सुप्रीम कोर्ट ने सिक्किम (Sikkim) में टैक्स में छूट को लेकर 13 जनवरी के अपने फैसले से सिक्किम-नेपालियों को ‘विदेशी मूल के लोग’ बताने वाले संदर्भ को बुधवार (8 फ़रवरी, 2023) को अपने आदेश से हटा लिया है। शीर्ष अदालत द्वारा अपने फैसले में की गई टिप्पणी के बाद सिक्किम में विरोध प्रदर्शन तेज हो गया था। बहुसंख्यक सिक्किम-नेपाली समुदाय ने इस पर कड़ा विरोध दर्ज किया था।
कुछ दिन पहले सिक्किम जल उठा था। सिक्किम के लोग लोग सड़कों पर उतरे हुए थे और राजनीतिक उठा पटक जोरों पर रही। इस सबके पीछे वजह था सुप्रीम कोर्ट का एक बयान।
13 जनवरी, 2023 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सिक्किम के नेपालियों को ‘विदेशी मूल के व्यक्ति’ बताए जाने पर बहुत दिनों से बवाल मचा हुआ है। इसके ख़िलाफ़ केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका दायर की है।
क्या है सिक्किम में विवाद की वजह
दरअसल, पूर्वोत्तर के राज्य सिक्किम के नेपाली समुदाय को ‘बाहरी’ बताने वाले सुप्रीम कोर्ट के बयान पर नाराज़गी जताते हुए वहां स्थानीय समुदाय के लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। यहाँ पर ध्यान देने की बात ये है कि सिक्किम पहले भारत का हिस्सा नहीं था और 1975 में इसका भारत से विलय हुआ।
ग़ौरतलब है कि इस वक्त सिक्किम में जो सबसे ज़्यादा आबादी है, वो नेपालियों की ही है। सिक्किम की 6,10,000 से अधिक आबादी में सबसे ज़्यादा लोग नेपाली हैं, जिन्हें कि अब ‘बाहरी’ बताया गया है। अब जब कोर्ट ने अपने ज्ञान देने की आदत के चलते ‘उन्हें’ ही बाहरी बता दिया, तो बवाल तो होना ही था।
वहीं कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा गया है कि सिक्किम में बसे ‘विदेशी मूल’ के व्यक्तियों, जैसे नेपालियों के बारे में दिये गये आदेश पर फिर विचार होना चाहिए क्योंकि वो लोग नेपाली मूल के सिक्किमी हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस बयान के बाद सिक्किम में खलबली मच गई और नेपाल मूल के लोग इसके विरोध में सड़कों पर उतर आए। वहीं, केंद्र सरकार ने संविधान के आर्टिकल 371F को सबसे ऊपर मानते हुए कहा कि ये क़ानून सिक्किम निवासियों की पहचान की रक्षा करता है और इसे कमजोर नहीं किया जाना चाहिए।
कोर्ट के इस बयान से लोग कितने ग़ुस्से में हैं, उसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कोर्ट के इस बयान के विरोध में सिक्किम की सत्ताधारी पार्टी सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा ने भी शांति मार्च निकाला है। सिक्किम के मुख्यमंत्री तमांग ने भी सिक्किम के नेपाली समुदाय को विदेशी बताने पर नाराज़गी जताई है।
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आखिर सिक्किम के असली लोग कौन हैं?
अक्सर सिक्किम के मूल निवासियों को सिक्किमी कहा जाता है। इसमें नेपाली समुदाय के साथ भूटिया और लेप्चा भी शामिल हैं । इसके साथ-साथ ऐसे दावे भी किए जाते हैं कि सिक्किम के भारत में विलय होने से पहले वहां कई सालों से बसे कुछ परिवारों को स्वर्गीय राजा चोग्याल ने वहां की नागरिकता प्रमाण पत्र सौंपे थे, और उन लोगों को भी सिक्किमी माना जाता है।
अब इस सुप्रीम कोर्ट के नये बयान ने सिक्किम में 3 प्रमुख समूह लेप्चा, भूटिया और नेपालियों की अस्मिता और पहचान के मामले ने एक नया दंगल छेड़ दिया है। यानी अब सवाल सीधा-सीधा ‘सिक्किमियों’ के अस्तित्व पर लगा दिया गया है।
विवाद के पीछे का इतिहास क्या है
सिक्किम के उस वक्त के राजा चोग्याल द्वारा बनाए गये सिक्किम सब्जेक्ट रेगुलेशन 1961 के तहत सिक्किम के विषयों का एक रजिस्टर बनाया गया था। इस रजिस्टर को सिर्फ़ सिक्किमियों तक सीमित रखा गया था जो 26 अप्रैल 1975 को सिक्किम के भारत में विलय से पहले सिक्किम में बस गए थे। समझौते की शर्तों के अनुसार, सिक्किम के ऐसे लोग भारतीय आयकर का भुगतान करने से बाहर रखे गये थे।
सिक्किम के भारत में पूर्ण राज्य बनने के बाद, 1975 में केंद्र सरकार द्वारा एक अधिसूचना जारी की गई, जिसमें घोषणा की गई कि सभी सिक्किमी भारतीय नागरिक हैं। बाद में, 1989 में जारी एक आदेश के माध्यम से इन मामलों की समीक्षा की गई और सिक्किम सब्जेक्ट रजिस्टर में जोड़ा गया।
1989 के आदेश ने दो श्रेणियों के लोगों को फ़ायदा पहुँचाया, जिसमें भूटिया-लेप्चा, शेरपा, नेपाली और अन्य बसने वाले लोग शामिल थे। ये वो लोग थे जिन्होंने भारत में विलय से पहले सिक्किम की नागरिकता के पक्ष में अपनी नागरिकता छोड़ दी थी। इन दो श्रेणियों में कुल जनसंख्या का लगभग 94.6% शामिल है। सिक्किम के बाक़ी 5% निवासियों में से 1.50%भारतीय मूल के पुराने निवासी थे और शेष 3.84% नए निवासी थे, जिनमें भारतीय मूल के लोग भी शामिल थे।
इसके बाद आते हैं साल 2008 में, जब आयकर अधिनियम 1961 की धारा 10 (26AAA) के तहत आयकर अधिनियम ने उन सभी भारतीय नागरिकों को छूट दी, जिनके नाम सिक्किम सब्जेक्ट नियम 1961 के तहत बनाए गए सिक्किम सब्जेक्ट के रजिस्टर में मौजूद थे।
आम भाषा में कहें तो साल 2008 में जारी की गई इस आयकर छूट में 1975 के बाद सिक्किम में रहने वाले भारतीय नागरिकों को शामिल नहीं किया गया था और उन सिक्किमी महिलाओं को भी शामिल नहीं किया गया था जो ग़ैर-सिक्किम पुरुष से शादी करती हैं।
अब थोड़ा सा याद करते हैं 13 जनवरी के जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस नागरत्ना की बेंच के उस बयान को जिसमें उन्होंने कहा कि महिला किसी की जायदाद नहीं है और उसकी अपनी एक पहचान है और केवल विवाहित होने की वजह से उस पहचान को नहीं छीनना चाहिए। यहीं पर नेपालियों को ले कर कोर्ट ने जो बाहरी शब्द इस्तेमाल किया उस पर लोग नाराज़ हो गये हैं।
क़रीब 10 साल पहले, साल 2013 में ‘एसोशिएशन ऑफ ओल्ड सेटलर्स ऑफ़ सिक्किम’ के लोगों ने 1975 से पहले सिक्किम में रहने वाले नागरिकों को इनकम टैक्स में दी जाने वाली छूट को चुनौती दी और सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। ये क़रीब 500 परिवार थे।
ये याचिका डालने वाले लोगों का कहना था कि इस छूट में इन दोनों को शामिल करने से भेदभाव किया गया है। और इस से संविधान ने जो समानता का मौलिक अधिकार दिया था, उसमें भी बाधा आ रही है। इस पर कोर्ट ने कहा था कि इनकम टैक्स में छूट का फ़ायदा सिक्किम में रहने वाले सभी भारतीय नागरिकों को दिया जाना चाहिए।
इस फ़ैसले में जज ने कहा कि सिक्किम आयकर नियम 1948 के अनुसार, “व्यवसाय करने वाले सभी लोगों को उनके मूल के बावजूद आयकर में शामिल किया गया था, इसलिए सिक्किम के मूलनिवासियों यानी, भूटिया- लेप्चा, और सिक्किम में पीढ़ियों पहले बस चुके विदेशी मूल के व्यक्तियों – जैसे नेपालियों या भारतीय मूल के व्यक्तियों के बीच कोई अंतर नहीं किया गया था।”
इस फ़ैसले में याचिका डालने वालों के इस तर्क को भी सुना गया कि ‘नेपाली प्रवासियों’, जो कि ‘एक समय सिक्किम में चले गए और फिर वहां बस गए, या भारतीय मूल के प्रवासी, वे सभी आयकर अधिनियम 1961 के सेक्शन 10 (26AAA) का लाभ ले रहे थे। लेकिन अन्य भारतीय मूल के बसने वालों को मनमाने ढंग से बाहर कर दिया गया। इसके बाद 13 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 10 (26AAA) में दी गई टैक्स छूट का लाभ सिक्किम के सभी लोगों तक बढ़ाया जाएगा।
भारतीय सुप्रीम कोर्ट के मूल में उपनिवेशवाद है
आँकड़ों की बात करें तो साल 2011 की जनगणना के हिसाब से सिक्किम की 6,10,000 आबादी में लेप्चा और भूटिया कुल आबादी का 27% है और वे मुख्य रूप से बौद्ध हैं। वहीं सिक्किम के नेपालियो की आबादी यहाँ क़रीब 70% है और वही बहुसंख्यक भी हैं। ख़ास बात ये है कि ये बहुसंख्यक आबादी हिंदू है।
यह सारा विवाद इनकम टैक्स और नागरिकता को ले कर उठा।ये मुद्दा विवाद शायद बनता भी नहीं अगर सुप्रीम कोर्ट ने लोगों के लिए विदेशी शब्द का इस्तेमाल ही नहीं किया होता। अब ये 95% सिक्किमियों और 5% बाहरी लोगों के बीच लड़ाई का टॉपिक बन गया है।
जाहिर सी बात कोर्ट के एक ग़ैरजिम्मेदाराना बयान ने सिक्किम को युद्ध का मैदान बना दिया है। कोर्ट इस से पहले भी अपनी ऐसी आदतों के कारण समाज को जान-अनजाने बाँटने का काम कर चुकी है। आपको कुछ ही महीने पहले का नूपुर शर्मा का मामला तो याद होगा ही, जिसके चलते 6 लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी। उस वक्त भी लोग हिंदू-मुसलमान की बहस में शामिल हो गये और उसके बाद जो कुछ हुआ वो हम सबके सामने है।
कोर्ट का काम समाज में शांति व्यवस्था और न्याय की स्थापना करना होता है, ना कि लोगों के बीच आपसी टकराव पैदा करना। कोर्ट को सिक्किम के नागरिकों की पहचान पर हमला करने की ज़रूरत ही नहीं थी लेकिन क्या करें, कोर्ट है कि मानता नहीं। इस प्रकार के बयान देश की एकता और अखंडता के लिए कितना ख़तरा पैदा कर सकते हैं वो हम सभी देख रहे हैं।