देश में पिछले कुछ समय से जारी केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच कॉलेजियम की बहस थमने का नाम नहीं ले रही है। केन्द्रीय कानून मंत्री किरेन रिजीजू और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ समेत कई विपक्षी नेताओं द्वारा कॉलेजियम पर सवाल उठाए जा चुके हैं।
इस बीच सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति की सहमति के केंद्र को भेजे गए नामों पर भी बहस जारी है। हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट में जज सौरभ किरपाल की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और उस पर केंद्र के एतराज ने खूब सुर्खियाँ बटोरी थीं।
अब कोर्ट द्वारा भेजे गए जजों के तबादले के नामों को केंद्र सरकार द्वारा मंजूरी ना दिए जाने और उनमें देरी करने तथा अपनी आपत्तियां जताने पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा है कि आने वाले समय में वह इन कारणों के आधार पर कड़े एक्शन ले सकता है जो केंद्र सरकार को अच्छे नहीं लगेंगें।
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मामला सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम द्वारा 10 जजों के तबादले से जुड़ा हुआ है। कानूनी मामलों की जानकारी देने वाली वेबसाइट लाइव लॉ के अनुसार, इस मामले को सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश एसके कॉल और ऐएस ओका वाली बेंच ने कहा कि इन जजों के तबादले के मामले सितम्बर, 2022 और नवम्बर, 2022 के अंतर में केंद्र सरकार को भेजे गए थे। केंद्र सरकार का इन पर कोई भी फैसला ना लेना गलत संकेत भेजता है।
कुछ हाईकोर्ट के जजों के तबादले को लेकर राज्य के बार असोसिएशन ने भी विरोध किया है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह जजों के तबादले के मामले में किसी अन्य तीसरे पक्ष को इस मामले में अपने खेल नहीं खेलने देगा।
हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट के बार असोसिएशन ने वर्तमान मुख्य न्यायधीश टी राजा के तबादले को लेकर अपना विरोध जताया था। इससे पहले 18 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट में नियुक्ति के लिए वर्ष 2021 में सुझाए गए सौरभ किरपाल के नाम पर भी दृढ़ता जताई थी।
गौरतलब है कि वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ किरपाल सार्वजनिक रूप से गे हैं, उनके एक स्विस नागरिक से सम्बन्ध हैं। केंद्र सरकार ने यही आपत्तियां कोर्ट के सामने रखी थी।
मामले में केंद्र ने ख़ुफ़िया एजेंसियों द्वारा दी गई जानकारियों का हवाला भी दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को लेकर केंद्र सरकार से कहा है कि किसी व्यक्ति की यौन पसंद उसकी नियुक्ति करने या ना करने के लिए आधार नहीं बनाई जा सकती है।
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इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सौरभ किरपाल द्वारा इस के प्रति खुले विचार रखने की प्रशंसा भी की थी। इसके जवाब में केन्द्रीय कानून मंत्री किरेन रिजीजू ने कहा था कि कोर्ट द्वारा इस तरह से ख़ुफ़िया एजेंसियों IB और RAW की रिपोर्ट को सार्वजनिक करना गहरी चिंता का विषय है।
रिजीजू ने कहा था कि अगर यह रिपोर्ट सार्वजनिक की जाती हैं तो इन एजेंसियों के अधिकारी अगली बार काम करने से पहले दो बार सोचेंगें। गौरतलब है कि केंद्र और उच्चतम न्यायालय के बीच लम्बे समय से कोलेजियम द्वारा जजों की नियुक्ति और भेजे गए नामों पर सहमति के मामले को लेकर बहस चली आ रही है।
कुछ समय पहले देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राज्य सभा के शीतकालीन सत्र के प्रारम्भ होने पर कहा था कि वर्ष 2015 में सुप्रीम कोर्ट का संसद द्वारा सर्वसम्मति से पास किए गए जजों की नियुक्ति NJAC को रद्द करने के फैसले जैसा उदाहरण दुनिया के किसी भी लोकतंत्र में नहीं मिलता है।
विपक्ष के सांसद जैसे कि राजीव शुक्ला समेत कई माननीय इस मामले को संसद में उठा चुके हैं, इस पर सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा भी सरकार को इस बात पर समर्थन किया जा रहा है कि देश की न्यायिक व्यवस्था में पिछड़े तबकों और महिलाओं के उचित प्रतिनिधित्व को लेकर सरकार कानून लाए और सुनिश्चित करे।