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कृष्ण अच्युत हो या न हो, पर होनी को कौन टाल सकता है। विदुर सहज हुए और राजसभा जाने की तैयारी करने लगे। पारंसवी पुनः बोली, “भूलना मत। उन्हें साथ ले आना खाने पर।”