देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी को वित्त वर्ष 2023-24 के लिए देश का बजट पेश किया, बजट में विदेश मंत्रालय को ₹18050 करोड़ की धनराशि दी गई है।
इसके अतिरिक्त भारत ने अपने मित्र राष्ट्रों की सहायता के लिए बजट की व्यवस्था की है। भारत ने अपने पडोसी राष्ट्र भूटान, नेपाल, श्री लंका, समेत कई राष्ट्रों को सहायता देने का प्रावधान भी इस बजट में किया है।
भारत की तरफ से सबसे चौंकाने वाला आवंटन अफगानिस्तान के लिए है, भारत ने अफगानिस्तान को 200 करोड़ रुपए इस वर्ष ग्रांट के तौर पर देने का प्रावधान बजट में किया है।
भारत ने संकट से जूझ रहे अपने पडोसी अफगानिस्तान को यह मदद उसके ऐसे कठिन समय में दी है जब अफगानिस्तान में वर्तमान में मुजाहिद्दीन समूह तालिबान का राज है।
यह भी पढ़ें: जानिए कैसे तबाही के कगार पर पहुंची पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था, क्या हैं अभी के हालात
गौरतलब है कि भारत इससे पहले भी अफगानिस्तान को गेंहू की मदद पाकिस्तान के रास्ते दे चुका है। भारत अफगानिस्तान के लोगों की सहायता के लिए लगातार प्रतिबद्ध रहा है, ऐसे में यह आवंटन किया गया है।
भारत ने इस साल जहाँ अफगानिस्तान को 200 करोड़ रुपए दिए हैं वहीं वर्ष 2022-23 के बजट में भारत ने अफगानिस्तान को 350 करोड़ रुपए दिए थे।
वर्ष 2021-22 के दौरान भी भारत ने अफगानिस्तान को 166 करोड़ रुपए दिए थे। इन रुपयों का मुख्य खर्च अफगान जनता के भोजन, दवाइयों और मूलभूत सुविधाओं के लिए किया जाता है।
भारत-अफ़ग़ानिस्तान जैसे संप्रभु राष्ट्रों के मध्य आपसी संबंध संभवतः 1950 से ही हैं। एक दौर था जब अफ़ग़ानिस्तान औपनिवेशिक भारत का सबसे भरोसेमंद क़िला था।
साल 1980 तक अफ़ग़ान को भारत ने एक समान सहयोगी राष्ट्र के रूप में ही रखा। परिस्थितियों सोवियत के हमलों के बाद बदलती चली गईं।
अफ़ग़ान के अधिकांश बुनियादी निर्माण, वहाँ की संसद हो या फिर रिंग रोड, भारत जैसे राष्ट्रों की मदद से विकसित हुए हैं।भारत अफगानिस्तान में हमेशा से ही समावेशी सरकार की वकालत करता आया है।
यह भी पढ़ें: PAK: काउंटर टेररिज्म के 2 अधिकारियों की हत्या के बाद पाकिस्तान ने मुल्क में बढ़ रहे आतंकवाद पर जताई चिंता
इसका एक पहलू यह भी है कि भारत को इससे पाकिस्तान पर बढ़त मिलती है। गौरतलब है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के तालिबान से पुराने सम्बन्ध रहे हैं, हालाँकि, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के सम्बन्ध आजकल कुछ अच्छे नहीं है।
पाकिस्तान लगातार तालिबान पर यह आरोप लगा रहा है कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल उसके खिलाफ हमले करने के लिए किया जा रहा है।
ऐसे में भारत का अफगानिस्तान को मदद देना एक मानवीय कदम के साथ ही सोचा समझा रणनीतिक फैसला भी है।
अफगानिस्तान डूरंड रेखा के विभाजन से पूर्व अखंड भारत का ही एक हिस्सा था और इस इलाके में आज भी बड़े पैमाने पर सनातन सभ्यता के चिन्ह हैं।
ऐसे में अपनी संस्कृति के लिए काम करने के लिए भी भारत को अफगानिस्तान से अच्छे सम्बन्ध रखना आवश्यक है। भारत अफगानिस्तान के लोगों की दिल और दिमाग जीतने की नीति पर चलता आया है।
भारत ने ही अफगानिस्तान की संसद का निर्माण किया है। भारत, पश्चिमी देशों द्वारा अफगान जमीन पर मात्र युद्ध और बर्बादी के सामानों में निवेश करने की नहीं बल्कि वहां पर लोगो को सश्न्क्त करने का पक्षधर रहा है।
अफगान जनता का हमेशा से ही यह आरोप रहा है कि अमेरिका समेत अन्य पश्चिमी देश अफगान जमीन को हमेशा से ही अपने फ्रंटियर की तरह उपयोग करते आए हैं।
अफगानिस्तान को इन देशों ने पाने फायदे के लिए युद्ध का मैदान बनाया हुआ था जिसमें अंत में सबसे ज्यादा नुकसान अफगानिस्तान के लोगों का हुआ है।
अफगान जनता का यह कहना रहा है कि अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के लोकतंत्र को जबरदस्ती लगाने के उनके प्रयास अफगान संस्कृति के साथ मेल नहीं खाते हैं।
इसके पश्चात भी दुनिया भर की फ़ौज लाकर यह काम जबरदस्ती करने का प्रयास किया गया जिसमें लाखों लोगों की मौत हुई है और इसका नतीजा कुछ नहीं निकल सका है। भारत ने अपने अन्य पड़ोसियों तथा मित्र राष्ट्रों को मदद देने के लिए भी इस बजट में प्रावधान किए हैं।
भारत में अफगानिस्तान के राजदूत फरीद मामुन्जादै ने भारत के इस कदम की प्रशंसा की है और भारत का आभार जताया है। वहीं अफगानिस्तान सरकार ने कहा है कि भारत के इस कदम की तालिबान प्रशंसा करता है और इससे दोनों देशों के रिश्तों में मजबूती आएगी।
भारत ने ईरान में चाबहार पोर्ट के विकास के लिए 100 करोड़, पडोसी देश म्यांमार को 400 करोड़, बांग्लादेश को 200 करोड़ और भूटान को 2400 करोड़ रुपए रुपए देने का प्रावधान किया है। इसके अतिरिक्त अन्य भी कई देशों को भारत मदद देगा।