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नारदीय संचार नीति पुस्तक, ‘शील ही संदेश है’, विषय पर जोर देती है। अधिकांश सभ्यताओं में ‘सत्य’ और ‘शक्ति’ की अवधारणाओं के बीच अस्पष्टता है।

उन्हें कोई मार्ग नहीं सूझ रहा था। 50 वर्ष की लंबी यातना सामने थी और यह खयाल कि एक धीमी, कष्टकर और घृणास्पद मौत में ही इसका अंत होगा। 50 वर्ष की इस त्रसद, पग-पग पर अपमान और जिल्लत की जिंदगी का कोई अर्थ नहीं होगा। 

इन 27 पात्रों में से कई नाम ऐसे हैं जिन्हें मैं पहली बार पढ़ रहा था, ये वो गुमनाम शख्स है जिन्हें इतिहास की पुस्तकों में पर्याप्त स्थान नहीं मिला है। लेखक ने ऐसे ही गुमनाम नामों से परिचित करवाया है ‘क्रांतिदूत’ में।

किताब की शुरूआत विवादास्पद बयान से शुरू होती है, “चीन तो छोड़िए, भारत तो पाकिस्तान से भी युद्ध नहीं जीत सकता।”