कुरान विवाद: मुस्लिम देशों की नाराजगी से स्वीडन की NATO में सदस्यता की अर्जी पर खतरा | विश्लेषण: ईद से ठीक पहले स्केंडिनेवियाई राष्ट्र स्वीडन में स्टॉकहोल्म की एक मस्जिद के पास बुधवार (जून 28, 2023) को एक प्रदर्शनकारी ने इस्लाम की पवित्र माने जाने वाली पुस्तक कुरान फाड़ी और उसे जला दिया। बताया जा रहा है कि ऐसा करने वाला एक 37 साल का इराक़ी शरणार्थी था। इस पवित्र धार्मिक किताब कुरान को फाड़ने के बाद उसने उस पर अपने जूते भी साफ़ किए। इस प्रदर्शनकारी का नाम सलवान मोमिका है। इस घटना के ठीक एक दिन पहले ही स्वीडन प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों को ऐसा करने की इजाज़त दी थी। इस पूरे प्रकरण के बाद अब मुस्लिम राष्ट्र स्वीडन के ख़िलाफ़ एकजुट हो रहे हैं, जिससे NATO में स्वीडन की सदस्यता की अर्जी पर संकट मंडराने लगा है।
हालाँकि, स्वीडन की पुलिस ने बाद में उस व्यक्ति पर नस्लीय हमले एवं एक समूह के खिलाफ प्रदर्शन का आरोप लगाया। स्वीडिश पुलिस ने वहाँ पर लंबे समय से चल रहे कुरान विरोधी प्रदर्शनों की इजाज़त देने से इनकार कर दिया था लेकिन वहाँ की अदालतों ने उन फैसलों को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हैं।
इस्लामिक विचारों और मान्यताओं की इन आलोचनाओं और प्रदर्शन के मामले पर स्वीडन के प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टर्सन का कहना है कि “यह कानूनन अधिकार है, लेकिन ऐसा करना ठीक नहीं है।”
इस घटना के बाद तुर्की के विदेश मंत्री हाकन फ़िदान ने एक ट्वीट में इसकी निंदा की, और कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर इस्लाम विरोधी विरोध प्रदर्शन की अनुमति देना उन्हें स्वीकार नहीं है।
वहीं अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने आपणी प्रतिक्रिया में कहा कि धार्मिक ग्रंथों को जलाना ‘अपमानजनक और दुखद’ है।
पश्चिमी देश स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में कुरान जलाकर विरोध प्रदर्शन को स्वीडन की अनुमति मिल गई है। यह विरोध प्रदर्शन मस्जिद के बाहर तय क्या गया था। इसको लेकर स्वीडन की पुलिस ने कहा है कि कुरान जलाकर विरोध प्रदर्शन करने की मांग को वह मान रहे हैं।
इससे पहले पुलिस ने ऐसे ही दो विरोध प्रदर्शनों को अनुमति देने से मना कर दिया था। हालाँकि, एक स्थानीय कोर्ट ने बाद में इस निर्णय को पलटते हुए अब स्टॉकहोम की मुख्य मस्जिद के बहर कुरान जलाने की अनुमति प्रदान की थी।
स्वीडन में कुरान जलाने को लेकर लम्बे समय से विवाद चला आ रहा है। कई कार्यकर्ता इसे अपनी अभिव्यक्ति की आजादी के तौर देखते हैं जबकि पुलिस का कहना है कि इससे सुरक्षा खतरे उत्पन्न होंगे और विदेश नीति पर भी प्रभाव पड़ेगा।
NATO में दावेदारी के बीच उलझा स्वीडन
असल में यह विरोध प्रदर्शन इसलिए भी स्वीडन के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इससे तुर्की के साथ स्वीडन का एक नया राजनयिक विवाद शुरू होने का खतरा है। वही तुर्की, जो स्वीडन के नाटो में शामिल होने के की दावेदारी के बीच खड़ा है।
NATO पश्चिमी देशों का एक मिलिट्री अलायंस है और और स्वीडन पिछले कुछ साल से नाटो (North Atlantic Treaty Organization) का मेंबर बनना चाहता है और स्वीडन के नाटो का मेंबर बनने की राह में तुर्की परेशानी खड़ी कर रहा है। जून 2022 में स्वीडन और नॉर्वे ने नेटो में शामिल होने की अर्ज़ी दी थी, 28 देश इस अर्ज़ी पर सहमति जता चुके हैं, लेकिन हंगरी और तुर्की ने अब तक इसे अपनी सहमति नहीं दी है। तुर्की का कहना है कि फ़िनलैंड और स्वीडन को पहले 150 तुर्की नागरिकों को उसके हवाले करना होगा जिन्हें उनके द्वारा आतंकवादी क़रार दिया गया है।
स्वीडन ने नाटो के लिए यह आवेदन यूक्रेन और रूस के गतिरोध के बीच किया था। कुछ ही समय पहले तुर्की ने कई प्रत्यर्पणों और स्वीडन से अपनी सुरक्षा चिंताओं को दूर करने की मांग की थी।
मामला यह है कि स्वीडन और फ़िनलैंड इसका हिस्सा इसलिए बनना चाहते हैं क्योंकि इसका सबसे ज़्यादा फायदा नाटो में शामिल छोटे देशों को मिलता है। ऐसे में तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआँ ने हाल ही में स्वीडन और नाटो के चीफ जेन्स स्टोल्टेनबर्ग के सामने यह शर्त रखी है कि अगर स्वीडन तुर्की के खिलाफ अपने देश में होने वाले कुर्दिस्तानी विरोध को रोकता है, तो तुर्की की तरफ से उसे नाटो में शामिल होने का ग्रीन सिग्नल दे दिया जाएगा।
नाटो, 31 देशों का एक ऐसा ग्रुप है, जिसमें 29 यूरोपीय देश और 2 उत्तरी-अमरीकी देश शामिल हैं। NATO के सभी सदस्य राष्ट्र सैन्य मामलों में एक-दूसरे की सहायता करते हैं।
NATO का मूल मकसद दूसरे विश्व युद्ध के यूरोप में सोवियत संघ को चुनौती देना था और तभी से इसका मूल लक्ष्य राजनीतिक और सैन्य तरीकों से मित्र राष्ट्रों की स्वतंत्रता और सुरक्षा की रक्षा करना है। इससे पहले कुछ प्रदर्शनकारियों ने तुर्की दूतावास के बाहर कुरान जलाने का काम किया था। इसके चलते तुर्की ने स्वीडन के रक्षा मंत्री की अंकारा यात्रा रद्द कर दी और राष्ट्रपति एर्दोआँ ने कहा था कि स्वीडन तुर्की के समर्थन पर भरोसा नहीं कर सकता।
अब स्वीडन के सामने असली समस्या ये है कि किसी भी देश को NATO में शामिल करने के लिए, NATO के सभी सदस्यों की सहमति ज़रूरी है लेकिन स्वीडन में तुर्की विरोधी प्रदर्शनों के बाद तुर्की ने स्वीडन की इस अर्ज़ी पर अड़ंगा लगा दिया है। ये सब तब शुरू हुआ जब इसी साल जनवरी में तुर्की में प्रतिबंधित कुर्दिश वर्कर्स पार्टी, PKK के एक गुट ने सीरिया में कुर्द लड़ाकों पर तुर्की सेना के हमले के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया था। इसके कुछ समय बाद स्वीडन में एक गुट ने क़ुरान की प्रतियां जला डालीं थीं, जिससे तुर्की भड़क गया और एर्दोआँ ने वार्ताओं को रद्द कर दिया।
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