कैलिफोर्निया की विधानसभा ने स्वास्तिक के पवित्र चिह्न को राज्य में वैध बनाने के लिए सर्वसम्मति से एक कानून पारित किया है। इस कानून में घृणित नाजी प्रतीक को उसके मूल जर्मन नाम ‘हेकेनक्रेउज’ के रूप में मान्यता दी है। कैलिफ़ोर्निया में भारतीय अमेरिकियों की बड़ी आबादी है, जो काफी समय से स्वास्तिक को वैध घोषित करने की मांग कर रहे थे।
इसके साथ ही कैलिफोर्निया हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म के पवित्र प्रतीक ‘स्वास्तिक’ को औपचारिक रूप से वैध बनाने वाला पहला अमेरिकी राज्य बन जाएगा। हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन (एचएएफ) ने इस कदम का स्वागत किया है। एचएएफ के प्रबंध निदेशक समीर कालरा ने हिन्दू, जैन, बौद्ध और पारसियों की धार्मिक मान्यताओं के संरक्षण के लिए सीनेट सदस्य बाउर-कहान को धन्यवाद दिया है।
हिटलर के राजनीतिक प्रतीक से स्वास्तिक हुआ था बदनाम
1933 में जर्मनी की सत्ता पर काबिज हुए एडोल्फ हिटलर ने एक नस्लवादी साम्राज्य बनाया जिसमें यहूदियों के लिए जगह नहीं थी। हिटलर ने यहूदियों के नरसंहार की कई योजना बनाईं जिन्हें ‘होलोकास्ट’ कहा जाता है। हिटलर ने अपनी नात्ज़ी पार्टी का चिह्न स्वास्तिक की एक विकृत आकृति को बनाया था।
‘होलोकास्ट’ इतिहास का वो नरसंहार था, जिसमें छह साल में ही करीब 60 लाख यहूदियों की क्रूरतापूर्वक हत्या कर दी गई थी, जिसमें 15 लाख बच्चे शामिल थे। लाखों यहूदियों को जान बचाने के लिए देश छोड़कर भागना पड़ा था। हिटलर की नात्ज़ी पार्टी का चिह्न ‘हेकन क्रेउज़’ स्वास्तिक जैसा दिखने के कारण दुनिया भर में स्वास्तिक को भी हिंसा का प्रतीक समझ लिया गया था।
दुनिया के कई देशों में स्वास्तिक को किया जा चुका है बैन
अभी तक दुनिया के कई देशों में अपने पास स्वास्तिक रखना एक अपराध की तरह देखा जा रहा था। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के दो राज्यों साउथ वेल्स और विक्टोरिया में स्वास्तिक चिह्न के किसी भी तरह से प्रदर्शन को जुर्म घोषित किया गया था। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड और तस्मानिया में भी स्वास्तिक को प्रतिबंधित करने की बात कही जा रही है।
जुलाई 2020 में फिनलैंड ने अपने एयरफोर्स के प्रतीक से स्वास्तिक निशान को हटा दिया था। गत वर्ष अमेरिका के मैरीलैंड राज्य में स्वास्तिक को बैन करने के लिए बिल पेश किया गया था, जिसका हिन्दू संगठनों ने कड़ा विरोध जताया था। नात्ज़ी चिह्न और स्वास्तिक में अंतर ये है कि स्वास्तिक सीधा होता है जबकि नात्ज़ी चिह्न 45 डिग्री घूमा हुआ होता है।
क्या है स्वास्तिक और इसका अर्थ?
स्वास्तिक शब्द संस्कृत के ‘सु’ उपसर्ग में ‘अस्’ धातु जोड़ने से बना है। संस्कृत में ‘सु’ का अर्थ अच्छा, कल्याणमाय या मंगल होता है, वहीं ‘अस्’ धातु किसी भी प्रकार के अस्तित्व को बताती है। यानि जहाँ भी कल्याण, अच्छाई और मंगल का अस्तित्त्व है वह सब ‘स्वस्ति’ है, इसी ‘स्वस्ति’ के प्रतीक को स्वास्तिक कहते हैं।
जहाँ जहाँ श्री है, शोभा है, सौभाग्य, कल्याण, मंगल और श्रेष्ठता है वह सब ‘स्वास्तिक’ के प्रतीक से अभिव्यक्त हो जाती है। स्वास्तिक प्रतीक में विश्व के चहुँओर विकास की भावना है। अति प्राचीन समय से स्वास्तिक सौभाग्य का प्रतीक है। स्वास्तिक का मूल अर्थ ही सबके कल्याण और सबके लिए शुभकामना और शान्ति से है। लोकभाषा में स्वास्तिक को सातियाँ भी कहा जाता है।
स्वास्तिक की आकृति समेटे है गूढ़ रहस्य
स्वास्तिक की आकृति चारों दिशाओं में समान होती है। यह चारों दिशाएं जीवन के चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतिनिधित्व करती हैं। स्वास्तिक की चार रेखाएं चार वेदों – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद ; चार युगों- कृतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग और चार आश्रमों-ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास का प्रतीक हैं। स्वास्तिक का चिह्न 8 दिशाओं को भी दिखाता है जो हैं पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर, और ईशान।
वेदों में कई मन्त्रों में ‘स्वस्ति’ की कामना की गयी है, जैसे:-
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।।
– यजुर्वेद 25.19
हिन्दू धर्म के सभी शुभकार्यों में यह मंत्र बोला जाता है जिसमें इन्द्र, पूषा, तार्क्ष्य और बृहस्पति से ‘स्वस्ति’ यानि शुभता की प्रार्थना की गयी है। यही चार देवता स्वास्तिक के मध्य चार स्थानों पर चार बिन्दुओं के रूप में दिखाए जाते हैं।
हिन्दू धर्म में बहुत पवित्र प्रतीक है स्वास्तिक
हिन्दू धर्म के सभी शुभ कार्यों में पवित्र चिह्न स्वास्तिक को अंकित किया जाता है। हिन्दू दीवाली और रक्षाबन्धन जैसे त्यौहारों पर अपने घर के दरवाजों के दोनों ओर स्वास्तिक का चिह्न रोली या चन्दन से बनाते हैं, ताकि घर के अंदर शुभ एवं मंगल का ही प्रवेश हो। इसके आलावा हिन्दू अपने नए वाहन, मशीन या अन्य महत्वपूर्ण वस्तुओं पर भी पहली बार उपयोग करने से पहले स्वास्तिक बनाते हैं।
कुछ विद्वान स्वास्तिक की चार भुजाओं को भगवान विष्णु की चार भुजाओं का प्रतीक मानते हैं, व मध्य के बिन्दु को विष्णु जी की नाभि से उत्पन्न ब्रह्माजी का प्रतीक मानते हैं। स्वास्तिक को धन और सौभाग्य की देवी लक्ष्मी जी और बुद्धि के देवता गणेश जी का चिह्न भी माना जाता है, इसलिए दीपावली पर स्वास्तिक चिह्न की भी पूजा की जाती है। व्यापारी लोग अपने बहीखातों पर स्वास्तिक चिह्न जरुर बनाते हैं।
जैन धर्म के प्रतीक चिह्न में है स्वास्तिक
जैन धर्म का सबसे केन्द्रीय चिह्न यदि किसी को माना गया है तो वह स्वास्तिक ही है। जैन धर्म के प्रतीक चिह्न में मनुष्य की चार गतियों के रूप में स्वास्तिक अंकित किया गया है। इसके नीचे एक हाथ का चिह्न है जो संसार के सब प्राणियों को ‘अभय’ देता है। सभी प्राणियों के प्रति अहिंसा को अपना सबसे प्रमुख सिद्धांत मानने वाले जैन धर्म का प्रतीक ‘स्वास्तिक ’ आखिर हिंसा का चिह्न कैसे हो सकता है।
जैन धर्म में स्वास्तिक को ‘आदि-चिह्न’ कहा गया है। दूसरी शताब्दी ईसापूर्व के जैन सम्राट खारवेल के अभिलेख में भी स्वास्तिक का अंकन है। जैन धर्म के सभी मन्दिरों व उनकी ध्वजाओं में भी स्वास्तिक अंकित होता है। श्वेताम्बर जैन स्वास्तिक को अष्टमंगल प्रतीकों में से एक मानते हैं।
बौद्ध धर्म में भी रहा है स्वास्तिक
स्वास्तिक प्राचीन भारत का एक सार्वभौम प्रतीक रहा है। महात्मा बुद्ध की कई प्राचीन मूर्तियों पर स्वास्तिक का अंकन देखने को मिलता है। बौद्ध ग्रन्थों में भगवान बुद्ध के चरणों में स्वास्तिक चिह्न का वर्णन है। बुद्ध की मूर्तियों में उनके हृदय व कंठ के पास स्वास्तिक का चिह्न होता है। परन्तु बौद्ध धर्म का स्वास्तिक प्रायः वामावर्त यानि anticlockwise होता है। शायद प्राचीन काल में हिन्दू व बौद्धों के मध्य दार्शनिक मतभेदों के कारण ऐसा प्रतीक अपनाया गया होगा।