संसद के विशेष सत्र की शुरुआत हो चुकी है। गणेश चतुर्थी से नए संसद भवन में विशेष सत्र की बैठकें आयोजित की जाएंगी। हालांकि, सत्र के आह्वान के साथ ही विपक्ष का व्यवहार इसे लेकर संदेहास्पद था पर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 75 वर्षों की उपलब्धियों का जिक्र कर इसमें सभी दलों को शामिल करने का प्रयास किया गया। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा एक ऐतिहासिक संसद सत्र का वादा किया गया है। ऐसे में विपक्ष अब इसमें अपनी भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित करता है यह पूरी तरह उन्हीं के रवैए पर निर्भर करता है।
हालांकि अधीर रंजन चौधरी और मल्लिकार्जुन खड़गे के आख्यान ने एक झलक जरूर प्रस्तुत की है कि विपक्ष अपना पुराना ढर्रा छोड़ने पर राजी नहीं है पर संसदीय कार्यप्रणाली का प्रशंसक होने के कारण उम्मीद है कि विपक्ष इस सत्र को गंभीरता और जिम्मेदारी से ले।
मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा कमजोर विपक्ष की बात छेड़ना बहुत अच्छा रहा। खड़गे जी को इसपर जांच एजेंसियों पर प्रश्न करने के स्थान पर आत्म अवलोकन की आवश्यकता थी कि विपक्ष कमजोर क्यों है?
संसद के बाहर जांच एजेंसियों के सहयोग-असहयोग से विपक्ष कमजोर नहीं होता है बल्कि तब होता है जब आप जनकल्याण के प्रश्न उठाने के लिए संसद में उपस्थित ही न हो। विशेष सत्र की शुरुआत के साथ ही इंडि गठबंधन और इससे जुड़े नेता महिला आरक्षण, भारत बनाम इंडिया और फिर से मणिपुर की चर्चा छेड़ने लगे हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जो मुद्दे विपक्ष उठाना चाह रहा है क्या वह उस पर चर्चा करने के लिए भी तैयार है?
मानसून सत्र के दौरान विपक्ष ने केंद्र सरकार से मणिपुर पर चर्चा की मांग की थी। सरकार द्वारा जब इसकी पहल की गई तो विपक्ष वॉक आउट कर गया। लगातार शोर मचा कर चर्चा से बचने का प्रयास करता विपक्ष कमजोर नहीं तो और क्या कहा जाएगा। नए संसद भवन की शुरुआत के साथ ऐतिहासिक घटनाओं को याद करके विपक्ष को यह समझने की आवश्यकता है कि आने वाले समय में वह संसद के अंदर आंदोलनजीवी की भूमिका निभाना चाहते हैं या जननेता की।
नए सत्र से पूर्व ही मणिपुर, महिला आरक्षण औऱ अन्य विषयों का जिक्र कर विपक्ष ने यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि उनकी प्राथमिकता क्या है और वे किस प्रकार इसमें अपनी भूमिका सुनिश्चित करने वाले हैं।
अगर बात विरोध की राजनीति की ही है तो विपक्ष किस-किस पर बात करने के लिए तैयार है? मणिपुर पर, भारत पर या सनातन पर। इंडि गठबंधन का उद्देश्य सामने आने के बाद क्या वे संसद पर सनातन पर चर्चा करने के लिए तैयार है या हिंदू धर्म के खात्मे को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की श्रेणी में रखकर ही वे अपनी जिम्मेदारी की इति श्री कर देंगे।
नए संसद भवन में होने वाला विशेष सत्र कई मायनों में विशेष रहने वाला है। यह सरकार के आने वाले विजन के साथ ही विपक्ष की वो तस्वीर भी रखेगा जो वो लोकतांत्रिक व्यव्यथा में बनाना चाहते हैं।
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