वास्को डी गामा के 15वीं शताब्दी अंत में कदम रखने के बाद से ही भारत के जनमानस की लड़ाई स्वधर्म, खुद की भाषा और स्वराज के इर्द-गिर्द घूमती रही है।भारत की आजादी की लड़ाई में ‘स्वराज’ या राजनीतिक स्वतंत्रता इसका मूल रहा है।
भारत अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में अपने गौरवशाली इतिहास, स्वतंत्रता प्राप्ति के संघर्ष की लड़ाई को ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मनाकर याद कर रहा है।
भारत की स्वतंत्रता की इस लड़ाई की कहानी को आम जनमानस में प्रभावी तरीके से पंहुचाने के लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने एक नए टीवी कार्यक्रम ‘स्वराज’ का दूरदर्शन पर प्रसारण चालू किया है।
स्वराज कार्यक्रम का उद्देश्य उन स्वातंत्र्य वीरों के बारे में आम जनमानस को बताना है, जिनके बारे में आज तक बहुत कम लिखा -पढ़ा गया है। कई क्षेत्रीय भाषाओं में प्रसारित होने वाले इस कार्यक्रम की शुरुआत अगस्त 05, 2022 को आकाशवाणी भवन में गृह मंत्री अमित शाह और केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर की उपस्थिति में हुई।
इस कार्यक्रम के पहले एपिसोड प्रसारण अगस्त 14, 2022 को किया गया, वहीं आकाशवाणी इस कार्यक्रम को अगस्त 20, 2022 (शनिवार) से रेडियो पर सुनने वालों के भी लिए प्रसारित कर रहा है।
इस कार्यक्रम को भारत की अधिकाधिक जनता तक पंहुचाने के लिए इसे तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, मराठी, गुजराती, बंगाली, उड़िया और असामी तथा अंग्रेजी भाषाओँ में भी प्रसारित किया जा रहा है। कार्यक्रम के प्रोमो में भारत की महान संस्कृति, विविध भाषाओं और धार्मिक मूल्यों को प्रदर्शित किया गया है।
15वीं शताब्दी के बाद से भारत को व्यापारियों के भेष में आए विदेशी आक्रांताओं का कोप झेलना पड़ा। बाहर से व्यापारी के भेष में आए यह भेड़िये, भारत रुपी सोने की चिड़िया को कैद करने के उद्देश्य से आए थे। स्वराज, भारत के उन मूल्यों को पुनर्जीवित करने का एक प्रयास है जिन्हें इन विदेशी आक्रांताओं के शासन के दौरान नष्ट कर दिया गया था।
भारत में आज तक जितने भी कार्यक्रम स्वतंत्रता की गाथा के ऊपर बनाए गए हैं, उनमें भारत के उत्तरी हिस्से के क्रांतिकारियों का ही ज्यादा वर्णन किया गया है। जबकि आजादी की लड़ाई में बहुत से आदिवासियों, महिलाओं और भारत के विभिन्न हिस्सों से आए हुए क्रांतिकारियों का योगदान था जिनके मन में भारत माता के लिए अगाध श्रद्धा थी।
इस कार्यक्रम को तीन चरणों में बांटा गया है। पहले चरण में 1498-1757 के बीच के संघर्ष को प्रदर्शित किया गया है। वहीं दूसरे चरण में 1761 से 1818 और तीसरे चरण में 1905–1947 के बीच के संघर्ष को प्रदर्शित किया गया है।
इन अनकही कहानियों में स्वातन्त्र्य वीरों और वीरांगनाओं जैसे कि रानी अब्बक्का, बक्शी जगबंधु, तिरोत सिंह, सिद्धो मुर्मू और कान्हू मुर्मू, शिवप्पा नायक, कान्होजी अंगरे तथा रानी गाइदिन्ल्यु और तिलका मांझी, रानी लक्ष्मीबाई और छत्रपति शिवाजी महाराज आदि की कहानी दिखाई जाएगी।
इसमें से कुछ वीरों और वीरांगनाओं के बारे में आज हम आपको बता रहे हैं –
रानी अब्बक्का
उल्लाल की वीरांगना रानी अब्बक्का ने पुर्तगालियों से 16वीं शताब्दी में लोहा लिया और उनके दांत खट्टे कर दिए। पुर्तगालियों की कैद में आखिरी सांस लेने से पहले उन्होंने पुर्तगालियों की सेना के नाक में दम करके रखा। कुशल नौसेना संचालन के लिए उन्हें भारत की नौसेना द्वारा याद किया जाता है।
रानी गाइदिन्ल्यु
मणिपुर के लुआंगकाओ गाँव से सम्बन्ध रखने वाली रानी गाइदिन्ल्यु को उनके शौर्य और वीरता के लिए भारत के स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में याद किया जाता है। महज 13 साल उम्र में उन्होंने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया और नागा साम्राज्य की अंग्रेज आताताइयों से मुक्ति के लिए संघर्ष किया। इसके कारण उन्हें आजीवन कारावास की यातना अंग्रेजो ने दी, 14 वर्ष जेल में रहने के बाद 1947 में वह मुक्त हो गईं।
कान्होजी आंग्रे
कान्होजी आंग्रे का जन्म महाराष्ट्र के आंगरवाड़ी गाँव में हुआ था, वे मराठा नौसेना में कमांडर थे। अंग्रेजों के खिलाफ बहुत बहादुरी से अपनी सेना का नेतृत्व करते हुए उन्होंने शौर्य का परिचय दिया। उन्होंने अपने सैन्य जीवनकाल में अंग्रेजो के खिलाफ एक भी युद्ध नहीं हारा। 1729 में उनकी मृत्यु हो गई।
बक्शी जगबंधु
1817 के पाइका विद्रोह का नेतृत्व करने वाले बक्शी जगबंधु का पूरा नाम जगबंधु महापात्रा भारम्बर रे था। उन्होंने अंग्रेजों द्वारा अपनी कर-मुक्त जमीनों पर कब्जे के खिलाफ लड़ाई लड़ी। अंग्रेजों के द्वारा कई विफल प्रयास करने के बाद उन्हें जगबंधु के सामने झुकना पडा। जगबंधु की मृत्यु 1829 में कटक में हो गई।
इस कार्य्रकम का मुख्य उद्देश्य भारत के शौर्य और संघर्ष से भरे इतिहास को नई पीढ़ी के सामने रखना है। यह कार्यक्रम बताता है कि आज के सफल, सेक्युलर और वैश्विक स्तर पर पहचान रखने वाले भारत के निर्माण में कितना संघर्ष लगा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा 75वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से भारत के इतिहास और संस्कृति पर गर्व करने और औपनिवेशिक चिन्हों को हटाने की अपील की गई थी, यह कार्यक्रम उसी कड़ी का एक हिस्सा है।