दामिनी फिल्म में सनी देओल का “तारीख पर तारीख” वाला डायलॉग काफी हिट हुआ था। तब देश की न्यायपालिका स्वतंत्र थी। स्वतंत्र थी तारीख़ पर तारीख़ देने के लिए, स्वतंत्र थी फ़ैसला टालने के लिए और स्वतंत्र थी यह कहने के लिए कि वह स्वतंत्र है। यह डायलॉग तब भले ही हिट हुआ था लेकिन अब पुराना हो चुका है, और झूठा भी।
क्योंकि अब न्यायपालिका कम स्वतंत्र कही जाती है। यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता में आयी कमी की ही महिमा है कि हाईकोर्ट से फैसला आने के दो ढाई घंटों के भीतर सुप्रीम कोर्ट के जज सुनवाई के लिए इक्क्ठे हो जाते हैं ताकि उस फ़ैसले को पलटा जा सके, वो भी तब जब सुप्रीम कोर्ट छुट्टी पर है और उसमें शनिवार और रविवार को सुनवाई नहीं होती।
लेकिन यह सुनवाई न होने का प्रावधान आम भारतीय के लिए है। ख़ास भारतीय के लिए ऐसा कुछ नहीं है। ख़ास भारतीय जब चाहे सुप्रीम कोर्ट खुलवा सकता है, अपना केस रख सकता है। ऐसा करने से आसमान नहीं टूटता।
क्या है पूरा मामला
तीस्ता सीतलवाड़ वही ख़ास भारतीय हैं जिसके लिये शनिवार को 4 बजे बंद हो जाने वाला सुप्रीम कोर्ट बिना सूचीबद्ध किये भी मामले की सुनवाई कर देता है। 1 बजे हाईकोर्ट ने तीस्ता सीतलवाड़ की बेल खारिज करता है और उन्हें सरेंडर करने को कहता है। शाम 6 बजे तीस्ता के वकील सुप्रीम कोर्ट पहुँचते हैं और दो जजों की बेंच मामले को सुनने के लिए तैयार हो जाती है। दो जजों की बेंच बेल को लेकर एकमत नहीं है इसलिए इस मामले को तीन जजों की बेंच को ट्रांसफर कर दिया जाता है।
रात 9 बजे से तीन जजों की बेंच ये मामला सुनती है और देर रात 12 बजे के बाद फैसला आता है कि वादी की अंतरिम बेल बढ़ाई जाएगी। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल को माननीय जजों द्वारा बार बार बताया भी जाता है कि अगर बेल मिल भी गई तो आसमान नहीं टूट पड़ेगा।
आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कौन सा आसमान टूट पड़ा था कि सारे नियमों को किनारे कर इस मामले के लिए न्यायपालिका को इतनी मेहनत करनी पड़ी?
आख़िर हाईकोर्ट ने जिनका बेल एप्लीकेशन रेजेक्ट किया था वह कोई छोटी अपराधी नहीं हैं। उन्होंने एक प्रदेश के चुने हुए मुख्यमंत्री और उनकी सरकार के ख़िलाफ़ एक से एक बड़ी साज़िशें की जिनकी पुष्टि उसी सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त SIT ने की थी जो सारे नियमों को ताक पर रखकर उन्हें अंतरिम रिलीफ देने के लिए खड़ा है।
कोर्ट ने क्या कहा
शनिवार को गुजरात हाई कोर्ट ने तीस्ता सीतलवाड़ की ज़मानत याचिका खारिज कर दी थी और उन्हें ‘तत्काल आत्मसमर्पण’ करने को कहा। इसी के बाद तीस्ता सीतलवाड़ ने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया कोर्ट ने तीस्ता को एक सप्ताह की अंतरिम राहत दी है और गुजरात हाई कोर्ट के दिए आदेश पर भी स्टे लगा दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा कि अगर हाई कोर्ट तीस्ता सीतलवाड़ को गिरफ्तारी से राहत प्रदान कर देता तो क्या आसमान गिर जाता? इस पर गुजरात सरकार की तरफ से पेश हुए सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जज साहब आसमान कभी नहीं गिरा करते।
कोर्ट ने कहा कि एक सामान्य अपराधी भी अंतरिम राहत का हकदार है तो तुषार मेहता ने कहा कि ये साधारण केस नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों किया या इसके कानूनी पहलू क्या हैं हम इस चर्चा में नहीं जाएंगे लेकिन आधी रात को सामान्य अपराधी बता कर जिन तीस्ता सीतलवाड़ का बचाव कर रहा था उनके बारे में आप और हम जितना जानते होंगे वो शायद कम ही होगा।
आइये देखते हैं शनिवार को गुजरात हाईकोर्ट ने सरेंडर करने का फैसला सुनाते हुए क्या कहा
गुजरात हाईकोर्ट ने 127 पेज के फैसले में जो भी कहा, इसे इन 6 बिंदुओं में आपको बताते हैं
- पहला, यदि तीस्ता सीतलवाड़ को जमानत मिल जाती है तो इससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण अधिक गहरा और व्यापक हो जाएगा
- हाईकोर्ट ने कहा, उन्होंने एक पत्रकार के रूप में कैरियर शुरू किया लेकिन गवाहों को फायदे के लिए इस्तेमाल कर पद्मश्री पुरस्कार और योजना आयोग के सदस्य का पद पा लिया
- तीसरा, अगर आज ऐसे व्यक्ति के प्रति कोई उदारता दिखाई जाती है तो भविष्य में कई लोग गैर कानूनी तरीके से अपना एजेंडा पूरा करने आ सकते हैं।
- इसके बाद हाईकोर्ट ने कहा, ऐसे लोग किसी विशेष राजनीतिक पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए जनता की धार्मिक भावनाओं के साथ खेल सकते हैं, लोगों को यह कहकर भड़काते हैं कि आप शोषित हैं और देश की संस्थाएं आपके साथ न्याय नहीं कर रही हैं।
- पांचवा, तीस्ता सीतलवाड़ ने अहमद पटेल के साथ मिलकर गुजरात सरकार को अस्थिर करने के साथ साथ नरेंद्र मोदी की छवि को बर्बाद करने का काम किया
- और अंतिम टिप्पणी, आज किसी पार्टी पर एक व्यक्ति के जरिये ऐसा आरोप लग रहा है। भविष्य में बाहरी शक्तियां किसी भी व्यक्ति को ऐसे कार्य करने के लिए प्लांट कर सकती है ये एक राष्ट्र के लिए खतरा है।
आगे आपको हाई कोर्ट की टिप्पणी के पीछे छिपी इन सभी घटनाओं के बारे में बताएंगे और जानेंगे कि कैसे तीस्ता सीतलवाड़ ने शतरंज की तरह प्यादा बनकर अपना जीवन एक राजा के लिए कुर्बान कर दिया। ये राजा कौन है, जानने के लिए लेख को अंत तक पढ़ें।
तीस्ता सीतलवाड़: पत्रकार से पद्मश्री का सफर
मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार के रूप में करियर शुरू करने वाली तीस्ता देश के बड़े पुरस्कार पद्म श्री तक पहुँचती हैं। यूपीए शासन के समय मनमोहन सरकार को रिमोट कंट्रोल से चलाने के लिए सोनिया गांधी ने NAC बनाई थी और सीतलवाड़ को भी इस परिषद का सदस्य बनाया गया था।
सीतलवाड़ ने यहाँ तक पहुंचने के लिए बहुत कुछ किया था। गुजरात दंगों के बाद उन्होंने अपने संगठन सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस के नाम से लगभग सभी अदालतों में याचिकाएं दायर की खासकर सुप्रीम कोर्ट में, अलग अलग मामलों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में भी याचिकाएं दायर की गई
ऐसे मामलों में फर्जी गवाह, फर्जी एफिडेविट तैयार किये गए और इसके लिए बाकायदा वकीलों को फौज तैयार की गई। पीड़ितों को गुमराह करते हुए जो घटनाएं कभी घटी ही नहीं, ऐसी काल्पनिक कहानियों पर हस्ताक्षर लिए गए। दस्तावेज अंग्रेजी में थे लिहाजा पीड़ितों की समझ से बाहर थे। अगर कोई पीड़ित, तीस्ता का साथ देने तैयार नहीं होता तो उसे आईपीएस अधिकारी के द्वारा फ़ोन करके डराया-धमकाया जाता था।
तीस्ता सीतलवाड़ को कल सुप्रीम कोर्ट से महिला होने के नाते अंतरिम बेल मिलती है लेकिन इनके कर्मों को देखिये।
नानू मिया नामक व्यक्ति एसआईटी को बताते हैं कि तीस्ता ने उन्हे मदीना नामक महिला के साथ कथित बलात्कार का जिक्र करने के लिए मजबूर किया था जबकि ऐसी कोई घटना हुई ही नहीं थी।यहाँ तक कि मदीना ने भी यही कहा था कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई थी। लेकिन तीस्ता सीतलवाड़ किसी भी कीमत पर घटनाएं, गवाह, सुबूत सब कुछ बनाना चाहती थी।
इसके लिए तीस्ता ने एक अफवाह फैलाई कि नरोदा पाटिया में बड़ी संख्या में लोगों को मार दिया गया और सूखे कुएं के अंदर जला दिया गया। ये भी झूठ निकला।
फिर तीस्ता ने यह अफवाह फैलाई कि दंगों में एक मुस्लिम महिला कौसर बानो की कोख फाड़कर भ्रूण को तलवार की नोक पर रखा गया लेकिन ये भी झूठ निकला। अब आप सोचिये एक महिला की कितनी खतरनाक मानसिकता होगी जब वह ऐसी काल्पनिक घटनाओं को बनाती थी।
यहाँ तक कि सबूतों से छेड़छाड़ करने के लिए तीस्ता ने नगर पालिका द्वारा कानूनी रूप से दफनाई गयी कब्र तक खोद ली थी। इसके चलते ही उनके खिलाफ गुजरात हाई कोर्ट में सबूतों से छेड़छाड़ का मामला लंबित है।
ये सब बिना पॉलिटिकल पॉवर और पैसे से सम्भव नहीं था। इसके लिए फिर से राजा के प्यादे सामने आये और तीस्ता की मदद की गयी। इस बार प्यादा का नाम था अहमद पटेल।
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कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी को बर्बाद करने के लिए तीस्ता सीतलवाड़ के जरिये रची साजिश
सोनिया गाँधी के सचिव रहे अहमद पटेल ने तीस्ता को गुजरात में इस तरह से काम करने के लिए कहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जेल चले जाएं और उनकी प्रतिष्ठा धूमिल हो जाए।
जब तीस्ता ने कहा कि इसके लिए भारी धन की आवश्यकता होगी तो अहमद पटेल ने कहा इसकी जरूरत नहीं है, उन्हें उनकी आवश्यकता के अनुसार पर्याप्त धन मिलेगा।
इसके लिए शुरुआत में एक बार पांच लाख और फिर 25 लाख दिए गए। यह तो सिर्फ वह रकम है जो गवाहों के समक्ष दिए गए थे बाकी का कोई हिसाब नहीं।
तीस्ता ने कहा कि वह अपनी मैगजीन में एक स्पेशल आर्टिकल छापेंगी जिससे गुजरात ,में एक बड़ी खबर बनेगी और इससे ना सिर्फ मोदी की छवि खराब होगी बल्कि उसे इस्तीफा देना पड़ेगा। यह सुनकर अहमद पटेल बहुत खुश हुए और वह उस स्पेशल आर्टिकल का इंतजार करने लगे और उन्होंने कहा कि पैसों की बिल्कुल चिंता मत करो जिस हद तक जाकर मोदी की छवि खराब हो सकती है वह करो।
इसके बाद तीस्ता कम से कम 40 पीड़ितों को एक इवेंट में दिल्ली ले गई। इवेंट में हर एक पीड़ित को मंच पर से अपनी दास्ताँ बयान करने के लिए कहा गया। इस इवेंट की खास बात यह थी कि इसमें अहमद पटेल समेत कांग्रेस के नेता और कुछ लेफ्ट की पार्टियां भी शामिल थी।आरोप यह भी है कि इसके बाद तीस्ता सीतलवाड़ पीड़ितों को पटेल के निवास स्थान पर भी ले गई थी और वहां उन्हें आश्वासन दिलाया गया कि एक बार बस सरकार बदल जाए फिर सबको न्याय भी मिलेगा, सरकारी नौकरी और पैसा अलग मिलेगा।
तीस्ता और अहमद पटेल के बारे में जो बातें हमने बताई ये गुजरात हाईकोर्ट ने भी कहीं हैं।इसके गवाह थे-नरेंद्र ब्रह्मभट्ट, रईस खान
ये रईस खान तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ से जुड़े थे और तीस्ता के करीबी रहे थे।
रईस खान कहते हैं कि तीस्ता जैसे लोग जो विक्टिम के नाम पर पैसा लाते हैं, खा जाते हैं और अपने आपको सोशल एक्टिविस्ट कहते हैं, विक्टिम के साथ जो विश्वास घात हुआ उसके लिए विक्टिम उसको माफ नहीं करेंगे तीस्ता ने देश और विदेश से फंड जमा किया और उसका एक परसेंट भी हिस्सा विक्टिम को नहीं दिया।
दरसअल, यूपीए शासन के समय सीतलवाड़ ने अपने पति से साथ मिलकर गुजरात दंगों को लेकर एजेंडा और विमर्श चलाने के नाम पर जो चंदे इकट्ठे किए थे, उनका एक बड़ा हिस्सा अपने व्यक्तिगत खर्च के लिए इस्तेमाल कर लिया था। अपने NGO के माध्यम से इन्होंने करोड़ों रुपए जिस उद्देश्य के लिए इकट्ठा किए, उस पर कभी खर्च किया ही नहीं।
अब आप सोचिये एक महिला NGO बनाकर सिर्फ देश ही नहीं विदेश से भी फण्ड ले रही थीं। यह सब भी मुमकिन था उसी राजा की वजह से
इस बार इस राजा ने विदेशी प्यादों को भी तीस्ता की मदद के लिए भेजा। ताकि मामले को इंटरनेशनल बनाया जाए।
गवाह ब्रह्मभट्ट के अनुसार बीबीसी के एक पत्रकार पंकज शंकर उनसे मुलाकात करते हैं। ये पत्रकार कहते हैं वह तीस्ता के एनजीओ का हिस्सा हैं, जो ब्रिटेन और खाड़ी देशों में काम करते हैं। ये पत्रकार लोगों को सरकार के खिलाफ भड़काते थे और उनके साक्षात्कार लेते थे और उसके कारण ब्रिटेन और खाड़ी देशों से तीस्ता को फंड मिलता था।
इस पूरे मुद्दे को इंटरनेशनल बनाने का दूसरा वाकया
5 अक्टूबर 2010 को तीस्ता SIT को एक लेटर लिखती हैं और एक वकील के लिए सुरक्षा मांगती है लेकिन इस लेटर की कॉपी संयुक्त राष्ट्र के ऑफिस जिनेवा भी पहुंच जाती है। दो दिन बाद वो फिर से एसआईटी के लिए एक लेटर लिख कर स्वयं के लिए सुरक्षा की मांग करती हैं और फिर से इस लेटर की कॉपी जिनेवा भेजी जाती है।
वर्ष 2011 में इन लेटर के जिनेवा भेजने का मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आता है तो तीस्ता की वकील कहती हैं कि जेनेवा को ह्यूमन राइट से जुड़े सभी मामलों पर नजर रखने का अधिकार है।
आखिरकार सुप्रीम कोर्ट को आदेश जारी करना पड़ता है कि तीस्ता सीतलवाड़ जांच से जुड़े मामलों पर जिनेवा के साथ कोई संवाद नहीं करेंगे। अब आप सोचिए कि एक महिला ने कैसे एक राजा की मदद से गुजरात दंगों को उद्योग बनाया। किसलिए?
सिर्फ एक व्यक्ति नरेंद्र मोदी को बर्बाद करने के लिए।
अभी पिछले वर्ष ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुप्रीम कोर्ट ने क्लीन चिट दी है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा था कि इस मामले को जानबूझकर लंबा खींचा गया, कुछ लोगों ने न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग कर प्रयास किया कि मामला चर्चा में बना रहे हर उस व्यक्ति की ईमानदारी पर सवाल उठाए गए, जो मामले को उलझाए रखने वाले लोगों के आड़े आ रहा था। न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग कर अपने उद्देश्यों की पूर्ति करने वाले लोगों पर उचित कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
इसके एक दिन बाद तीस्ता सीतलवाड़ को गिरफ्तार किया गया था लेकिन फिर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत दी थी।और पिछले लगभग एक साल से वे अंतरिम जमानत पर हैं।
क्या आप सोच सकते हैं एक साल की अंतरिम जमानत? जी, हाँ ये सब भारत में हो रहा है और सिर्फ एक राजा की मदद से
ये राजा कोई और नहीं बल्कि एक विशाल इकोसिस्टम है
जिसमें कुछ लोग धर्म जाति लिंग राष्ट्रीयता के भेदभाव के बिना निरंतर कार्य करते हैं।तीस्ता सीतलवाड़ तो इस विशाल इकोसिस्टम का सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा है। इसमें कांग्रेस पार्टी और उनके अहमद पटेल जैसे नेता, मीडिया में बैठे पत्रकार, NGO सब शामिल हैं।
इसमें संजीव भट्ट, आरबी श्रीकुमार जैसे पुलिस अधिकारी भी शामिल थे जिन्होंने झूठे मुकदमे लिखवाये। राना आयूब, शबनम हाशमी, जावेद आनंद जैसे कई लोग हैं जिन्होंने गुजरात दंगों को एक अवसर के रूप में भुनाया। कपिल सिब्बल जैसे वकील भी इसमें शामिल हैं जो तीस्ता सीतलवाड़ के लिए हमेशा कोर्ट रूम में बहस के लिए उपलब्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि तीस्ता सीतलवाड़ 60 साल की है, वह क्या कर सकती है?
लेकिन इस इकोसिस्टम का एक दूसरा हिस्सा वो हैं जो सामने नहीं आ पाते। जो आज सरकार ना होने के 9 वर्ष बाद भी आधी रात को सुप्रीम कोर्ट खुलवा देते हैं। जो इस खबर को बीबीसी से लेकर वाशिंगटन पोस्ट में छपवा देते हैं। और फिर इस पर विदेशों में डॉक्युमेंट्रीज़ बनवाई जाती हैं और फिर भारत में प्रसारित की जाती है।और फिर जारी किये जाते हैं नाना प्रकार के इंडेक्स।
नाम के साथ काम करने वाला इकोसिस्टम हो या अदृश्य इकोसिस्टम इसका उद्देश्य एक ही था- राजनीतिक हितों की पूर्ति करना। पहले मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को पद से हटाना और फिर उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोकना।लेकिन अब प्रधानमंत्री बन गए हैं तो अब इस इकोसिस्टम का उद्देश्य है किसी भी प्रकार नरेंद्र मोदी को 2024 में अगली बार प्रधानमंत्री बनने से रोकना।
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