सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार के दिन एक अहम फैसला देते हुए कहा है कि अब चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति देश के प्रधानमंत्री, लोकसभा के नेता विपक्ष और देश के मुख्य न्यायाधीश वाले कॉलेजियम के सुझाव पर राष्ट्रपति करेंगें। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला कुछ याचिकाओं की सुनवाई करते हुए दिया है।
यह फैसला जस्टिस केएम जोसफ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय बेंच ने सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने देश के राजनीतिक दलों पर सालों तक सत्ता में रहने के बावजूद नियुक्ति के मामले को लेकर मजबूत ढांचा ना बनाने का आरोप भी लगाया है। इस फैसले के बाद अब सुप्रीम कोर्ट का भी चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में रोल होगा। अभी तक मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य आयुक्तों की नियुक्ति मंत्रिपरिषद की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 324(2) में किया गया है।
बेंच ने अपने फैसले में कहा है, “कोई भी प्रक्रिया जो इस न्यायालय के समक्ष चुनाव प्रक्रिया में सुधार करना चाहती है, उस पर विचार किया जाना चाहिए।” सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान ‘मीडिया की निष्पक्षता’ पर भी चिंता जताई है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कई दलीलों को शामिल किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस कॉलेजियम के निर्माण का फैसला उस सुझाव के आधार पर दिया है जिसमें कहा गया था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए देश के प्रधानमंत्री, लोकसभा के नेता विपक्ष और मुख्य न्यायाधीश वाला एक कॉलेजियम करे।
वर्तमान में देश के चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो आयुक्त होते हैं। इस याचिका को अनूप बरनवाल द्वारा दायर किया गया था, याचिका रखने वालों में प्रशांत भूषण भी हैं। भूषण के द्वारा ही बेंच के सामने इस कॉलेजियम का सुझाव दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक मत से हुआ है, यानी पाँचों में से किसी जज ने इससे अपनी असहमति नहीं जताई है।