तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के पुत्र एवं तमिलनाडु सरकार में मंत्री उदयनिधि स्टालिन का सनातन-विरोधी बयान नया है, लेकिन उनकी पार्टी की रीति एवं नीति पार्टी गठन से ही सनातन के खिलाफ रही है। उदयनिधि द्वारा दिए गए ‘सनातन धर्म को मिटाने’ वाले बयान के परिणाम भी अब सामने आ रहे हैं।
सनातन-विरोधी मानसिकता डीएमके एवं इसके नेताओं की अघोषित आधिकारिक भाषा अब जाकर बनी है मगर यह इस राजनीतिक दल की बुनियादी ईंट है यह भी कोई छिपी हुई बात नहीं है। पेरियार की द्रविड़ कड़गम से ही डीएमके की भी राजनीतिक विचारधारा आगे बढ़ी है। यही वजह है कि इस दल में हिंदू और हिन्दी के लिए नफ़रत भरी हुई है। इस बार यह मामला फिर गणेश चतुर्थी पर चर्चा में है।
कर्नाटक के हुबली जिले में विवादास्पद ईदगाह मैदान में गणेश चतुर्थी समारोह की अनुमति ना मिलने से इस बार फिर ये विवाद भड़का है। शुक्रवार को कर्नाटक हाईकोर्ट की धारवाड़ पीठ ने ईदगाह मैदान परिसर में गणेश मूर्ति की स्थापना और गणेश चतुर्थी मनाने का विरोध करने वाली याचिका को खारिज कर दिया था। इसमें नगर निगम के फ़ैसले की भी आलोचना हुई थी। एक नज़र डालते हैं विगत कुछ वर्षों में सनातन के प्रति इस प्रदेश में सरकार का क्या रुख़ रहा है
गणेश चतुर्थी पर अघोषित रोक?
सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें गणेश चतुर्थी के लिए मूर्ति बनाने वाले व्यक्ति ने आरोप लगाया है कि ‘तमिलनाडु पुलिस झूठे आरोपों के आधार पर उन्हें परेशान कर रही है और पुलिस ने सभी मूर्तियों को तोड़ने का आदेश दिया है।’
तमिलनाडु के तेनकासी जिले में रहने वाले मुरुगन कई वर्षों से पर्यावरण-अनुकूल सामग्री का प्रयोग करके मूर्तियाँ बनाने का व्यवसाय चला रहे हैं। मुरुगन और उनके पिता, थिरुमलाई, हिंदू देवताओं की मूर्तियाँ बनाते हैं और उन्हें अपनी दुकान श्री मुरुगन हैंडक्राफ्ट्स के माध्यम से बेचते हैं।
मुरुगन ने आरोप लगाया कि शेनकोट्टई डीएसपी नागाशंकर के नेतृत्व में पुलिस की एक टीम 7 सितंबर को उनकी दुकान पर आई और उन पर मूर्तियां बनाने के लिए प्रतिबंधित प्लास्टर ऑफ पेरिस का उपयोग करने का आरोप लगाया। मुरुगन का कहना है कि वह केवल आटा, साबूदाना और तरल कागज जैसी पर्यावरण-अनुकूल सामग्री का उपयोग करते हैं। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस वीडियो में मुरुगन स्वयं को सही साबित करने के लिए एक मूर्ति को तोड़कर दिखा भी रहे हैं।
सरकार की नीतियां सरकारी विभागों के कार्यों में परिलक्षित होती है और तमिलनाडु सरकार की नीति क्या है, यह मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन के बयान से स्पष्ट है। ज्ञात हो कि एक महीने पहले मुख्यमंत्री एम के स्टालिन भी सनातन धर्म की आलोचना करने के लिए एक ऐसा ही आधार चुना था। स्टालिन ने कहा कि डीएमके सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि मंदिर बिना भेदभाव वाले स्थलों के रूप में स्थापित हों।
तमिलनाडु सरकार को समाज की सभी असमानताएं सनातन धर्म में ही नजर आती हैं। वे अस्पृश्यता के आरोप भी अपने ही चश्मे से देखते हुए लगाते हैं। क्या अधिकतर डीएमके नेताओं के ईसाई होने के चलते यह सनातन के प्रति उनकी हीनभावना का परिणाम है?
सरकार बनते ही मंदिरों पर अतिक्रमण अभियान शुरू
मई 2021 में सत्तासीन होने के बाद से ही डीएमके सरकार का सनातन धर्म एवं धर्मावलम्बियों के प्रति ऐसा ही रुख रहा है। सरकार बनने के दो महीने के भीतर ही अतिक्रमण अभियान शुरू किया गया और परिणामस्वरूप मंदिर ध्वस्त किये गए।
- इसी दौरान जुलाई, 2021 में प्रकाशित ‘द हिन्दू’ की एक रिपोर्ट के अनुसार तमिलनाडु के धार्मिक प्रमुखों का मानना था कि अतिक्रमण हटाने के नाम पर समृद्ध इतिहास और विरासत वाले प्राचीन मंदिरों को ध्वस्त करने का अभियान शुरू किया गया है। तमिलनाडु सरकार पर आरोप था कि अकेले कोयंबटूर शहर में मुथन्नानकुलम के तट पर तीन मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया है। इनमें से एक मंदिर 100 साल पुराना जबकि दूसरा 125 साल पुराना था।
हिन्दू धर्म के प्रमुखों का मानना था कि नदी और तालाब के किनारे देवी-देवताओं की पूजा करना एक हिंदू परंपरा है। वहीं सरकारी मशीनरी धार्मिक भावनाओं की परवाह किए बिना अंधाधुंध हिंदू मंदिरों को ध्वस्त कर रही थी, जबकि अन्य धर्मों के पूजा स्थलों के मामले में ऐसे कठोर उपाय नहीं अपनाए गए थे। उनका कहना है कि इस तरह की कार्रवाइयां स्पष्ट रूप से सरकार के भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण को साबित करती हैं।
धार्मिक प्रमुखों ने कहा कि सिर्फ कोयंबटूर में ही नहीं, बेसिन ब्रिज रेलवे स्टेशन के पास 300 साल पुराना पू मरिअम्मन मंदिर और मदुरै जिले के इलंधियेंदल में 200 साल पुराना देइवामाडा वझावंदथल मंदिर भी ढहा दिया गया है।
- इसके कुछ महीनों बाद यानी नवम्बर 2021 में तमिलनाडु के श्रीपेरुमबुदुर में फिर सरकारी जमीन पर अतिक्रमण के आरोप में एक और हिंदू मंदिर को गिराने की खबर सामने आई थी।
‘हिन्दू पोस्ट’ नामक न्यूज़ पोर्टल के अनुसार, इस आरोप के आधार पर मंदिर को गिरा दिया गया था कि मंदिर ने सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया है। इस मामले को लेकर ‘हिन्दू पोस्ट’ ने लिखा है, “आरोप है कि जब भक्त समझौता करने के लिए जिला कलेक्टर से मिलने गए थे, तब तक राजस्व विभाग के अधिकारियों ने मंदिर को तोड़ दिया। यह भी आरोप है कि भक्तों को आश्वासन देने के बावजूद कि वे गर्भ गृह को नहीं तोड़ेंगे पर अधिकारियों ने इसे भी ध्वस्त कर दिया।”
- वर्ष 2022 में फिर एक और मंदिर तोड़ा गया। समाचार पत्र ‘द हिन्दू’ द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट बताती है कि तमिलनाडु सरकार ने चेन्नई के वरदराजपुरम में अड्यार नदी के तल पर बने श्री नरसिम्हा अंजनेयर स्वामी मंदिर को अवैध एवं अतिक्रमणकारी बताते हुए ध्वस्त कर दिया। इस दौरान सहायक आयुक्त के नेतृत्व में पुलिस बल के साथ राजस्व अधिकारियों ने मौके का दौरा किया और मंदिर को ध्वस्त करना शुरू कर दिया।
एक अन्य न्यूज़ पोर्टल ‘ऑपइंडिया’ ने भी इस खबर को कवर करते हुए लिखा, ये श्री नरसिम्हा अंजनेयार स्वामी का मंदिर पिछले 25 वर्षों से मुदिचूर के पास स्थित क्षेत्र में 55 सेंट भूमि पर बनाया गया था। कुछ साल पहले राजस्व अधिकारियों ने पाया कि मंदिर का निर्माण अतिक्रमित जलाशय पर किया गया था और उन्होंने मंदिर के प्रतिनिधियों को नोटिस जारी किया।
इस मंदिर के तोड़े जाने पर हिन्दुओं ने भारी विरोध प्रदर्शन भी किया गया था। इस विरोध ने सोशल मीडिया पर तमिलनाडु सरकार के खिलाफ एक मुहिम का रूप ले लिया था।
- वहीं इसी वर्ष 18 मार्च, 2023 को एक खबर के अनुसार तमिलनाडु एचआरसीई विभाग ने एक अतिक्रमण हटाते समय 400 साल पुराने अम्मानी अम्मल मठ को ध्वस्त कर दिया गया था। हिन्दू पोस्ट’ ने अपनी खबर में इस प्रकार लिखा है, “आरोप है कि डीएमके के एक मंत्री की नजर लंबे समय से इस संपत्ति पर थी और पिछली बार जब डीएमके सत्ता में थी तो उन्होंने इसे हड़पने की कोशिश की थी”। हालाँकि, ‘द पैम्फलेट’ इस दावे की पुष्टि नहीं करता।
‘एचआरसीई’(HR-CE) के जरिए तमिलनाडु सरकार का मंदिरों में बढ़ता हस्तक्षेप
इसी वर्ष तमिलनाडु ‘एचआरसीई’ ने एक ऐसे धार्मिक सम्मेलन पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया जिसे ‘हिंदवा सेवा संघम’ नामक संगठन 89 साल से कन्याकुमारी के मंडैकाडु मंदिर में आयोजित करता है। मंडैकाडु-भगवती अम्मन मंदिर जिसे ‘महिलाओं का सबरीमाला’ कहा जाता है।
ज्ञात हो कि तमिलनाडु में मंदिरो के प्रशासन और संपत्ति प्रबंधन करने हेतु एचआरसीई (Hindu Religious and Charity Endowment) बोर्ड का गठन किया गया है। हालाँकि वर्तमान में इस बोर्ड से हिन्दू धर्म के प्रति घृणा रखने वाले लोग जुड़े हुए हैं।
उदाहरण के लिए सुकी शिवम, जो आर्यन-द्रविड़ नस्लीय धारणाओं का प्रचार करते हैं और वर्तमान डीएमके सरकार के सनातन विरोधी अपराधों का समर्थन करते हैं। सुकी शिवम एचआरसीई के आधिकारिक सलाहकार हैं।
विवादों में घिरता रहा है HR-CE बोर्ड
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ नामक समाचार पत्र के अनुसार, हाल ही में जून के माह में चिदंबरम के प्राचीन नटराज मंदिर में पुजारियों ने मंदिर परिसर में एक बोर्ड लगाया था जिस पर त्योहार के कारण भक्तों की पहुंच को सीमित करने वाली सूचना प्रदर्शित की गयी थी। लेकिन प्रशासन द्वारा यह बोर्ड हटा दिया गया जिसके बाद कयास लगाए गए कि डीएमके सरकार मंदिरों का संचालन पूरी तरह से अपने हाथ में लेने की योजना बना रही है।
ज्ञात हो कि एचआरसीई विभाग राज्य के अधिकांश मंदिरों के प्रशासन और संपत्ति को संभालता है लेकिन मंदिर के अनुष्ठानों में इसे हस्तक्षेप की अनुमति नहीं है।
इस कदम से डीएमके सरकार को श्रद्धालुओं के भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई ने कहा, “सरकार की हरकतें श्रद्धालुओं को परेशान कर रही हैं, और जब से डीएमके ने 2021 में सत्ता संभाली है, उसने कोर्ट द्वारा निर्धारित कानूनी सीमाओं को भी पार कर लिया है।
मंदिरो की जमीन में हेराफेरी?
एचआरसीई से जुड़ा सबसे बड़ा विवाद मंदिरों की जमीनों को लेकर है। इस मुद्दे पर मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से स्पष्टीकरण भी माँगा था। मद्रास हाईकोर्ट ने पूछा, 1984-85 की नीति में कहा गया है कि मंदिर की भूमि 5.25 लाख एकड़ थी, जबकि 2019-20 के आंकड़ों में केवल 4.78 लाख एकड़ बताई गयी है। यानी 47,000 एकड़ जमीन सरकारी रिकॉर्ड से ग़ायब थी।
इसलिए हाईकोर्ट ने कहा, “सरकार को एक जवाबी हलफनामा दाखिल करना चाहिए, यह एचआरसीई के लिए कठिन नहीं होना चाहिए”
मंदिरों की जमीन पर माफियाओं का कब्ज़ा
तमिलनाडु सरकार पर अतिक्रमण के नाम पर मंदिर तोड़ने के आरोप आम हैं लेकिन अब इन आरोपों से आगे निकलकर एक तथ्य ये है कि तमिलनाडु में मंदिरों की भूमि पर माफियाओं ने अवैध कब्ज़ा कर दिया है।
वर्ष 2019 में टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के अनुसार, हिदू मंदिरों के तकरीबन 25,868 एकड़ भूमि पर अवैध रूप से कब्ज़ा कर लिया गया है।जिसकी कीमत लगभग 10,000 करोड़ रुपए होगी। HRCE विभाग के नियंत्रण में आने वाली मंदिरों की भूमि रिकॉर्ड का जब डिजिटलीकरण किया गया तब राज्य सरकार के समक्ष यह जानकारी सामने आई। इन जमीनों को अवैध रूप से विभिन्न लोगों को हस्तांतरित कर दिया गया है।
मंदिरों का सोना पिघलाने की विवादित स्कीम
सबसे बड़ा विवाद तब देखा गया जब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की सरकार राज्य के मंदिरों का सोना पिघलाने की योजना लेकर आई थी। इन्हें पिघला कर 24 कैरेट के गोल्ड बार्स बनाए गए। राज्य सरकार का कहना है कि ये वो सोना है, जो मंदिरों के नियंत्रण में है और जिनका उपयोग नहीं हो पा रहा। सबसे पहले तिरुवरकाडु के श्री कुमारीअम्मन मंदिर, समयपुरम के मरियम्मन मंदिर और ईरुक्कनकुडी के मरियम्मन मंदिर पर सरकार की नजर है।
तमिलनाडु की सरकार ने कहा है कि सोना को पिघला कर बिस्किट बनाए जाने के बाद उन्हें राष्ट्रीय बैंकों में डिपॉजिट किया जाएगा और उससे जो रुपए आएँगे, उसका इस्तेमाल ‘स्टेट हिन्दू चैरिटेबल एंड रिलीजियस एंडोमेंट्स (HR & CE)’ विभाग द्वारा मंदिरों के विकास में किया जाएगा। मुख्यमंत्री स्टालिन ने बुधवार (13 अक्टूबर, 2021) को ये योजना लॉन्च की। सरकार का कहना है कि वो श्रद्धालुओं द्वारा दान में दिए गए सिर्फ उन्हीं सोने के आभूषणों को पिघलाएगी, जिनका पिछले 10 वर्षों से इस्तेमाल नहीं हुआ है।
उस दौरान एक याचिका में कहा गया था कि आभूषण मंदिरों के हैं और भक्तों ने इन्हें दान में दिया है, इसीलिए सरकार को इन्हें छूने का कोई हक़ नहीं है। प्रश्न है कि जब 60 वर्षों से कोई रजिस्टर ही मेंटेन नहीं किया जा रहा तो पता कैसे चलेगा कौन से आभूषणों का उपयोग नहीं हो पा रहा और कौन से 10 वर्ष पुराने हैं?