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चीन पर राहुल गांधी के दावों पर सुधांशु त्रिवेदी ने पलटवार कर बताया कि किस प्रकार कांग्रेस पार्टी के चीन के साथ संबंध संदेहपूर्ण हैं।

भारत और चीन के विदेश मंत्रालयों के बीच वर्तमान में एक दूसरे के देशों के पत्रकारों के वीजा और सुविधाओं को लेकर एक शीत युद्ध चल रहा है। इसकी शुरुआत चीन के एक कदम से हुई है।

जिनपिंग का पूरा ध्यान अभी सत्ता में अपना भभका साबित करने पर है और इन्हीं कुछ कारणों से वह देश की मुश्किलों से ध्‍यान हटाने की कोशिशों में लगा हुआ है। इसके लिए भारत के साथ तवांग और LAC पर नोकझोंक से बेहतर और क्या हो सकता है।

चीन की विस्तारवादी नीति के प्रति सरदार पटेल ने नेहरू को आगाह करके कहा था, “चीन शत्रुता की भाषा बोल रहा है और तुम मित्रता निभाए जा रहे हो”।

विशेष राज्य का दर्जा हटाने के निर्णय ने जम्मू-कश्मीर को ही फायदा पहुँचाया है। भविष्य में राज्य की खुशहाल और समृद्ध राज्य की छवि बनकर उभरेगी।

किताब की शुरूआत विवादास्पद बयान से शुरू होती है, “चीन तो छोड़िए, भारत तो पाकिस्तान से भी युद्ध नहीं जीत सकता।”