कांग्रेस के नेता कहीं से भी चलते हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक जा पहुँचते हैं। भारत जोड़ो यात्रा पर निकले राहुल गांधी हों या उनके लघुमानव की भूमिका में जयराम रमेश, सबके निबंध की प्रस्तावना में चाहे जो लिखा जाए, उपसंहार को प्रधानमंत्री मोदी पर ही जाकर रुकना है। यह ऐसा टेम्पलेट है जिसे हर कांग्रेसी इस्तेमाल करने के लिए स्वतंत्र है, फिर वो दिग्विजय सिंह टाइप देसी हो, सोरोस टाइप विदेशी हो या पित्रोदा टाइप परदेसी हो। सब की मथनी एक ही प्रश्न का मंथन करती रहती है और वह प्रश्न है; नरेंद्र मोदी को खत्म कैसे किया जाए?
इस प्रश्न पर मंथन के लिए वे सुविधानुसार देश या संविधान को आगे रख लेते हैं ताकि कह सकें कि; हमारा इरादा मोदी को खत्म करने का नहीं था पर क्या करें, संविधान और देश की रक्षा जो करनी है। उसके लिए नरेंद्र मोदी को खत्म करना आवश्यक है। हाँ, देश और संविधान को आगे रखने से बोर हो जाते हैं तो कभी-कभी लोकतंत्र को भी कवच बना लेते हैं। देश के प्रधानमंत्री को ख़त्म करने की हृदय में उपजी परम इच्छा झट से कैसे व्यक्त कर दे? यही कारण है कि इस परम इच्छा की अभिव्यक्ति को कभी लोकतंत्र तो कभी संविधान की ढाल देनी होती है।
लोकतांत्रिक होने का ढकोसला करने वाला कांग्रेसी नेता सीधे सार्वजनिक तौर पर यह कैसे कह दे कि उसे विपक्ष में रहने की आदत नहीं है? पहले जब भी जनता ने विपक्ष में ठेला, हर बार साल छ महीने किसी गठबंधन सरकार को समर्थन देकर और फिर उसी समर्थन को वापस लेकर उसे गिरा दिया और फिर सत्ता पर चढ़ बैठे। पर अब क्या करें? अब तो नरेंद्र मोदी के सत्ता छोड़कर जाने की संभावना दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही। कारण यह है कि उन्हें सीधा जनता ने समर्थन दे रखा है। उन्हें किसी नेता के समर्थन की आवश्यकता होती तो कब का सत्ता से बाहर हो जाते। इस बात पर विश्वास न हो तो स्वर्गीय वाजपेयी जी की उस सरकार को याद कर लें जो एक वोट के अंतर से गिर गई थी।
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जब कश्मीर पहुँची तब दिग्विजय सिंह ने कई महीने बाद एक बार फिर से सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट स्ट्राइक का सबूत माँगा। यह देखते हुए कि कहीं इससे सारा फोकस राहुल गांधी से हटकर दिग्विजय सिंह पर न चला जाए, जयराम रमेश ने दिग्विजय सिंह के बोलने पर पाबंदी लगा दी। अब इसी तरह की बातें पंजाब कांग्रेस के नेता एस एस रंधावा ने शुरू कर दी हैं। उनका कहना है कि देश को बचाने के लिए नरेंद्र मोदी को खत्म करना जरूरी है। मोदी को ख़त्म कर दिया तो अडानी अपने आप ख़त्म हो जायेगा। पार्टी के लिए रंधावा को चुप करवाने की आवश्यकता जान नहीं पड़ती। कारण यह है कि वे राहुल गांधी से फोकस छीन नहीं रहे।
सत्ता में न रह पाने का कांग्रेसियों का दुःख ऐसा दारुण हो गया है कि इन्होंने राजनीतिक विमर्श और संवाद के स्तर को रसातल पहुँचा दिया है। रंधावा अकेले हैं, ऐसा भी नहीं है। रंधावा जैसे कांग्रेसियों का एक पूरा इतिहास रहा है। बीसवीं सदी और इक्कीसवीं सदी में कांग्रेसियों के आचरण में अंतर यह है कि इक्कीसवीं सदी के कांग्रेसी शाब्दिक हिंसा पर उतर आये हैं। बीसवीं सदी वाले केवल हिंसा पर उतरते थे। संसद में सोनिया गांधी के मौत का सौदागर से शुरू हुआ सफर मणिशंकर द्वारा नीच कहे जाने से गुजरते हुए अब रंधावा के “मोदी को ख़त्म करना जरूरी है” तक पहुँच चुका है। ये कांग्रेसी यह सब उस भारत में कह रहे हैं जिसके बारे में लंदन के लोगों को बताया गया कि अब वहाँ बोलने की आज़ादी नहीं रही।
रंधावा ने पुलवामा आतंकी हमले को लेकर भी बात बात की। उनका कहना था कि पुलवामा अटैक करवाया गया ताकि चुनाव में नरेंद्र मोदी को फायदा मिले। कांग्रेसियों द्वारा इस तरह के वक्तव्यों का भी एक इतिहास रहा है। 26/11 को दिग्विजय सिंह ने आर एस एस की साज़िश घोषित कर दिया था। यह और बात है कि केंद्र में सत्तासीन कांग्रेसी सरकार ने पकिस्तान को मुंबई हमले की साज़िश के सबूत यह कहते हुए सौंपे कि हाफिज सईद के खिलाफ कार्रवाई हो। आज रंधावा पुलवामा को लेकर इस तरह की बात कर रहे हैं, इस बात को नकारते हुए कि पकिस्तान के मंत्री फवाद चौधरी ने वहाँ की नेशनल असेंबली में पुलवामा आतंकी पर संतोष ही नहीं गर्व भी किया था।
प्रश्न यह है कि लंदन में बैठकर भारत में लोकतंत्र के खात्मे का ऐलान करने वाले राहुल गांधी अपने दल के नेताओं को इस तरह की बातें करने से रोक सकते हैं? और अगर रोक सकते हैं तो क्या रोकेंगे? ऐसी भाषा और ऐसा विमर्श अभी शुरू हो गया है, जब लोकसभा चुनाव एक वर्ष बाद हैं। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएंगे, ऐसी या फिर इससे भी निचले स्तर की शाब्दिक हिंसा दिखाई देगी। राजनीतिक विमर्श में शुचिता वगैरह का दावा और मांग करने वाली कांग्रेस पार्टी आगे क्या करती है, वह इस बात पर निर्भर करेगा कि उसके नेता क्या करते हैं। निकट भविष्य में कांग्रेसी भाजपा पर उन्हीं बातों का आरोप लगाएंगे जिसकी योजना वे खुद बनाएंगे या जो वे खुद करेंगे।