किसी भी राष्ट्र के वैश्विक शक्ति बन कर उभरने के लिए हथियारों का उत्पादन और उनका निर्यात एक महत्वपूर्ण बिंदु रहा है। प्रत्येक देश अपनी बढ़ती हुई आर्थिक शक्ति के साथ अपनी सामरिक शक्ति को भी बढ़ाता है। पिछले वर्ष फरवरी माह में आरंभ हुए रूस-यूक्रेन युद्ध ने विदेशी हथियारों पर निर्भरता के खतरों को प्रदर्शित किया है।
भारत पिछले कई दशकों से रक्षा उत्पादों का सबसे बड़ा आयातक रहा है लेकिन पिछले कुछ समय में अब एक निर्यातक के तौर पर भी उभरा है। रक्षा निर्यातों में सबसे अच्छा उदाहरण मिसाइल सिस्टम ब्रह्मोस का है जिसके वर्ष 2023 में 25 वर्ष पूरे हो रहे हैं।
ब्रह्मोस एयरोस्पेस की स्थापना 1998 में भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और रूस के NPO मशीनोस्ट्रोयेनिया के बीच एक समझौते के तहत हुआ था। इसके पश्चात ब्रह्मोस का पहला परीक्षण वर्ष 2001 में किया गया था। लगातार परीक्षणों में अच्छा परिणाम आने के पश्चात इसे भारत की तीनों सेनाओं में शामिल कर लिया गया है।
रूस पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए कड़े प्रतिबंधो के बाद भी भारत ब्रह्मोस परियोजना अप्रभावित रही है और इसमें उत्तरोत्तर भारतीय सामान का स्तर भी बढ़ा है। एक जानकारी के अनुसार, इस मिसाइल सिस्टम में भारतीय सामान अब 15% से बढ़ कर 70% हो गया है। वर्तमान में भारत ब्रह्मोस का आकार छोटा करने पर भी लगातार काम कर रहा है जिससे इसको वायु सेना के लड़ाकू विमानों के साथ लगाया जा सके।
ब्रह्मोस मिसाइलों ने भारत की रक्षा ताकत को मजबूत करने के साथ ही निर्यात के दरवाजे भी खोले हैं। हाल ही में वियतनाम के साथ ब्रह्मोस बेचने के सौदे से पहले पिछले वर्ष भारत ऐसा ही एक सौदा फिलीपीन्स के साथ कर चुका है।
भारत का बढ़ता रक्षा निर्यात
भारत का रक्षा निर्यात बीते कुछ वर्षों में लगातार बढ़ा है और वर्ष 2022-23 में 15,920 करोड़ रुपए के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है। इस वृद्धि के पीछे सबसे बड़ा योगदान आत्मनिर्भर भारत जैसी परियोजनाओं को जाता है। आने वाले समय में सरकार का लक्ष्य 1,75,000 करोड़ रुपए के रक्षा हार्डवेयर का निर्माण करना और 2024-25 तक रक्षा निर्यात को 35,000 करोड़ रुपए तक बढ़ाना है। घरेलू रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई हथियारों और उपकरणों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है।
भारत की शस्त्र व्यापार कूटनीति
सरकार अपनी हथियार निर्यातों को बढ़ाने के लिए विदेशों में सैन्य अधिकारियों की नियुक्तियों को बढ़ा रही है। केंद्र सरकार अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जिन्होंने भारतीय उपकरणों में रूचि दिखाई है।
इसके अतिरिक्त, भारत द्वारा निर्मित लडाकू विमान तेजस, हल्के हेलिकॉप्टर और अन्य सैन्य साजोसामान को ऐसे देशों को बेचने के लिए लगातार कोशिशें की जा रही हैं जो अमेरिका या पश्चिमी हथियारों के महंगे होने के कारण उन्हें नहीं खरीद सकते और रूस पर प्रतिबंध होने के कारण उससे भी खरीदने में अक्षम हैं।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण पिछले दिनों हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा तेजस विमान को मलेशिया, अर्जेंटीना और मिस्र को पेश करना रहा है। भारत अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों की आवश्यकताओं पर काफी ध्यान दे रहा है क्योंकि इन देशों की सैन्य ज़रूरतें कुछ-कुछ भारत जैसी ही हैं। साथ ही भारतीय उत्पाद सस्ते होने के कारण इनके बजट पर भी अधिक प्रभाव नहीं डालेंगे।
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भारत अफ्रीकी देशों को हथियारों और रक्षा प्रौद्योगिकी के एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता के रूप में खुद को स्थापित कर रहा है। वैसे वर्तमान में हथियारों की आपूर्ति में इसकी उपस्थिति बहुत कम है। उद्योग के अंदरूनी सूत्रों का अनुमान है कि भारत के वार्षिक रक्षा निर्यात का केवल 10-15% अफ्रीका जाता है। इसी कड़ी में पुणे में भारत-अफ्रीका आर्मी चीफ्स कॉन्क्लेव जैसे कार्यक्रमों में 31 अफ्रीकी देशों को भारतीय रक्षा उद्योग की क्षमताओं को दिखाया गया है। भारत वर्तमान में 80 से अधिक देशों को हथियारों का निर्यात करता है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका एक प्रमुख ग्राहक है।
रक्षा निर्यात का विविधीकरण
भारत ने ब्रह्मोस मिसाइल के अलावा कई अन्य हथियारों और रक्षा उपकरणों का निर्यात भी शुरू कर दिया है। यह विविधीकरण स्वदेशी विनिर्माण के लिए सरकार के प्रयासों का परिणाम है। भारत के रक्षा निर्यात में अब डोर्नियर-228 विमान, आर्टिलरी बंदूकें, रडार, बख्तरबंद वाहन, रॉकेट और लांचर, रडार, एचएफ रेडियो और तटीय निगरानी रडार, टारपीडो लोडिंग तंत्र, अलार्म निगरानी और नियंत्रण प्रणाली, रात में देखने वाले मोनोक्युलर दूरबीन, हल्के टॉरपीडो, फायर-कंट्रोल सिस्टम, जैसे हथियार शामिल हैं।
भविष्य की संभावनाएं और चुनौतियां
भारत के रक्षा निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, लेकिन इस गति को बनाए रखने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना होगा। राष्ट्र को अनुसंधान और विकास (R&D) में निवेश को बढ़ा कर जल निर्माण क्षमताओं को भी बढ़ाना होगा। इसके अतिरिक्त, भारत को ऐसे देशों से अपने सम्बन्ध लगातार मजबूत करने होंगे जहाँ वह अपने उत्पादों को बेचने की आशा रखता है।
भारत के रक्षा निर्यात वित्त वर्ष 2013-14 में 686 करोड़ रुपए से 2022-23 में 16,000 करोड़ रुपए तक पहुंच गए हैं। यह संकेत है कि भारत ने वैश्विक रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। देश के रक्षा उद्योग ने अपने उत्पादों की डिजाइन और विकास क्षमताओं को दुनिया के सामने प्रदर्शित किया है, जो 85 से अधिक देशों में निर्यात किए गए हैं।
वर्तमान में, लगभग 100 भारतीय फर्म रक्षा उत्पादों के निर्यात में सक्रिय हैं। सरकार ने इन रक्षा निर्यातों को बढ़ावा देने के लिए पिछले नौ वर्षों में कई नीतिगत पहल और सुधार किए हैं। इन प्रयासों ने निर्यात प्रक्रियाओं को सरल और इंडस्ट्री फ्रेंडली बनाया है, मंजूरियों में लगने वाली रूकावटों को कम किया है और व्यापार करने में आसानी को बढ़ाया है।
आत्मनिर्भर भारत की पहल ने देश में रक्षा उपकरणों के स्वदेशी डिजाइन, विकास और निर्माण को प्रोत्साहित किया है, जिससे लंबे समय में आयात पर देश की निर्भरता कम हुई है। यह विदेशी स्रोतों से रक्षा खरीद पर खर्च में कमी से स्पष्ट है, जिसके परिणामस्वरूप 2018-19 में कुल व्यय के 46% से कम होकर दिसम्बर 2022 में 36.7% हो गया है।
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