आप तीस्ता जावेद को जानते हैं? जाहिर तौर पर, जानते ही होंगे। वही, जिन्होंने गोधरा में 59 कारसेवकों के जिंदा जला देने के बाद हुए गुजरात दंगों को लेकर मोदी सरकार को कई दशकों तक घेरा। दंगों के बाद उन्होंने ‘सिटिजंस फॉर जस्टिस एंड पीस’ यानी सीजेपी बनाई थी।
वह भारत के वामपंथी-लिबरल वर्ग के लिए अल्पसंख्यकों के अधिकारों की लड़ाई लड़नेवाली हैं, एक्टिविस्ट हैं और भारत के गणतंत्र को बचाती हुई शहादत की तरफ बढ़ रही महानतम महिला हैं।
वैसे, सच पूछिए तो वह भी उसी गिरोह का हिस्सा हैैं, जो बातें तो बहुत अच्छी करता हैं, पर कर्म उनके सारे अंधेरगर्दी वाले होते हैं।
वह अभी 2 सितंबर को अंतरिम जमानत पर छूटी हैं। उन्हें 25 जून को गुजरात पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। इससे एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों में मारे गए अहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की थी। फिर गुजरात पुलिस ने मुंबई पहुंचकर तीस्ता से पहले पूछताछ की, फिर गिरफ्तार कर लिया था।
उन पर साल 2013 में अहमदाबाद की गुलमर्ग सोसायटी के 12 निवासियों ने जालसाजी का आरोप लगाते हुए उनकी जांच की मांग की थी। तीस्ता पर विदेश से आए पैसों के दुरुपयोग और धोखाधड़ी का आरोप है। सोसायटी के लोगों का आरोप था कि उन्होंने सोसायटी में एक म्यूजियम बनाने के लिए विदेशों से करीब डेढ़ करोड़ रुपये बटोरे, लेकिन उन पैसों का सही इस्तेमाल नहीं हुआ।
साल 2014 में क्राइम ब्रांच ने तीस्ता और उनके पति जावेद आनंद के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी. तीस्ता को गुजरात दंगों के मामलों में कथित रूप से बेगुनाह लोगों को फंसाने के लिए सबूत गढ़ने के मामले में गिरफ्तार किया गया था।
आइए, समझते हैं पूरा मामला
तीस्ता की गिरफ्तारी और उनकी जमानत दिखने में तो एक प्रक्रिया जैसी लगती है, लेकिन सबकुछ इतना सहज भी नहीं है।
2 सितंबर 2022 को अचानक ही तीस्ता जी को जमानत मिल जाने की और उनके गिरफ्तारी के पीछे की कुछ और बातें आपको हम बताते हैं। क्या यह हैरानी की बात नहीं । जिस तरह वो औचक तौर पर 25 जून को गिरफ्तार हो गई थीं।
आपको याद दिला दें कि फरवरी 2015 में जब गुजरात हाईकोर्ट ने तीस्ता और उनके पति जावेद को जमानत नहीं दी थी, तो उनके वकील कपिल सिब्बल ने भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू की अगुआई वाली बेंच में ‘ओरल प्ली’ देकर तीस्ता और उनके पति को खड़े पांव जमानत दिलवा दी थी।
तो फिर, ये माजरा क्या है? तो, कहानी इतनी सीधी और सपाट नहीं, जितनी नज़र आ रही है। दरअसल, ये सारा खेल नोबल पुरस्कार का है।
या इलाही, ये माजरा क्या है?
जैसे-जैसे नोबल शांति पुरस्कारों के लिए नाम चुनने की अंतिम तिथि नजदीक आ रही है, भारत का लिबरल-वामपंथी गिरोह बगटूट घोड़े की तरह हो गया है। यहीं, तीस्ता की कहानी समझने की जरूरत है।
PRIO यानी द पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट, ओस्लो ने भारत के पूर्व आइएएस और अब फ्रीलांस एक्टिविस्ट हर्ष मंदर, फेक न्यूज पेडलर मुहम्मद जुबैर और प्रतीक सिन्हा को नामांकित किया है।
हर्ष मंदर ने भी गुजरात दंगों को लेकर नरेंद्र मोदी के खिलाफ लगातार अभियान चलाया और सीएए विरोधी आंदोलनों के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने उनको कसकर डांट भी लगाई थी। हर्ष मंदर ने शाहीन बाग में जमा भीड़ को भड़काते हुए कहा था कि अब समुदाय-विशेष को तो देश के संसद और सर्वोच्च न्यायालय पर भी यकीन नहीं करना चाहिए। यही नहीं, वह यहां तक कह गए कि अगर सीएए और एनआरसी लागू हुए, तो वह मुस्लिम बन जाएंगे और वह भी अपने कागजात नहीं देंगे। हालाँकि, वह बताना भूल गए कि आइएएस बनने के समय उन्होंने कागज दिए थे या नहीं।
फैक्ट चेक के नाम पर फेक-न्यूज पेश करने वाले मुहम्मद जुबैर वही हैं, जिन्होंने नूपुर शर्मा के क्लिप को आधा-अधूरा काटकर पूरे देश, यहां तक कि विदेशों में भी आग लगा दी थी। उसके बाद ही राजस्थान में दरजी कन्हैयालाल की हत्या हुई थी और पूरे देश में ‘सर तन से जुदा’ के नारे लगाती भीड़ सड़कों पर उतरी थी। अभी दो ही दिन पहले भारत-पाक क्रिकेट मैच के दौरान उन्होंने अर्शदीप के खालिस्तानी होने के पाकिस्तानी-प्रोपैगैंडा को भी भड़काने में मदद की थी।
जुबैर और उनके साथी प्रतीक सिन्हा से तो तीस्ता को ज्यादा दिक्कत नहीं थी, लेकिन हर्ष मंदर भी उसी गुजरात-दंगे की झूठी कहानियां फैला कर मशहूर हुए थे, जिनपर तीस्ता अपना इकलौता हक समझती थीं। हर्ष मंदर पिछले कुछ महीनों से जर्मनी में बैठकर नोबल के लिए लाइजनिंग-लॉबिइंग भी कर रहे हैं।
तीस्ता को यही बात नहीं भायी और एक सोची-समझी योजना के तहत वह 25 जून से दो महीनों के लिए जेल चली गयीं। आखिर, यह शहादत कहीं तो काम आएगी।
उनको नोबल दिलाने के लिए बाकायदा 2015 से ही एक फेसबुक पेज भी चल रहा है और इनके जेल जाने के बाद सीपीजे पर बाकायदा मारिया रेस्सा का आरफा खानम शेरवानी ने इंटरव्यू भी लिया। मारिया रेस्सा फिलीपीनी-अमेरिकी पत्रकार हैं। उन्होंने न्यूज वेबसाइट ‘रैपलर’ की स्थापना की है और वह भी धोखाधड़ी और कर-चोरी के आरोपों से घिरी हुई हैं। उन्हें भी एक से अधिक बार गिरफ्तारी झेलनी पड़ी है। मारिया को 2021 का नोबल शांति पुरस्कार मिला है।
अस्तु, तीस्ता जावेद को अपने नंबर बढ़ाने थे, मोदीनीत केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा करना था और हर्ष मंदर से बढ़त लेनी थी, क्योंकि नोबल पीस प्राइज के नामांकन अब कुछ ही दिनों में बंद होने वाले हैं। इसके लिए पूरा वैश्विक इकोसिस्टम भी सक्रिय हो गया। देश की आरफा खानम से लेकर फिलीपीनी-अमेरिकी मारिया तक।
वैसे, नोबल शांति-पुरस्कार भी गजब हैं। यह एक पूरा जंगल लगाने वाले भारतीय जादव मोलाई पाएंग को भूलकर 13 साल की उस बालिका ग्रेटा थनबर्ग को वह पुरस्कार देता है, जिसकी एकमात्र कमाई ‘हाउ डेयर यू’ कहना है। यह उस मलाला को पुरस्कार देता है, जो प्रतिगामी सोच की हैं और भारत के कर्नाटक में हिजाब पर हुए विवाद में जबरन कूद जाती हैं। हिजाब को ‘माइ चॉइस’ कहती हैं। मारिया रेस्सा को 2021 में मिल ही चुका है।
तो, एक दुःखी विधवा जाकिया जाफरी के आँसुओं से अपना दामन तर करनेवाली तीस्ता जावेद को यह पुरस्कार न मिला तो आश्चर्य होगा। मिलने पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।