वीर सावरकर पर फिल्म की घोषणा होते ही विवाद शुरू हो गया।फिल्म के टीज़र में दावा किया गया कि भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस और खुदीराम बोस वीर सावरकर से प्रेरित थे।
फिल्म का विरोध किया जाएगा, यह फिल्म मेकर्स के लिए भी अपेक्षित ही रहा होगा लेकिन जिस तरफ से विरोध हो रहा है, उन्हें शायद इसकी उम्मीद नहीं होगी।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पौत्र चंद्र कुमार बोस विरोध का नेतृत्व कर रहे हैं। यह कहते हुए, “सावरकर साम्प्रदायिक थे और नेताजी की विचारधारा सावरकर से एकदम विपरीत थी, नेताजी बहुत ही धर्मनिरपेक्ष नेता थे। सावरकर हिंदुत्व विचारधारा में विश्वास रखते थे और नेताजी उसके खिलाफ थे।”
पहला प्रश्न यहाँ पर यही है कि चंद्र कुमार बोस कौन हैं? उत्तर मिलता है कि नेता जी के पौत्र, तो क्या नेता जी का पौत्र होना उन्हें नेता जी और नेताजी के विचारों पर एकाधिकार दे देता है? नेता जी पूरे भारत के लिए लड़े थे इसलिए उन्हें एक परिवार तक सीमित नहीं किया जा सकता है। वह पूरे देश की कीमती सम्पति हैं।
हाँ, अगर आपने पुत्र या पौत्र होकर वैसा ही योगदान देश को दिया होता तो आपका विरोध करने का हक़ मिल जाता। यही बात लागू होती है महात्मा गाँधी के पौत्र गोपाल किशन गाँधी’ और महात्मा गाँधी के परपोते तुषार गाँधी पर। जो सिर्फ गांधी जी से रिश्ता होने के कारण महात्मा गाँधी जी के जाने के बाद भी उनके प्रवक्ता बने हुए हैं।
क्या किसी के दादा या पिताजी की विचारधारा समान हो सकती है? अगर नहीं तो फिर उन्हें कैसे रिप्रेजेंट किया जा रहा है? चंद्र कुमार बोस वीर सावरकर के नाम पर संग्रहालय बनने पर कहते हैं कि ‘अंग्रेजों से बार-बार माफी मांगने वाले शख्स के नाम पर संग्रहालय क्यों’?
इन चंद्र कुमार बोस को क्या नेता जी और सावरकर के बीच की हुई मुलाकात याद नहीं?
जब 22 जून, 1940 के दिन सुभाष चंद्र बोस मुंबई पहुंचे और सावरकर के साथ फॉर्वर्ड ब्लॉक और हिंदू महासभा के बीच सहयोग की संभावनाओं के लिए चर्चा हुई थी। इस चर्चा के दौरान सावरकर ने सुभाष को सुझाव दिया कि वह कलकत्ता में होलवेल स्मारक जैसी ब्रिटिश मूर्तियों को हटाने के लिए विरोध प्रदर्शन आयोजित करने में समय बर्बाद न करें। सावरकर ने आगे कहा, “आप देश से बाहर दूसरे विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ खड़ी शक्तियों तक पहुंचें और पहले विश्व युद्ध के बाद जर्मनी में बंद भारतीय कैदियों की मुक्ति करवाएं और एक भारतीय सेना गठन करें।”
इस पूरी चर्चा का जिक्र जापान के लेखक और प्रकाशक युकिकाजु सकुरासावा ने अपनी किताब ‘द टू ग्रेट इंडियंस इन जापान’ में किया है। इसके बाद जब नेताजी हिटलर की सहायता लेने के लिए भी राजी हो गये थे। तो क्या मान लिया जाए कि वे हिटलर की विचारधारा के समर्थक थे?
वहीं टीज़र में दूसरा दावा भगत सिंह को लेकर किया गया है। विक्रम सम्पत भी अपनी पुस्तक ‘Savarkar: A Contested Legacy, 1924-1966′ में बताते हैं कि कैसे वीर सावरकर की पुस्तक का चौथा संस्करण भगत सिंह ने भारत में गुप्त तरीके से प्रकाशित करवाया था, क्योंकि ये अंग्रेजों द्वारा प्रतिबंधित था। विक्रम सम्पत के अनुसार लाहौर के द्वारकादास पुस्तकालय में वीर सावरकर के जीवन को लेकर एक पुस्तक थी, जिसे पढ़ कर भगत सिंह प्रेरित हुए थे।
ऐसी प्रेरणा का जिक्र आने से किसी को समस्या नहीं होनी चाहिए। किसी भी स्वतंत्रा सेनानी का कद इतना सूक्ष्म नहीं है कि इन तथ्यों को उनका अपमान माना जाए।
मीडिया में फुटेज बटरोने से पहले ऐसे कथित उत्तराधिकारियों को याद रखना चाहिए कि विनायक दामोदर सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने 50 वर्ष की काले पानी की सजा दी थी। इसमें उन्हें अंडमान निकोबार में स्थित सेल्यूलर जेल में रहकर तेल की घानी चलाकर प्रतिदिन तेल निकालना पड़ता था।
और आप क्या कर रहे हो? पब्लिसिटी से अपने लिए तेल निकाल रहे हैं? या दादा परदादा का नाम लेकर उनकी ही पब्लिसिटी का तेल निकाल रहे हैं?
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