बदलाव समाज का अंग बन जाता है तो उन क्षेत्रों में भी विकास देखने को मिलता है जो किसी समय बिंदु तक असंभव से प्रतीत होते हैं। कुछ बदलाव ऐसे भी होते हैं जो समाज का हिस्सा बनकर उसे बेहतर तो बनाते हैं पर उनकी चर्चा समाज का हिस्सा नहीं बन पाती। हरियाणा में बीते कुछ वर्षों में ऐसे ही बदलाव की तस्वीरें सामने आई है। इन सकारात्मक बदलाव की चर्चा बुद्धिजीवियों में नहीं हो रही है तो इसका कारण स्पष्ट है कि इसका असर समाज के उस वर्ग पर हो रहा है जिनसे उन्हें न तो सहयोग मिलता है न ही फायदा। वैसे भी बुद्धिजीवियों को बदलाव का भान समय पर नहीं होता।
पिछले लगभग चालीस वर्षों में हरियाणा देश का ऐसा राज्य रहा है जिसकी छवि महिला विरोधी बनाई गई है। राज्य को भ्रूण हत्या और महिलाओं के लिए असुरक्षित स्थान का पर्यायवाची बनाने में हर वर्ग ने अपना योगदान दिया। मीडिया और राजनीतिज्ञों द्वारा अपने-अपने तरीकों से यह संदेश दिया गया कि हरियाणा में बेटियां सुरक्षित नहीं हैं। दरअसल आंकड़ें भी इसकी पुष्टि करते थे पर यह आंकड़े बदलने की जिम्मेदारी तो सरकार की ही थी। देश में भ्रूण हत्या मात्र हरियाणा की समस्या नहीं थी। राजस्थान, गुजरात, पंजाब, बिहार और मध्यप्रदेश सहित कहीं राज्य इससे जूझ रहे थे। फिर भी भ्रूण हत्या और महिला सुरक्षा के नाम पर हरियाणा हमारे जहन में आता है तो इसका कारण उन संसाधनों का अति दोहन है जो हमें सूचना, मनोरंजन या समाचार देने के लिए बने थे। कबीर दास ने इसी स्थिति के लिए लिखा है कि अति का भला न बरसना अति की भली न धूप।
अति अर्थात हर चीज की अधिकता मनुष्य के विकास में बाधक बनती आई है। राजनीति की अधिकता, सिनेमा की अधिकता या मीडिया की अधिकता। सिनेमा समाज का दर्पण होता है। कम्यूनिकेशन से पारदर्शिता बढ़ती है। पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है और भी न जाने कितनी पीआर पंक्तियों ने जनमानस के मन में अपनी जगह बनाई है। हम जितना भी कह लें कि यह समाज का अंग है उसके बाद भी यह विश्वास करना होगा कि समाज की जमीनी हकीकत दिखाने में यह सभी विफल रहे हैं।
हरियाणा इस बात का जीता-जागता उदाहरण है। दरअसल समाज ने अपनी ही स्थिति को देखने के लिए ऐसे बुद्धिजीवियों को बढ़ावा दिया है जिनका नरैटिव सलेक्टिव है। जो हरियाणा से निकलकर अंतरराष्ट्रिय मंचों से मेडल लाती लड़कियों की दमदार तस्वीरों से लेकर विरोध प्रदर्शन में शामिल महिला पहलवानों की कहानी को दिखाता है पर जमीनी विकास पर बात नहीं करता। महिला पहलवानों के विरोध प्रदर्शन को बेटी-बचाओ, बेटी-पढ़ाओ अभियान से जोड़ कर सरकार के विरुद्ध नरैटिव चलाने वाले इस वर्ग से कभी आशा नहीं की जा सकती कि वह बताए कि हरियाणा बदल रहा है। राज्य ने लिंगानुपात, महिला शिक्षा, खेल, कृषि और तकनीक के क्षेत्र में नए मुकाम हासिल किए हैं। यह सफलता की मंजिल नहीं कहे जा सकते तब भी उस मंजिल के प्रति सफर की शुरुआत में तो गिने ही जा सकते हैं।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ
प्रधानमंत्री मोदी ने बेटियों की सुरक्षा और शिक्षा के लिए वर्ष, 2015 में हरियाणा की भूमि से बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत की थी। राज्य की मनोहरलाल खट्टर के नेतृत्व वाली सरकार ने योजना को मूर्त रूप दिया। जमीन पर युद्धस्तर पर चलाए गए अभियानों एवं कार्यक्रम से सरकार ने उन आंकड़ों को बदला जो हरियाणा के नाम के साथ जोड़ दिए गए थे। योजना की सफलता से ही इतिहास में पहली बार प्रदेश में लिंगानुपात के आंकड़ें में सुधार हुआ और यह प्रति 1000 लड़कों पर 918 लड़कियों पर पहुँच गया है। ये आंकड़े इस बात का संकेत भी दे रहे हैं कि समाज का सहयोग और सरकार की मंशा हो तो बदलाव न तो दूर है न ही मुश्किल।
वर्ष, 2014 में हरियाणा में लिंगानुपात 1000 लड़कों पर 871, 2015 में 876, 2016 में 900 और 2017-18 में 914 था और अब यह 918 पर पहुँच गया है। साथ ही सरकार को विश्वास है कि वर्ष के अंत तक यह 920 की आंकड़े को प्राप्त कर लेगा। यह क्रमवार विकास उन प्रयासों का परिणाम है जो खट्टर सरकार द्वारा संचालित किए गए हैं।

इन आंकड़ों को सुधारने में छापेमारी अभियान की भी अहम भूमिका रही। सरकार ने राज्य में संचालित लिंग जांच के अवैध कारोबार के विरुद्ध ताबड़तोड अभियान चलाकर इनकों बंद कराने की दिशा में काम किया। इस दौरान अवैध एमटीपी, अल्ट्रासाउंड, नीम-हकीम, लिंग चयन दवाओं पर नियंत्रण लगाया गया। निरीक्षण और छापेमारियां के साथ ही पड़ोसी राज्यों की भी खुफिया जानकारी तैयार की गई। इसके साथ ही पुलिस स्वास्थ्य विभाग एवं महिला एवं बाल विकास की संयुक्त टीमों के जरिए समाज को विश्वास में लिया गया। जागरूकता कार्यक्रम, नारी शक्ति पुरस्कार, बेटी पढ़ाने के लिए पुरस्कार, सामाजिक कार्यकर्ताओं की पहचान और उनको बढ़ावा देना, हेल्थ प्रोग्राम और अन्य कई तरीकों से इसमें समाज और प्रशासन की भागीदारी सुनिश्चित की गई। इसके साथ ही सरकार ने सुकन्या समृद्धि योजना एवं आपकी बेटी हमारी बेटी जैसी योजनाओं के जरिए बेटियों के लिए संरक्षण के लिए आर्थिक मदद भी उपलब्ध करवाई है।
आपकी बेटी हमारी बेटी योजना के जरिए परिवार की तीसरी बेटी तक 21000 रुपए का बीमा उपलब्ध करवाया जा रहा है जिसका उपयोग बेटी के विकास के लिए किया जा सके। इसके साथ ही खट्टर सरकार ने समाज में दुर्गा अष्टमी और अहोई अष्टमी के जरिए कन्या जन्म के प्रति जागरूकता फैलाने का अभियान भी चलाया है।
खट्टर सरकार के इन प्रयासों ने हरियाणा की जो छवि बदलने का काम किया है वो आज आंकड़ों से साबित हो रहा है। इसमें जिस बात की कमी कही जा सकती है वो है चर्चा की। महिला पहलवानों के विरोध में बेटी-बचाओ, बेटी-पढ़ाओ अभियान पर प्रश्न चिह्न लगाना आसान कार्य है। इसका फायदा उन बेटियों से पूछना चाहिए जो आज राज्य में खुशहाल जीवन जी रही हैं। जिन्हें सरकार के प्रयासों ने मौका दिया गया है संसार में आने का और उस मंच तक पहुँचने का जहां से कभी साक्षी मलिक और विनेश फोगाट ने अपनी पहचना प्राप्त की थी।
खट्टर सरकार द्वारा किए गया कार्य हरियाणा की दो अलग-अलग क्षेत्रों में क्रांति का कारण बन रहे हैं। बेटियों के प्रति सकारात्मक बदलाव से उन्होंने जहां हरियाणा की रूढ़िवादी छवि को खत्म करने का काम किया है वहीं कृषि क्षेत्र में उन्नत राज्य को तकनीक और संसाधनों के शोषण से बचाने की दिशा में भी कदम आगे बढ़ाए हैं।
मेरा पानी मेरी विरासत
हरियाणा कृषि क्षेत्र में उन्नत राज्य है। हालांकि जल स्तर की कमी और भूमि का उपजाऊ गुण बनाए रखने के लिए खट्टर सरकार ने तकनीक, क्रॉप रोटेशन और प्रोत्साहन राशि की घोषणा करके इस क्षेत्र को आधुनिक बनाने की दिशा में योगदान दिया है। मेरा पानी मेरी विरासत ऐसी ही एक योजना है जिसके जरिए सरकार राज्य के कम पानी वाले स्थानों पर पारंपरिक फसलों के स्थान पर किसानों को ऐसी फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है जिनमें पानी की कम आवश्यकता हो। इस योजना के जरिए सरकार किसानों को मक्का, अरहर, उड़द, कपास, बाजरा, मूंग जैसी फसलों के उत्पादन के लिए 7,000 रुपये की आर्थिक मदद भी दे रही है। यह राशि किसानों को प्रति एकड़ के हिसाब से दी जा रही है। इसके अलावा सूक्ष्म सिंचाई पर भी 80% तक की सब्सिडी सरकार द्वारा प्रदान की जाती है।
ग्राउंड लेवल पानी को संरक्षित रखना एवं भूमि के शोषण होने से बचाने के लिए यह कदम सरहानीय तो है ही साथ ही खट्टर सरकार कृषि में नई-नई तकनीक को बढ़ावा देने की दिशा में भी काम कर रही है।
कृषि और किसानों पर बीतें कुछ समय से देश ने बहुत राजनीति देखी है। राजनीति देखने वाली नजरें कभी भी जमीनी बदलावों को स्वीकार नहीं कर सकती। फिर भी इस नजरिए में बदलाव के लिए हरियाणा के किसान और कृषि क्षेत्र के विकास कार्यों की चर्चा अनिवार्य है। जैविक कृषि को बढ़ावा देने और कृषि में हानिकारक फर्टीलाइजर्स का उपयोग कम करने के लिए राज्य सरकार द्वारा देशी गायों की खरीद पर 25,000 रुपये तक की सब्सिडी दी जा रही है वहीं गाय के गोबर और मूत्र को मिलाकर एक प्राकृतिक खाद तैयार करने के लिए एक किसान को चार ड्रम उपलब्ध करवाए जाते हैं। 20000 एकड़ जमीन में सरकार जैविक कृषि को बढ़ावा दे रही है। इसके साथ ही सरकार मिलेट्स को बढ़ावा देने के लिए 27 करोड़ की लागत का कार्यक्रम चला रही है।
हरियाणा की कृषि का विकास ही नहीं बल्कि इसे फ्यूचर रेडी यानि आने वाले समय की जरूरत के अनुसार ढ़ाला जा रहा है। दरअसल, लंबे समय से किसान एवं कृषि को राजनीति के हिस्से के रूप में दिखाकर देश को भ्रमित किया गया है। यह भ्रम ही कृषि के विकास की स्वीकार्यता को कम कर रहा है।

हरियाणा में 2023-24 के लिए कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के लिए बजट आवंटन में 19 प्रतिशत की वृद्धि और 8,316 करोड़ रुपये का सहयोग प्रस्तावित किया गया है। इस बजट से राज्य में अनुसंधान केंद्र, कल्टीवेशन सेंटर एवं कृषि विश्वविद्यालयों के निर्माण में खर्च किया जाएगा। साथ ही किसानों में जैविक कृषि के प्रति कौशल बढ़ाने के लिए सरकार ट्रैनिंग सेंटर भी खोल रही है। योजना की सफलता के चलते 2022-23 तक 2,238 किसानों ने जैविक खेती को अपनाया भी है। सरकार इसके साथ ही कृषि निगरानी के लिए ‘किसान ड्रोन’ को अपनाया गया है।
हरियाणा के कृषि के लिए मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर का विजन है कि राज्य में कृषि विकास के लिए रिसर्च को बढ़ावा दिया जाए, कृषि आधुनिकता को अपनाकर भविष्य के अनुरूप ढ़ाली जाए, साथ ही कृषि एरिया में भी वृद्धि हो। यह विकास जमीनी बदलावों को तो बढ़ावा देता है पर उस मीडिया या बुद्धिजीवियों का ध्यान खींचने में असफल रहता है जो किसानों के विरोध प्रदर्शन को ही मात्र कृषि विकास का पैमाना मानता है।
किसान और देश की बेटियों का विकास यह दो ऐसे क्षेत्र हैं जिनपर वर्षों से राजनीति कर वोट या टीआरपी हासिल की गई है। यह समय है कि जनता अपने भविष्य की रूपरेखा में जमीनी तस्वीर को बढ़ावा दे, न कि उस नरैटिव को जो सिर्फ एक चयनित पक्ष दिखाता है। हरियाणा में भ्रूण हत्या और महिला सुरक्षा के विषय में बदलाव असंभव प्रतीत होता था। हालांकि इंटरनेट बुद्धिजीवियों की दुनिया से बाहर निकलकर जमीन पर नजर डालें तो हरियाणा ने न सिर्फ इस नरैटिव को बदला है बल्कि यह संदेश दिया है कि बिना शोर-शराबे की भी क्रांतियां की जा सकती है।
जनमानस के लिए जरूरी है कि जमीनी बदलावों को विकास के रूप में स्वीकार करना शुरू करे। संभव है कि यह जमीनी परिवर्तन उन्हें देश के वो बदलाव देखने का मौका दे जिसकी बात कभी कोई मैनस्ट्रीम मीडिया, बुद्धिजीवी और सिनेमा नहीं करेगा।
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