उपासना स्थल अधिनियम (विशेष प्रावधान) 1991 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार को जवाब देने के लिए 31 अक्टूबर, 2023 तक का समय दे दिया है।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि पूरे भारत में विभिन्न अदालतों (उच्च न्यायालय- जिला अदालत) में धार्मिक स्थलों से सम्बन्धित मामलों पर रोक लगाने के लिए उपासना स्थल अधिनियम (विशेष प्रावधान) 1991 (Places of Worship Act (Special Provisions) 1991) का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
धार्मिक स्थलों से सम्बन्धित मामलों में रोक लगवाने के लिए याचिकाकर्ता को उन अदालतों से स्टे ऑर्डर लेना होगा, जहाँ वे मुकदमा दायर कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया है कि विभिन्न अदालतें उक्त अधिनियम का सहारा लेकर रोक का आदेश दे सकती है।
ऐसे में स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट इस अधिनियम को लागू करके धार्मिक स्थलों से सम्बन्धित सभी मुकदमों पर पूर्ण रूप से रोक नहीं लगा सकता है।
इसका अर्थ यह है कि सुप्रीम कोर्ट याचिकाकर्ता को उपासना के अधिकार सहित अपनी शिकायतें दर्ज करने का एक रास्ता खोल रहा है।
हालाँकि अधिनियम की संवैधानिकता को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई है, लेकिन यह स्वत: ही अधिनियम के लागू होने पर रोक नहीं लगाता है।
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को व्यक्तिगत मामले के स्तर पर आपत्ति दर्ज करने की भी अनुमति दी है।
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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जवाब देने के लिए पहले भी कई बार मोहलत दे चुका है। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा था कि वह 12 अक्टूबर 2022 तक जवाब दाखिल करे। फिर कोर्ट ने 31 अक्टूबर 2022 तकका वक्त दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर केंद्र सरकार से कहा था कि वह फरवरी 2023 के आखिर तक जवाब दाखिल करें।
दरअसल, जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से वकील बृंदा ग्रोवर ने दलील दी कि एक दखल याचिका दायर है और एक्ट पर स्टे की माँग है। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि इस एक्ट पर कोई स्टे नहीं है, मामला पेंडिंग होने का मतलब यह नहीं है कि एक्ट पर स्टे है।
वहीं, सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मामले को सरकार अभी देख रही है। इस मामले में समग्र और विस्तृत जवाब दाखिल किया जाएगा।
बता दें कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 12 मार्च, 2021 को केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया था। बीते वर्ष 29 जुलाई को इस अधिनियम को चुनौती देने वाले 6 याचिकाकर्ताओं से सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह इस मामले में पहले से लम्बित मामले में ही हस्तक्षेप याचिका दायर करें।
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