उन्हें बताएँ कि कैसे रहे होंगे वे राम जिन्होंने धर्म के लिए पिता की बात तक नहीं मानी, जिन्होंने जंगल का कठिन तप चुना, विरह-वेदना को चुना, रीछ-वानरों की मित्रता की, परम बलशाली होने के बावजूद ऐन मौक़े पर नल-नील की मादद को सर्वश्रेष्ठ माना।
‘मंदिर वहीं बनाएंगे लेकिन तारीख नहीं बताएँगे’ नारा भाजपा पर तंज़ से अधिक सेक्युलर दलों के लिए संजीवनी भी था। अब मंदिर बन रहा है। तारीख भी इतिहास में दर्ज़ हो गई है।