मीडिया नाम सुनते ही मन में जो चित्र उभर कर आते हैं वो है “टीवी चैनल”, वहां बैठे अच्छे कपड़े पहने कुछ लोग जिन्हें पत्रकार कहा जाता है और पत्रकारों की इसी मंडी को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। शायद संविधान निर्माताओं ने भारत के लोकतंत्र को इतना वजनदार बनाया कि इसे सँभालने के लिए तीन स्तम्भ भी कम पड़ रहे थे।
कुछ दिन पहले ही, एक जीन्स खरीदने के लिए बाजार जाना हुआ था। दो-चार दुकानदार मुझे खींच पकड़कर ले गए और एक जीन्स खरीदवा कर ही माने। मैंने ऐसे ही सामान्य बातचीत में उनकी सामान बेचने की अच्छी विधा का काऱण जानना चाहा तो पता चला कि वे पहले पत्रकार हुआ करते थे ,चैनल को सबसे तेज़ न्यूज़ दिया करते थे।बाहर निकलकर मुझे जीन्स को दुबारा टटोलकर देखना पड़ा।
एक प्रतिष्ठित चैनल को इंटरव्यू देते हुए उसैन बोल्ट बताते हैं कि वह भी पत्रकार बनना चाहते थे फिर उन्होंने मीडिया के “सबसे तेज़” “फटाफट स्पीड न्यूज़ , “सबसे पहले लेकर आए हैं 2 मिनट में 200 खबरें” जैसे शब्द सुनें ,इसके बाद वे मज़बूरी में धावक बने।
भीषण महामारी कोरोना के बाद WHO विश्लेषकों के पास जब काम ख़त्म हो चुका था तो एक गहन खोज में उन्हें अच्छे पत्रकार दिखने के कुछ लक्षणो का पता चला, जिनमें मुख्य गुण है कि आपके पास सूत्र होने जरुरी हैं। 90 के दशक से पहले कोई सोच नहीं सकता था कि जीव विज्ञान के “सूत्र” जो लड़का या लड़की के जन्म के लिए जिम्मेदार होते हैं उनसे खबर का जन्म भी हो सकता है।
खैर ,लेकिन ये सूत्र दूसरे हैं जिन्हे विदेशी भाषा के जानकार सोर्स भी कहते हैं।
जिसके पास जितने सोर्स वो उतना बड़ा पत्रकार!
आखिर ये सूत्र होते कैसे हैं ? इनकी शारीरिक बनावट क्या होती है? ये संकटग्रस्त प्रजाति अंतिम बार कहाँ देखी गयी थी इसकी अभी तक किसी के पास कोई जानकारी नहीं है।
आजकल मीडिया में प्रयोग किये जा रहे “गुप्त सूत्र” इतने ख़ुफ़िया होते हैं कि खबर लाने वाले के लिए भी वे “गुप्त” ही रहते हैं।
नाम न छापने की शर्त पर मेरे एक वरिष्ठ पत्रकार मित्र कुमार ने बताया, “जब वे बड़े मीडिया हाउस के लिए काम करते हैं तो ब्रेकिंग न्यूज़ का इतना प्रेशर रहता है कि वाशरूम में तक वे खबर ही लिखते रहते हैं कभी कभार ‘गुप्त सूत्रों’ से खबर वहीं प्राप्त हो जाती है तो दोनों प्रेशर वहीं रिलीज़ हो जाते हैं “।
बाद में ,जब मैंने उनका कार्यक्रम प्राइम टाइम देखा तो फिर समझ आया कि पत्रकार मित्र स्टूडियो और वाशरूम को एक ही समझ बैठे हैं।
मीडिया के इस युग को महान बनाने में बच्चे भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। पड़ोस में कल बच्चों को छुपम-छुपाई खेलते हुए देख रहा था, उनमें से एक चतुर बालक जुबैर दूसरे बच्चों का पता ‘गुप्त सूत्रों’ के हवाले से लगा रहा था। बाद में मालूम हुआ कि उसके सूत्र छत में खड़े एक गंजे अंकल हुआ करते थे।
सूत्रों की महानता ये कोई नई नहीं है बल्कि, महाभारत में भी जब अवन्तिराज के अश्वत्थामा नामक हाथी का भीम द्वारा वध कर दिया गया था, इसके बाद युद्ध में कुछ गुप्त सूत्रों द्वारा कहा गया कि ‘अश्वत्थामा मारा गया’। उस काल में फैक्ट चेकर्स की कमी के कारण जब गुरु द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा के मारे जाने की सत्यता जानना चाही तो उन्होंने जवाब दिया- ‘अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी’।
लेकिन तब तक शायद द्रोणाचार्य को एहसास हो चुका था कि वे गुप्त सूत्रों की गैंग का पहला शिकार बन चुके हैं।
कभी कभी मन में डर भी रहता है कि दर्शक तक सबसे जल्दी ब्रेकिंग न्यूज़ पहुँचाने के इस मानवता भरे क्रम में जब क्रन्तिकारी पत्रकार महोदय थोड़ा आराम कर रहे होते होंगे तो कहीं उनके गुप्त सूत्र अपने हवाले से ये खबर ना चला दें।
“एक बड़ी खबर आ रही है ….. अलविदा !…….. पत्रकार साहब चले गए एक बहुत गहरी नींद में”……।