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प्रो. कुसुमलता केडिया द्वारा लिखी पुस्तक ‘कम्युनिस्ट चीन, अवैध अस्तित्व’ चीन की राजनीति को इतिहास की दृष्टि से समझने का प्रयास करती है।
हमले के पीछे एक वजह यह बताई जा रही है कि महेन्द्र यादव रिपोर्टर्स क्लब में चीन के राजदूत के द्वारा दिए गए बयान का विरोध कर रहे थे।
एक ऐसा भी देश था जिसने इस अपमान के इतिहास की ईमानदारी से समीक्षा की। इसका नाम है चीन।
कम्युनिस्ट चीन में जो भी संस्था कम्युनिस्ट पार्टी के नियंत्रण से बाहर हो जाती है उसे चीनी कम्युनिस्ट सरकार देश से बाहर का मार्ग दिखा देती है।
अमेरिकी समाचार पत्र की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि श्रीलंकाई मूल के अमेरिकी उद्योगपति नेविल रॉय सिंघम द्वारा वित्त पोषित न्यूज़क्लिक की कवरेज असल में चीन की कम्युनिस्ट सरकार का एजेंडा है।
भारत के आत्मनिर्भर अभियान की निरंतर सफलता से घबराकर चीन छद्म लड़ाई व नैरेटिव वार (विमर्श युद्ध) का सहारा ले रहा है।
कम्युनिस्ट चीन अपनी विस्तारवादी कूटनीति के माध्यम से मणिपुर सहित भारत के पूर्वोत्तर राज्यों (भारत के पूर्वी द्वार) में अशांति फैला रहा है।
चीन के विदेश मंत्री बने चिन गांग 25 जून से गायब हैं, वे किसी आधिकारिक कार्यक्रम और किसी भी तरह की बैठक में नहीं दिखे
SCO के भीतर भारत की स्थिति तब स्पष्ट हो जाती है जब चीन के BRI का समर्थन करने से इनकार करने के साथ-साथ चीन के कार्यों का विरोध भी करता है।
चीन के उत्पीड़न के इतिहास की शुरुआत होती है 1839 से 1842 के दौर से जब पहला अफीम युद्ध हुआ और चीन की बुरी हार हुई। यही वो समय था जब हांगकांग को एक संधि के तहत चीन को ब्रिटिश साम्राज्य को सौंपना पड़ा।