देश के शीर्ष न्यायालय ने मोदी सरकार द्वारा कमजोर तबकों को 10% आरक्षण दिए जाने के फैसले को वैध बताया है। पाँच सदस्यीय बेंच ने इस विषय में आज अपना अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि यह संविधान के आधारभूत ढाँचे को प्रभावित नहीं करता है।
मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के आखिरी महीनों में वर्ष 2019 में देश के अंदर आर्थिक रूप से कमजोर ऐसे वर्गों को जो कि अभी किसी भी आरक्षण का लाभ नहीं पा रहे हैं, 10% आरक्षण देने की घोषणा कर संविधान में 103वाँ संशोधन किया था, जिसे संसद द्वारा भी पारित कर दिया गया था।
इस आरक्षण का मुख्य उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) को मजबूत करना था।
इस आरक्षण के प्रभावी होने के बाद से ही लगातार कई याचिकाएँ इस आरक्षण के वैधानिक पक्ष को लेकर डाली जा चुकी हैं। इसके पीछे आरक्षण में 50% आरक्षण की सीमा के हटने सहित अन्य मुद्दे थे। आज जिस याचिका पर फैसला आया है, उस मुकदमे का शीर्षक ‘जनहित अभियान बनाम भारत सरकार’ था।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर एक पाँच सदस्यीय बेंच का गठन किया था, आज इस मुद्दे पर फैसला आना था। ध्यात्वय है कि यह उन प्रमुख मामलों में से एक है जिसे भारत के मुख्य न्यायधीश यूयू ललित अपनी सेवानिवृत्ति के पहले निपटा रहे हैं। कल यानी 8 नवंबर को वह सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
वैधानिक मामलों की जानकारी देने वाली वेबसाइट ‘लाइव लॉ’ के मुताबिक़, न्यायमूर्ति यूयू ललित के अलावा जज बेला त्रिवेदी, जेबी पारदीवाला, दिनेश माहेश्वरी और रविन्द्र भट्ट वाली बेंच ने अपने फैसले में कहा कि यह EWS आरक्षण 50% आरक्षण सीमा के आधार पर भारत के संविधान का उल्लंघन नहीं करता क्योंकि यह सीमा लचीली है।
वहीं न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने कहा कि इसे सरकार के सकारात्मक कदम की तरह देखा जाना चाहिए, इसे हम एक अतार्किक वर्गीकरण नहीं कह सकते। अन्य वर्गों को इसमें शामिल ना करना संविधान का उल्लंघन नहीं करता।
वहीं 3 जजों के फैसले से अलग रुख अपनाते हुए मुख्य न्यायधीश यूयू ललित और रविन्द्र भट ने कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण उल्लंघनीय नहीं है। लेकिन अन्य वर्गों जैसे कि अनूसोचित जाति/जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों इसमें शामिल ना करना एक प्रकार का भेदभाव है।
सरकार के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की मोहर ऐसे समय में लगी है जब दो राज्यों में चुनाव चल रहे हैं। ऐसे में यह देखने वाला होगा कि राजनीतिक पार्टियां इसको किस तरह से लेती है। यह स्पष्ट है कि यह मुद्दा आने वाले कुछ दिनों तक चर्चा का विषय रहेगा।