सुचेता दलाल पत्रकारिता में जाना-माना नाम हैं, कुछ उनके काम के कारण तो कुछ उनके सत्ता के गलियारों में दबदबे के कारण। 60 वर्षीय पत्रकार वर्ष, 1984 में फॉर्च्यून इंडिया के साथ अपना पत्रकारिता करियर शुरू करने के बाद बिजनेस स्टैंडर्ड और द इकोनॉमिक टाइम्स जैसे अन्य मीडिया हाउस के साथ काम कर चुकी हैं।
सुचेता दलाल की खोजी पत्रकारिता में सबसे चर्चित मुकदमा 1992 का है जब वे टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ काम करती थीं और उन्होंने हर्षद मेहता के साथ कई बैंकरों और राजनेताओं द्वारा किए गए शेयर बाजार घोटाले की कहानी बताई थी, जिसमें बाजार में हेरफेर किया गया था। इसके बाद वे वर्ष, 2001 में सामने आए केतन पारेख स्टॉक मार्केट घोटाले में भी प्रमुख शख्सियतों में से एक थीं, जिसके बाद स्टॉक मार्केट में बड़ी गिरावट आई थी।
अब दलाल एक बार फिर ‘कैश फॉर क्वेश्चन’ विवाद के दौरान चर्चा में आई हैं। इस विवाद में टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा पर आरोप है कि उन्होंने संसद में पूछे गए 61 में से 50 सवाल बिजनेसमैन गौतम अडानी को निशाना बनाकर पूछे थे। साथ ही उन पर आरोप है कि उन्होंने यह प्रश्न अडानी के प्रतिद्वंदी, व्यवसायी दर्शन हीरानंदानी के कहने पर और अपने निजी राजनीतिक करियर को आगे बढ़ाने के लिए पीएम मोदी पर निशाना साधने के लिए किया था। एक हस्ताक्षरित हलफनामे के जरिए हीरानंदानी ने दावा भी किया है कि उनके पास वास्तव में मोइत्रा की लोकसभा लॉगिन क्रेडेंशियल्स का विवरण था, जिसके माध्यम से उन्होंने अडानी को टारगेट करते हुए प्रश्न पूछे थे। साथ ही उन्होंने कि मोइत्रा को कई मंहगी और लग्जरी वस्तुएं उपहार में दी थीं और उनके आधिकारिक आवास के रेनोवेशन में भी मदद की थी।
अपने हलफनामे में हीरानंदानी ने कुछ अन्य लोगों के नाम भी लिए हैं। जिनके बारे में उनका दावा है कि वे अपने व्यापारिक प्रतिद्वंद्वी अडानी और साथ ही पीएम मोदी को निशाना बनाने के लिए कुछ प्रश्न पूछने में महुआ मोइत्रा की मदद करने में शामिल थे। इन नामों में राहुल गांधी, शशि थरूर जैसे विपक्षी दलों के नेताओं के अलावा पत्रकार सुचेता दलाल और प्रमुख वकील शार्दुल और पल्लवी श्रॉफ का नाम भी शामिल है।
हालांकि, सुचेता दलाल ने एक्स के जरिए दावा किया है मोइत्रा ने उनसे मदद के लिए कभी संपर्क किया ही नहीं है। जबकि, सुचेता दलाल औऱ मोइत्रा के बीच एक पुरानी ट्विटर बातचीत का स्क्रीन शॉट वायरल हो रहा है जो कि उनके दावों से बिलकुल विपरीत तस्वीर दिखा रहा है।
दरअसल, सुचेता ने शुक्रवार (20 अक्टूबर, 2023) को एक्स के जरिए कहा कि उपरोक्त बातचीत निर्णायक नहीं है। उन्होंने दावा किया कि वह कभी भी महुआ मोइत्रा के साथ संपर्क में नहीं आई हैं।
वास्तव में दलाल ने रवि मुथरेजा का नाम लेते हुए दावा किया है कि वह अडानी के साथ-साथ एस्सार के लिए भी संचार संभालता है, जिसका उल्लेख मोइत्रा के साथ ट्वीट बातचीत में किया गया है। उनका कहना है कि यही कारण है कि उनका नाम विवाद में घसीटा गया है।
हालांकि, सुचेता दलाल के दावे के बीच ही सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने एनएसईएल घोटाले का जिक्र करना शुरू कर दिया। इसमें आरोप था कि दलाल को नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) घोटाले के बारे में 15 महीने पहले से पता था।
एनएसईएल घोटाला
नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) की स्थापना वर्ष, 2008 में भारत के पूर्व प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में जिग्नेश शाह द्वारा की गई थी। इसका उद्देश्य विनिर्माण और कृषि उपज दोनों के लिए एक ही बाजार बनाने का था।
ज्ञात हो कि एनएसईएल भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के स्वामित्व में स्थापित पहला स्पॉट एक्सचेंज था। हालांकि इसके संबंध में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के साथ-साथ आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) के नेतृत्व में जांच से पता चला कि दलालों ने अपने ग्राहकों को निश्चित रिटर्न का आश्वासन देकर एनएसईएल उत्पादों को गलत तरीके से बेचा है। डिफॉल्टरों ने स्टॉक को गिरवी रखा और फर्जी गोदाम रसीदें तैयार करके डिफॉल्ट का पैसा निकाल लिया।
इसके उपरांत जुलाई 2019 में पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम और दो अन्य अधिकारियों, केपी कृष्णन और रमन अभिषेक पर 63 मून्स टेक्नोलॉजी के संस्थापक जिग्नेश शाह द्वारा सत्ता के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया था।
शाह ने आरोप लगाया था कि चिदंबरम ने नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) की मदद करने के लिए गलत इरादे से एनएसईएल को नष्ट करने के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया। इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने तीनों को तलब किया था और 63 मून्स को हर्जाना मुकदमा दायर करने की अनुमति दी थी।
एनएसईएल और सुचेता दलाल
इस मामले में सुचेता दलाल का नाम तब सामने आया जब अक्टूबर 2015 में एनएसईएल के निवेशक एनएसईएल इन्वेस्टर एक्शन ग्रुप जो कि धोखाधड़ी के शिकार थे और जांच से असंतुष्ट थे, ने मुंबई पुलिस आयुक्त को एक पत्र लिखकर घोटाले में दलाल की संदिग्ध भूमिका का आरोप लगाया था।
एक पत्र के अनुसार, सुचेता दलाल को एनएसईएल घोटाले के बारे में मई 2012 से पता था, इसके सार्वजनिक होने से कुछ महीने पहले।
8 मई, 2012 के मेल में एनएसईएल के संचार कर्मियों को संबोधित किया गया था और इसकी एक प्रति अंजनी सिन्हा, देबाशीष साहू, सेतु शाह और जिग्नेश शाह को भेजी गई थी। सुचेता ने एनएसईएल के भीतर लेनदेन की प्रकृति पर सवाल उठाए थे।
मेल में उन्होंने लेन-देन की मात्रा में बढ़ोतरी को लेकर भी चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने बताया था कि आईबीएमए (इंडियन बुलियन मार्केट एसोसिएशन) एनएसईएल प्लेटफॉर्म पर ब्रोकर के रूप में काम कर रहा था। आईबीएमए एनएसईएल की सहायक कंपनी थी और यह अंदरूनी व्यापार के समान होगा। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि कैसे लेन-देन स्पॉट कॉन्ट्रैक्ट नहीं थे बल्कि अवैध थे, जिसके बारे में किसी भी निवेशक को जानकारी नहीं थी।
उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि यह कैसे एक ‘रेडी फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट’ ट्रेड है। सुचेता दलाल जो कि 1992 में हर्षद मेहता घोटाले को सामने ला चुकी थी उनके लिए यह समझना मुश्किल नहीं था कि यह भी एक संभावित घोटाला ही था।
एनएसईएल इन्वेस्टर्स एक्शन ग्रुप के पत्र में उल्लेख किया गया है कि दलाल का जिग्नेश शाह और उनके एफटीआईएल समूह के साथ घनिष्ठ संबंध था। इसमें दावा किया गया है कि उनकी कंपनी मनीलाइफ ने 2011-2013 में टिकरप्लांट लिमिटेड (एफटीआईएल-जिग्नेश शाह की कंपनी) से 88 लाख रुपये की राशि हासिल किए, जिसे ‘अग्रिम प्राप्त आय’ के रूप में दिखाया गया है।
इस पत्र में पुलिस से उक्त लेनदेन की जांच करने का आग्रह किया गया था। साथ ही सार्वजनिक रूप से मनीलाइफ़ ने जिग्नेश शाह के साथ किसी भी तरह के संबंध होने के आरोपों से इनकार किया था।
वहीं, पत्र में आगे आरोप लगाया गया है कि एनएसईएल के शीर्ष प्रबंधन को उपरोक्त ईमेल के बाद, दलाल ने 2012 में मुंबई के ताज लैंड्स एंड में जिग्नेश शाह और अंजनी सिन्हा से मुलाकात की थी। पत्र में इस बात का भी जिक्र है कि उन्होंने ऐसी किसी मुलाकात से इनकार किया है।
IAG ने सिन्हा और एक निवेशक के बीच कथित बातचीत की एक कॉपी साझा की थी। आईएजी ने यह भी कहा कि उनके पास बातचीत की ऑडियो रिकॉर्डिंग है जिसे उन्होंने आगे की जांच में पेश करने पर सहमति जताई थी।
अंजनी सिन्हा ने एक एनएसईएल निवेशक को सूचित किया कि वह ईमेल के बाद 2012 में ताज लैंड्स एंड में दलाल से मिले थे। सिन्हा एनएसईएल के सीईओ थे और उन्हें जनवरी 2021 में गिरफ्तार किया गया था।
वहीं, आईएजी द्वारा मुंबई पुलिस आयुक्त से एनएसईएल घोटाले में सुचेता दलाल की भूमिका की जांच करने का आग्रह किया था। उन्होंने जांच अधिकारियों से आग्रह किया कि दलाल द्वारा की गई जांच से घोटाले का पर्दाफाश नहीं हुआ था जो कि उस समय लगभग 1,700 करोड़ रुपये का था (मेल में उनकी खुद की स्वीकारोक्ति के अनुसार) और कुछ निवेशकों को बचाया गया।
साथ ही पत्र में आगे कहा गया है कि सुचेता दलाल के पति देबाशीष बसु, ‘सॉफ्टवेयर कंसल्टेंसी इंटरनेशनल लिमिटेड’ नामक कंपनी में निदेशक-शेयरधारक हैं, जिसकी 31 मार्च, 2011 को परिचालन से शून्य बिक्री-आय थी। हालांकि, उन्हें ग्राहकों से अग्रिम के रूप में 41 करोड़ रुपये प्राप्त हुए थे। जिसमें से 40.95 करोड़ रुपये सीधे सावधि जमा के रूप में जमा किए गए थे।
एक वित्तीय संस्थान के पास 40,95,39,030 रुपये ‘फिक्स्ड डिपॉजिट’ के रूप में जमा किए गए हैं।
इस बैलेंस शीट में ‘ग्राहकों से अग्रिम’ के रूप में 41,00,00,000 रुपये दिखाए गए हैं। लेकिन जैसा कि ऊपर लाभ और हानि विवरण में देखा जा सकता है, आय शीर्षक के तहत, ‘बिक्री’ में शून्य राशि है। लेखांकन शब्दावली में, कमाई होने पर बिक्री को खातों की पुस्तकों में दर्ज किया जाना चाहिए। ग्राहकों से प्राप्त अग्रिम को बिक्री के तहत माना जाना चाहिए।
इस पत्र में आईएजी ने संदेह जताया है कि धन प्रवाह का एनएसईएल/एफटीआईएल से संबंध हो सकता है और पुलिस से जांच करने का आग्रह किया गया है। उन्होंने पुलिस से एनएसईएल घोटाले में सुचेता दलाल की कथित भूमिका की जांच करने का भी आग्रह किया था और यह भी पूछा कि क्या वह घोटाले का जल्द खुलासा नहीं करने में पक्षकार थीं।
दिलचस्प बात यह है कि इंडियन एक्सप्रेस की वर्ष, 2018 की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रियंका गांधी वाड्रा ने 2013 में अपना फार्महाउस एफटीआईएल को 6.7 लाख रुपये प्रति माह पर किराए पर दिया था। यह उस समय की बात है जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए एनएसईएल घोटाले की जांच कर रही थी।
नोट- यह निरवा मेहता द्वारा लिखे गए मूल आर्टिकल (Sucheta Dalal and NSEL Case: The Journalist Who Finds Herself In Middle Of Financial Scams) का प्रतिभा शर्मा द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद है।