28 मई, 2023 का दिन भारत के लिए कई मायनों में विशेष रहा। राष्ट्र नव संसद भवन के ऐतिहासिक उद्घाटन का साक्षी बना। इसे संयोग कह सकते हैं कि 28 मई को ही भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और दार्शनिक वीर सावरकर की जयंती भी थी।
इस अवसर पर सिनेमा जगत के अभिनेता रणदीप हुड्डा ने अपनी आगामी फिल्म स्वातंत्र्यवीर सावरकर का टीज़र जारी किया। रणदीप हुड्डा टीज़र साझा करते हुए लिखते हैं, “भारत के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारी, जिससे ब्रिटिश सत्ता डरती थी। जानिए किस ने उनके इतिहास को मार दिया।”
फिल्म में रणदीप हुड्डा वीर सावरकर की भूमिका में नजर आएंगे। इस टीज़र पर लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया साझा की है और लगभग सभी ने इसकी सराहना की है।
टीज़र से अधिक सराहना उस प्रयास की हो रही है जो रणदीप हुड्डा और उनकी टीम ने किया है। जिन विषयों को एक रणनीति के तहत, लम्बी अवधि के प्रयोग के बाद ‘अछूत’ बना दिया जाता रहा हो उन विषयों पर एक फिल्म बनाना निश्चित ही यह विश्वास दिलाता है कि समय बदल रहा है।
यह विश्वास दर्शक की ओर से भी है और मेकर्स का भी है कि जिस पर समय, पूँजी सब निवेश कर रहे हैं, उससे उन्हें लाभ मिलेगा। लाभ मिलने का यह विश्वास जागृत होने में एक लम्बा वक़्त लगा है। पिछले कुछ वर्षों में ऐसी फिल्में अधिक बनी हैं जो धर्म और इतिहास पर केंद्रित है या फिर उन विषयों पर जिन पर चर्चा मात्र से ही एक हीनभावना का भाव आ जाता था।
यह सिर्फ फिल्म बनाने या उसके हिट होने तक सीमित नहीं है। यह एक सभ्यता में जान फूंकने का प्रश्न है। फिल्म को सभ्यता के सर्वाइवल से इसलिए जोड़ा जा रहा है क्योंकि एक कालखंड में देश के इतिहास से लेकर देश के भविष्य के सभी प्रश्न कुछ विशेष लोगों द्वारा ही तय किये गए और इन प्रश्नों के उत्तर भी इन्हीं लोगों ने सजाये।
धीरे धीरे ही सही, अब भारतवर्ष अपना सही इतिहास टटोल रहा है, उसे जान रहा है और साथ ही जान रहा है गलत इतिहास लिखने वालों को। इतिहास में वीर सावरकर के बारे में भी ऐसा लिखा गया कि उन्हें आने वाली पीढ़ियां विलेन मान लें।
राजनेता या स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर सावरकर को आगे रख कर उन्हें जैसे किसी बक्से में कैद कर दिया गया हो। ऐसा शायद इसलिए किया गया ताकि एक दार्शनिक और बुद्धिजीवी की उनकी भूमिका को सीधा नकारा जा सके।
इसका सबसे बड़ा परिणाम यह रहा कि सावरकर को ऐसे व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करना सरल हो गया जो सीमित क्षमता वाला था। इस बात को आराम से नकार दिया गया कि सावरकर संभवतः भारतीय नेताओं में पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए अंतरर्राष्ट्रीय समर्थन के महत्व को पहचाना था।
सावरकर की क्षमता को सीमित दिखाने के इस प्रयास में इस तथ्य पर आँखें बंद कर ली गई कि अभिनव भारत के भारतीय क्रांतिकारी अन्य राष्ट्रों से निरंतर सम्पर्क बनाए हुए थे। सावरकर ने न्यूयार्क में भारतीय मामलों से संबंधित लेख लिखे तथा इन्हें फ्रेंच, जर्मन, इतालवी, पुर्तगाली और रूसी भाषाओं में अनुवाद करवाकर प्रकाशित करवाया।
सावरकर ने हिंदू समाज से संबंधित जिन प्रश्नों पर विचार किया वे सारे प्रश्न आगे जाकर और महत्वपूर्ण हुए। उन्होंने जातिवाद और अस्पृश्यता के विरुद्ध युद्ध छेड़ा और अंतरजातीय विवाह, पुन: धर्म परिवर्तन से जुड़ी वर्जना के खिलाफ जम कर लिखा । उन्होंने अस्पृश्यता के विरोध पर कार्य किया। उन्होंने पब्लिक स्कूलों में अस्पृश्य माने जाने वाले बच्चों को उच्च जाति के माने जाने वाले बच्चों के साथ बिठाया। सावरकर ने डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के संघर्ष का समर्थन किया।
अब इन्हीं वीर सावरकर के किरदार में रणदीप हुड्डा नज़र आ रहे हैं।स्वातंत्र्यवीर सावरकर फिल्म का टीज़र काफी रोचक नज़र आता है। शुरुआत में ही सुनाई पड़ता है कि “आज़ादी की लड़ाई 90 साल चली पर ये लड़ाई कुछ ही लोगों ने लड़ी थी बाकी तो सत्ता के भूखे थे”
अब आप समझ जाइये कि फिल्म क्या कुछ लेकर आने वाली है स्वातंत्र्यवीर सावरकर इस साल सिनेमाघरों में रिलीज होने के लिए तैयार हैं। टीजर के दौरान, निर्माताओं का ये भी दावा है कि वीर सावरकर ने भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस और खुदीराम बोस को प्रेरित किया। वीडियो के अंत में फिल्म सवाल पूछती है, “किसने इनकी कहानी की हत्या की?”
आशा है कि रणवीर हुड्डा उस व्यक्तित्व के साथ न्याय कर पायेंगे जिसने विवेकानंद के बाद आधुनिक हिंदू समाज को अपने दर्शन से सबसे अधिक प्रभावित किया। जिसने सभ्यतामूलक प्रश्नों पर विचार किया।