आजादी के बाद संविधान ने देशवासियों को गरिमामय जीवन जीने का आश्वासन दिया। गरिमामय जीवन में एक देश के सबसे पिछड़े तबके के व्यक्ति, बुजुर्ग या महिला को ये आश्वासन दिलाना भी था कि वह अपनी आर्थिक आजादी के बारे में सोच सकता है। उसका ये सपना साकार किया था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने। देश आज दुनिया के सबसे बड़े वित्तीय समावेशन कार्यक्रम, प्रधान मंत्री जन धन योजना के 10 साल पूरे होने का जश्न मना रहा है। वरना आपको याद ही होगा कि इसी देश में एक प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी थे, जो सरेआम यह कहने में झिझकते नहीं थे कि सरकार के 1 रुपये में से 15 पैसे लोगों तक पहुंचते हैं। लेकिन ये भारत बदल चुका है और यहाँ लाभार्थी को अपनी मेहनत और अपने अधिकार का एक एक पैसा सीधा उसके अकाउंट में मिलता है।
28 अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई, जनधन योजना देश के कारण हर घर तक बुनियादी बैंकिंग सेवाओं को पहुंचाया गया था। ये पहल इस कारण भी साहसिक थी क्योंकि कई कांग्रेसकालीन अर्थशास्त्रियों का मानना था कि ऐसा कोई विचार देश की अर्थव्यवथा पर ख़राब आसर डालेगा। रघुराम राजन ने कोविड लॉकडाउन के समय भी अपनी नकारात्मकता को दोहराते हुए कहा था कि देश में फंसे हुए कर्जा यानी NPA में ऐसे फैसलों से वृद्धि हो सकती है। चिदंबरम का कहना था कि जनधन योजना के खातों का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग के लिए किया गया होगा। आज यही चिदंबरम कह रहे हैं कि जनधन योजना ने लोगों को छोटी छोटी बचत के लिए प्रेरित किया। आज यही पिछले सब आंकलन धरे के धरे रह गए।
मोदी सरकार की जनधन योजना के 10 साल पूरे होने पर नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने उस पल को याद किया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके सामें ऐसी किसी योजना का विचार रखा था। सुब्रमण्यम उस समय पीएमओ में संयुक्त सचिव थे। उन्होंने बताया कि जन धन योजना की अवधारणा साल 2014 में पीएम मोदी के कार्यभार संभालने के तुरंत बाद अधिकारियों की शुरुआती ब्रीफिंग में ही सामने रख दी थी।
सुब्रमण्यम ने जन धन योजना के लॉन्च की घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा, “पीएम मोदी हर किसी से पूछते रहे ‘यह सुनिश्चित करने में कितना समय लगेगा कि हर घर को कवर किया जाएगा?’ जब प्रधानमंत्री ने आरबीआई गवर्नर से यह सवाल किया तो उन्होंने अनुमान लगाया कि इसमें चार साल लगेंगे। पीएमओ के कुछ अन्य अधिकारियों ने सुझाव दिया कि इसमें दो साल लग सकते हैं।”
वहीं, सुब्रमण्यम ने स्वयं कहा था कि इसमें कम से कम एक वर्ष लगेगा और उन्होंने यह भी आश्वासन दिया था कि उनके पूरे प्रयास इसके लिए समर्पित हैं। सभी लोग तब हैरान थे जब उसी वर्ष 15 अगस्त के दिन पीएम मोदी ने घोषणा की कि यह कार्य 26 जनवरी तक पूरा हो जाएगा। यानी 4 साल की परियोजना का अनुमान केवल 5 महीनों में बदल दिया गया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस सपने को पूरा करने के लिए सभी विभागों के अधिकारियों ने दिन-रात अथक परिश्रम किया। उनकी कड़ी मेहनत रंग लाई और ये लक्ष्य निर्धारित समय से पहले हासिल कर लिया गया। इसका परिणाम ये हुआ कि प्रधानमंत्री जनधन योजना के लॉन्च के पांच महीने के भीतर लगभग 12 करोड़ ऐसे व्यक्तियों को औपचारिक रूप से बैंकिंग प्रणाली का हिस्सा बनाने में सफलता मिली, जिनके पास पहले से बैंकिंग सुविधा नहीं थी।
आज इस योजना के प्रभावी होने के लगभग 10 साल बाद देश में कुल 53.13 करोड़ जन-धन खाते खोले जा चुके हैं, जिसमें लोगों का लाखों करोड़ रुपया जमा हैं।
यह योजना सबसे ज्यादा फायदेमंद साबित हुई समाज के सबसे वंचित वर्ग के लिए क्योंकि यह उन्हें क्रेडिट, बीमा, पेंशन और सब्सिडी सहित तमाम आवश्यक वित्तीय सेवाएं उपलब्ध करवा रहा है। इसके साथ ही अब गरीब से गरीब भी ज़ीरो बैलेंस वाले बैंक अकाउंट खोल सकता है।
लाभार्थियों को मिलने वाली योजनाओं के मामले में भी इस योजना ने बड़ा रोल निभाया क्योंकि इस योजना ने डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर यानी डीबीटी की सुविधा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इससे भ्रष्टाचार तो दूर हुआ ही, साथ ही लाभार्थियों को उनका पूरा हक़ भी मिला।