क्यों मचाई और वो भी दूसरे धर्म वालों का नरसंहार कर के? इसी प्रक्रिया को हम जानते हैं क्रूसेड के नाम से, यानी ईसाइयों द्वारा लड़ा गया धर्म युद्ध, या सामान्य भाषा में कहें तो अल-जिहाद! आज आप ‘होली वॉर’ जैसे शब्द जो सुनते हैं वही क्रूसेड है। और इसके मूल में है सिर्फ़ और सिर्फ़ विस्तारवाद।
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CRUSADE: क्रूस युद्ध
क्रूसेड अथवा क्रूस युद्ध। क्रूस युद्ध अर्थात ख्रिस्त धर्म की रक्षा के लिए युद्ध। ख्रिस्त धर्म यानी ईसाई या क्रिश्चियन धर्म के लिए लड़ा गया युद्ध।
क्रूसेड यानी ईसाइयों का धर्मयुद्ध 11वीं और 13वीं शताब्दी के बीच पश्चिमी यूरोपीय ईसाइयों द्वारा शुरू किए गए सैन्य अभियानों की एक श्रृंखला थी। धर्मयुद्ध के सबसे बड़े कारणों में ईसाई धर्म को भौगौलिक एरिया में फैलाना और फिर ईसाई पवित्र स्थलों, विशेष रूप से यरूशलेम, जो 7वीं शताब्दी से मुस्लिम नियंत्रण में था, उसे फिर हासिल करना था। ईसाइयों के प्रमुख पोप और धार्मिक नेताओं ने घोषणा की थी कि वो ईसाई धर्म के लिए मुस्लिम शासन से यरूशलम की भूमि को मुक्त करेंगे।
दूसरी भाषा में कहें तो यूरोप के ईसाइयों ने फिलिस्तीन और उसकी राजधानी येरुशलम में स्थित ईसा की समाधि का गिरजाघर मुसलमानों से छीनने और अपने अधिकार में करने के प्रयास में जो युद्ध किए उसे ही धर्मयुद्ध, क्रूसेड कहा जाता है।
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ईसाइयों के क्रूसेड से कैसे अलग है महाभारत का धर्मयुद्ध
अब कुछ लोग कहते हैं कि महाभारत भी तो धर्मयुद्ध था, तो उसमें और क्रूसेड में सबसे बड़ा फ़र्क़ ये था कि महाभारत काल में जो युद्ध लड़ा गया था वह किसी धर्म या संप्रदाय के लिए नहीं बल्कि सत्य और न्याय की स्थापना के लिए लड़ा गया था। इसका उद्देश्य किसी नए धर्म की स्थापना कर दूसरे धर्मों का क्रूर दमन नहीं था और न ही उनके मंदिर तोड़ना।
तो क्रूसेड जब शुरू हुए तो ईसाइयों के चर्च पूरे यूरोप में छाने लगे, ईसाइयों को क्योंकि समाज में मोहब्बत फैलानी थी तो दूसरे साम्राज्यों के पुराने मंदिरों को तोड़ा गया। जैसे जैसे मोहब्बत बाँटने वाला ईसाई धर्म बढ़ने लगा, लोग आपस में लड़ने लगे। दूसरी ओर ये वो समय था जब इस्लाम भी विस्तारवाद की ओर बढ़ रहा था और उनकी नज़र भी अगर कहीं थी तो वो था यरूशलम। जैसा कि मैंने आपको बताया कि यरूशलम वो धरती है जो कई सदियों तक संघर्ष की गवाह रही, वजह ये थी कि दुनिया में सबसे अधिक जिन तीन धर्मों का तब वर्चस्व था उनके लिये कहीं ना कहीं से ये पवित्र और बेहद महत्वपूर्ण था। ये तीन धर्म थे इस्लाम, यहूदी और ईसाई धर्म।
इस्लाम के लिए ये जगह इसलिए पवित्र थी क्योंकि उनका मानना था कि इसी जगह से पैग़म्बर मोहम्मद जन्नत गए थे। यहीं पर अल अक्सा मस्जिद भी बनाई गई। जो इस्लाम की तीसरी सबसे पवित्र जगह मानी जाती है।
यहूदियों के लिए ये क्यों महत्वपूर्ण था इसके लिये सबसे पुराने पवित्र मंदिर की कहानी मैंने आपको बताई थी, जिसे रोमन साम्राज्य ने कई बार ध्वस्त किया लेकिन यहूदी उसे फिर बनाते रहे।
ईसाइयों के लिए इस जगह का महत्व इसलिए था क्योंकि यहाँ पर जीसस क्राइस्ट यानी ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था।
ईसाई पादरी पोप अर्बन का ग़ैर-ईसाइयों के विरुद्ध सन्देश
जब ईसाई अपने धर्म का विस्तार कर रहे थे और मोहब्बत फैला रहे थे उसी समय एक पादरी यानी पोप अर्बन का दौर आया। पोप अर्बन ने मोहब्बत का संदेश देते हुए ईसाइयों से कहा कि हमें आपस में नहीं लड़ना चाहिए, हम लोग समुद्र से घिरे हुए लोग हैं, ऐसा करो कि इनफ़ाइडल्स को मारो।यानी जो काफिर हैं, जो ईसाई धर्म से नहीं जुड़े हुए हैं।
ईसाइयों को मारकाट मचाने के लिए उसने संदेश दिया गया कि जो काफिर हैं, यानी जो ईसाई नहीं हैं, यानी जो यहूदी और मुस्लिम हैं, उनका पाप उनका काफिर होना है, और जब उन्हें निपटा दिया जाएगा तो उन्हें ईश्वर की प्राप्ति होगी, साथ ही ये भी कहा कि जो उन्हें निपटाएगा उनके भी पाप ख़त्म हो जाएँगे।
पोप अर्बन की इस एक घोषणा ने नींव रखी थी पहले क्रूसेड की
इस्लाम के प्रसार के साथ और अल अक्सा बनने से यहूदी यरूशलम जाने लगे। यरुशलम 640 ईस्वी के दशक में मुस्लिमों के नियन्त्रण में आ गया था, जिसके बाद यरूशलम एक मुस्लिम शहर बन गया जबकि यहूदी लोग इसे अपने मंदिर होने का दावा करते हैं। ‘डोम ऑफ़ द रॉक’ को यहूदी धर्म में भी सबसे पवित्र स्थल का दर्जा दिया गया है।
क्रूसेड में ईसाई और मुसलमान आपस में सदियों तक लड़ते रहे। उसी लड़ाई में मुस्लिमों ने यरूशलेम को जीत लिया। जीतने के बाद उन्होंने मस्जिद की देखभाल के लिए एक ट्रस्ट भी बनाया जिसे वक़्फ़ कहा गया।
702 ईसवीं में मुस्लिमों ने ‘मस्जिद अल-अक्सा’ का निर्माण कराया और तब से लेकर अब तक यहूदी इसी ‘मस्जिद अल-अक्सा’ की पश्चिमी दीवार को पूजते हैं जिसे वो 352 ईसा पूर्व में बनाए गए दूसरे यहूदी मंदिर का अवशेष मानते हैं। तभी से मस्जिद अल-अक्सा और यरूशलम यहूदी और मुसलमानों के लिए संघर्ष का मुद्दा रहा है।
राइनलैंड में यहूदियों का नरसंहार
जब विस्तारवादी ईसाई क्रूसेड के लिए निकले तो वो रास्ते में आने वाले सभी यहूदियों को मारते गये। जर्मनी में राइनलैंड में यहूदियों का नरसंहार किया गया, उनका मानना था कि जीसस को मारने में यहूदियों का हाथ था। ये क्रूसेड इतना हिंसक था कि इसमें चलने वाले ईसाई निकले तो घोड़ों से थे लेकिन यरूशलम पहुँचते पहुँचते जब इनके घोड़े मर गये तो ये गधों पर बैठकर वहाँ पहुँच पाए। इसके बाद वो यरूशलम पर क़ब्ज़ा करने ही वाले थे लेकिन तब तक मुस्लिमों ने इस पर क़ब्ज़ा कर लिया।
ये दौर था मुस्लिम लीडर सलाउद्दीन का जिसने यरूशलम पर क़ब्ज़ा करने आए ईसाइयों को बुरी तरह से पीट पीटकर वहाँ से भगाया और बताया कि मोहब्बत कैसे बरसाई जाती है।
सलाउद्दीन और यरूशलम
अब इंग्लैंड में जॉर्ज लायन हार्ट ने ईसाइयों के जिहाद की ज़िम्मेदारी उठाई। 1187 में, सलाउद्दीन ने यरूशलम को ईसाई क्रुसेडर्स से सफलतापूर्वक वापस ले लिया, ईसाइयों ने पहले धर्मयुद्ध में इस शहर पर नियंत्रण बना लिया था।
यरूशलम के इस पतन ने इंग्लैंड के शासक रिचर्ड द लायनहार्ट सहित यूरोपीय धार्मिक नेताओं को इस पवित्र शहर को फिर हासिल करने के लिए प्रेरित किया और फिर हुआ तीसरा क्रूसेड। लेकिन वहाँ सलाउद्दीन था, जिसकी छवि एक महान नायक की थी, सलाउद्दीन के दौर में हुए युद्धों ने जहां यहूदियों को तितर बितर कर दिया, वहीं ईसाइयों के लिए भी कोई जगह नहीं बची।
सलाउद्दीन के बारे में बताते हैं कि उसकी छवि करिश्माई थी, उसने सभी बड़े लड़ाकों को अपने साथ ले लिया था। यरूशलम के लिए उसने इजिप्ट, अरब, सीरिया को साथ कर लिया और ईसाइयों को जब चाहा पीटता रहा।
अब लायन हार्ट ने रणनीति बदली और उसके नेतृत्व में ईसाइयों ने यरूशलम के बजाय इसके आस पास के इलाक़ों पर हमला शुरू कर दिया। वो हर बार तरह-तरह की बातें बनाकर सलाउद्दीन से सलाह जैसी परिस्थिति पर विचार करने लगा।
1189 में रिचर्ड सामने आया और उसने कहा कि वो क्रूसेड करेगा और अब समुद्र से करेगा, पूरे यूरोप को साथ लेकर। अब वो पूरे यूरोप को लेकर यरूशलम में घुसा लेकिन उसने सलाउद्दीन से संधि की बात कर ली। रिचर्ड होशियार था, उसने सोचा कि शहर को बर्बादी से बचाने के लिए ये फ़ैसला लेना ज़रूरी है। वो ये भी जानता था कि उसके हाथ यरूशलम अगर अभी आ भी जाता तो मुस्लिम उसे फिर छीन लेते।
उसने सलाउद्दीन के सामने शर्त रखी कि वो इस धरती पर ईसाइयों को आने की इजाज़त दे दे और यहाँ पर मुस्लिम मान भी गये। लेकिन यरूशलम में शांति क़ायम नहीं हुई। इसके बाद आठ क्रूसेड हुए लेकिन ईसाई हारते रहे और मुस्लिम यहाँ प्रभुत्व बनाए रखे। मुस्लिमों ने सारे शहर ईसाइयों से वापस ले लिये थे।
क्रूसेड ख़त्म हो गया?
लेकिन क्या ईसाइयों का ये धर्म युद्ध ख़त्म हो गया था? अगर ये ख़त्म हो गया था तो फिर जो हिटलर ने जर्मनी में लिए वो क्या था? सेकंड वर्ल्ड वॉर? ईसाइयों के क्रूसेड के बाद कुछ सदियों तक इस्लाम ने मानचित्र पर अपना साम्राज्य बनाया लेकिन फिर आप देखिए कि अंग्रेजों ने किस तरह से इन जगहों को निशाना बनाना शुरू किया। जो सद्दाम हुसैन को मार दिया गया वो क्रूसेड नहीं था तो फिर क्या था?
तो जब हम बात करते हैं नरसंहार की और जिहाद की और यहूदियों के प्रति हिंसा की, जिसे कि हम फासीवाद का नाम देते हैं, तो हिटलर ने जर्मनी में यहूदियों के साथ जो किया वो तो ईसाई कई साल पहले कर चुके थे।
यानी हिटलर ने वही किया जो उनके पूर्वज किया करते थे, यहूदियों पर अत्याचार, उन्हें मारना, इसमें नया क्या था? यानी ईसाइयों ने जिन देशों पर हमला किया क्या वो क्रूसेड से अलग थे?
ये आज भी हर देश में मोहब्बत बाँटते नज़र आते हैं। इनके तरीक़े अब बदलने लगे हैं, चाहे मिडल ईस्ट में अमेरिका के हमले हों या फिर भारत में मोहब्बत बाँटने की नौटंकी, क्या आपको नहीं लगता कि ये भी उसी क्रूसेड का हिस्सा हैं? क्या उन आठ क्रूसेड की मोहब्बत को आप लोग भूल गये हैं जो एक बार फिरसे मोहब्बत बाँटने वालों की बातों पर आप यक़ीन करना चाहते हैं? क्या क्रूसेड करने वालों ने जीसस के मोहब्बत फैलाने की बात पर अमल किया?
क्रूसेड के नुक़सान देखें तो
- ये धरती कई सालों तक रक्तपात से जूझती रही
- यूरोप में अस्थिरता का दौर बना रहा
- यरूशलम की छीनाझपटी में हर वक्त तबाही
- यहूदियों का निर्वासन इस क्रूसेड की सबसे बड़ी त्रासदी कही जा सकती है
- एक और बात ये कि धर्म के नाम पर लोगों को मारना, नरसंहार करना और ज़मीन पर क़ब्ज़ा करना किसी और धर्म ने नहीं सिखाया बल्कि इन्हीं ईसाई क्रूसेडर्स ने सिखाया।
क्रूसेड के फ़ायदे अगर गिने जाएं तो
- ईसाइयों की बर्बरता पूरे विश्व के सामने आ गई।
- जब ईसाईयों ने यरूशलम के लिए प्रवास किया तो इस से कई नए समुदाय आपस में मिले
- इन यात्राओं से एक दूसरे के भौगोलिक इलाके का ज्ञान, वहां की संस्कृति से भी लोग एक दूसरे से परिचित हुए
- इन यात्राओं से लोगों अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ा। लोग व्यापर और अर्थ के नए तरीके सीखने लगे थे
- जहाँ सलाउद्दीन ने ईसाईयों को जमकर सबक सिखाया। वहीं इस्लाम इसके बाद मानचित्र पर फैलने लगा मगर एक दौर 19वीं सदी के बाद फिर ऐसा आया जहाँ ईसाई फिर से मानचित्र पर अपना राज स्थापित करने लगे। एशिया के कई देशों में ईसाईयों ने व्यापार के नाम पर अपना कब्ज़ा स्थापित किया और इस्लाम के शासन का अंत किया। भारत में इस दौरान मुग़ल सल्तनत को ख़त्म किया गया जबकि ब्रिटेन में चीन के राजवंश को अंग्रेजों ने अपने अधिकार में ले लिया और उसे अफीम युद्ध में झोंक कर उसकी संस्कृति को तबाह कर दिया था।
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