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Home » कॉन्ग्रेस पार्टी पर गांधी नहीं, हिन्दू विरोधी एंटोनियो माइनो परिवार काबिज है
विमर्श

कॉन्ग्रेस पार्टी पर गांधी नहीं, हिन्दू विरोधी एंटोनियो माइनो परिवार काबिज है

ईसाईयत के प्रचार-प्रसार में जुड़ी संस्थाओं को जो अभूतपूर्व सफलता सोनिया काल में मिली वो शायद अंग्रेजों के 250 साल के कार्यकाल में भी नहीं मिली थी - यह कहना अतिशयोक्ति बिलकुल नहीं होगी।
अभिषेक सेमवालBy अभिषेक सेमवालAugust 19, 2023No Comments8 Mins Read
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देश के जनमानस को ये समझना एवं समझाना अत्यंत आवश्यक है कि नेहरू-गांधी परिवार, राजीव गांधी की हत्या के पश्चात समाप्त हो गया था और आज जो परिवार कांग्रेस पार्टी पर क़ाबिज़ है वो गांधी परिवार नहीं बल्कि एंटोनियो माइनो परिवार है। 

सुनने में शायद ये अटपटा सा लगे लेकिन यह एक कटु सत्य है और हम जब तक इसको नकारते रहेंगे, देश में राजनीतिक बहस एवं राजनीति का स्तर उतना ही गिरता चला जाएगा। दरअसल बात यह है कि सोनिया गांधी आज भी सोनिया गांधी कम और एंटोनियो माइनो अधिक हैं। इनके जीवन की जितनी भी बातें छनकर बाहर आईं हैं उससे यही स्पष्ट होता है कि इनका हिंदू धर्म से न कोई प्रेम रहा और न  इसमें कोई रुचि रही। रही सही कसर २००४-१४ के बीच के सोनिया कालखंड ने पूरी कर दी। चलिए विस्तार से बताते हैं कि वो कैसे? 

भारतीय राजनीति में २००४ से २०१४ के बीच का कालखंड कई नकारात्मक और बदले की राजनीति और व्यापक भ्रष्टाचार के लिये जाना जाता रहेगा। यह वो दौर था जब देश में सोनिया गांधी की तूती बोलती थी। सोनिया गांधी उन दिनों देश की सबसे शक्तिशाली नेता थी। इसके साथ-साथ वे देश और कांग्रेस दोनों को एक अघोषित सुपर प्राइम मिनिस्टर होने के नाते अपनी उँगलियों पर नचा रही थी। यही कारण था कि देश के प्रधानमंत्री का सोनिया गांधी की उपस्थिति में खड़ा होना, बैठना या फिर उनके लिए कुर्सी का मुहैया कराया जाना, सब सोनिया के हिसाब से होता था। यहाँ तक कि सोनिया गांधी को देश के साथ सीधा संवाद करने से भी परहेज़ था। सो जब भी उन्हें कोई संदेश देश तक पहुँचाना होता था तब अहमद पटेल का एक फ़ोन ही काफ़ी माना जाता था और देश का लगभग हर चैनल और पत्रकार, ये बताने में जुट जाता था कि सोनिया गांधी क्यों और किस बात पर अपसेट हैं। ख़ैर ये सब तो आना-जाना था लेकिन उस दौर की एक बात जो कभी भी भुलाए नहीं भुलायी जा सकती वो है- ‘हिंदू धर्म पर सीधे तौर पर किया गया कुठाराघात।’

उन दस वर्षों में हिंदू धर्म और धर्मावलम्बियों ने जो देखा-भोगा, उसका आधुनिक भारतीय समाज में कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलेगा। आपके सामने इसका एक छोटा सा लेखा जोखा रखते हैं, इस आशा के साथ कि शायद आप भी सोचने पर विवश हो जायें। वैसे सच कहूँ तो चेष्टा भी कुछ ऐसी ही है!

सबसे पहले तो बात करते हैं गुजरात दंगों और उसके बाद रचे गये उस प्रपंच की, जिसके निशाने पर तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे लेकिन कुठाराघात हिंदू धर्म पर किया गया। विडंबना देखिए कि उस रेलगाड़ी, जिसका नामकरण, अहिंसा के पुजारी के आश्रम के नाम पर साबरमती एक्सप्रेस रखा गया था, के अंदर निहत्थे 59 पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को हिंदू होने के कारण ज़िंदा जला दिया जाता है। 

फिर इस घटना के प्रतिशोध के चलते भड़के दंगों का सहारा लेकर कांग्रेस पोषित एक ख़ास बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा हिंदू समाज को बार-बार एक अपराध-बोध से भरा जाता है। झूठी खबरें ही नहीं बल्कि झूठे फोटो तक प्लांट किए जाते हैं और पूरी सोची समझी साज़िश के साथ गुजरात में मुसलमानों के एकतरफा क़त्लेआम का एक ताना-बाना बुना जाता है। यह सब कुछ इस चालाकी से किया जाता है कि हर कोई ये भूल जाता है कि शुरुआत ५९ हिंदुओं को मुसलमानों द्वारा ज़िंदा जलाने से हुई थी, और ये सब कुछ प्रपंच रचा जाता है सोनिया गांधी के इशारों पर। 

गुजरात दंगे के नाम पर सोनिया गांधी द्वारा तैयार की गई व्यूह रचना के पश्चात बारी आई ‘हिंदू’ के साथ ‘आतंकवाद’ शब्द जोड़ने की। एक सोची समझी साज़िश के अन्तर्गत चंद हिंदुओं को अलग-अलग जगह से पकड़ा जाता है और ‘हिंदू आतंकवादी’ होने का सर्टिफिकेट उनके मत्थे मढ़ दिया जाता है। हद तो तब हो जाती है जब पाकिस्तानी आतंकियों द्वारा किया गया मुंबई का २६/११ क़त्ल-ए-आम भी आरएसएस की साज़िश करार दिया जाता है। 

पर इस परिवार का मन इस सब से भी नहीं भरा और उसके बाद सोनिया गांधी का पुत्र अमरीकी दूतावास के अधिकारियों तक को हिंदू आतंकवाद को भारत के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बताता है। विकिलीक्स द्वारा प्रकाशित केबल में ये संदर्भ मिल जाएगा। आख़िर एंटोनियो माइनो की ऐसी क्या मजबूरी रही होगी कि हिंदू को आतंकवादी का लेबल दिया जाये? ऐसा लेबल तो आज तक उस धर्म को भी नहीं मिला जिसमें सोनिया माइनो का जन्म हुआ और जिस धर्म ने दुनिया के कोने कोने में पुरातन सभ्यताओं का सर्वनाश कर ईसाईयत को स्थापित कर दिया था। ख़ैर आगे चलते हैं।

अगर ये कहा जाये कि ईसाईयत के प्रचार-प्रसार में जुड़ी संस्थाओं को जो अभूतपूर्व सफलता सोनिया काल में मिली वो शायद अंग्रेजों के २५० साल के कार्यकाल में भी नहीं मिली थी – एक अतिशयोक्ति बिलकुल नहीं होगी। ना सिर्फ़ बेशुमार धन इस देश में इस कार्य हेतु झोंका गया बल्कि ईसाईयत के प्रचार-प्रसार में तल्लीन पादरियों और उनके गुर्गों को वीजा भी थोक में बाँटे गये। एफसीआरए संस्थाओं में अरबों डॉलर का धन भारत भेजा गया और एक सुनियोजित साज़िश के तहत देश के कोने कोने में धर्मांतरण को अभूतपूर्व संरक्षण हासिल हुआ। 

वैसे सोनिया गांधी की दाद दी जानी चाहिए कि उसने अपने पति के नाना, यानी नेहरू, से प्रेरणा लेकर गुजरात दंगों के प्रपंच से हिंदू समाज को ठीक उसी तरह से एक झूठे अपराध के बोध से भरा, जैसे नेहरू ने गांधी की हत्या के पश्चात किया था। कालांतर में इसका एक और उदाहरण आपको ग्राहम स्टेंस कांड के दौरान कांग्रेस प्रायोजित संस्थाओं या एक्टिविस्टों द्वारा चलाये गये प्रोपेगंडा कैंपेन में भी मिल जाएगा। इस सबका सीधा फ़ायदा ईसाई संस्थाओं को मिला और उन्होंने उसे बखूबी भुनाया भी।

अगर इतना सब कुछ कम नहीं था तो कोई कांग्रेस द्वारा प्रायोजित कम्युनल वायलेंस बिल के ड्राफ्ट को कोई कैसे भूल सकता है? वो तो भला हो भाजपा का जिसने इसको कभी संसद में चर्चा वाली स्टेज तक नहीं आने दिया वरना आज मोदी सरकार को वक़्फ़ एक्ट, प्लेसेज ऑफ़ वरशिप एक्ट, आरटीआई एक्ट इत्यादि जैसे विषैले साँपों के साथ गले में एक और विषैले साँप को डालकर  घूमना पड़ता। अगर ये काला क़ानून आ जाता तो हिंदू अपने देश में ही आधिकारिक तौर पर सांप्रदायिक दंगों के दंश को एकतरफ़ा झेलने पर मजबूर हो जाता। 

सोनिया काल के ऊपर लिखे गए वास्तविक मुद्दों से एक बात तो साफ़ साफ़ ज़ाहिर होती है कि सोनिया गांधी को हिंदू धर्म से एक दबी छुपी नफ़रत है। इस भाव की पुष्टि के लिए चलिए आपको १९८८ के नेपाल दौरे पर सोनिया गांधी को ग़ैर हिंदू न होने के नाते भगवान पशुपतिनाथ मंदिर में प्रवेश से रोक दिये जाने की घटना याद दिलाते हैं। उस घटना से सोनिया गांधी के अंदर उपजे रोष का कोपभाजन नेपाल की भोली भाली जनता को काफ़ी लंबे समय तक बनना पड़ा था। भारत नेपाल संबंधों में उस दौरान उपजी खटास आज भी नहीं जाती। नेपाल में उस घटना से पैदा हुए हालात ने माहौल कुछ ऐसा बना दिया कि वहाँ ना सिर्फ़ राजशाही चली गई बल्कि विश्व के एकमात्र हिंदू राष्ट्र को भी पाश्चात्य परिभाषा वाली धर्मनिरपेक्षता को अपनाना पड़ा। तत्पश्चात् वहाँ जिस तेज़ी से धर्मांतरण हुआ, वैसा उदाहरण शायद भारत में सोनिया काल में ही मिलेगा! 

ख़ैर अब वापस चलते हैं इस लेख के मूल विषय पर कि कैसे आज जो परिवार कांग्रेस पर क़ाबिज़ है, वो गांधी परिवार नहीं बल्कि एंटोनियो माइनो परिवार है।

जिस सोनिया ने कदम-कदम पर हिंदू समाज को जीर्ण-शीर्ण करने के किसी भी मौक़े को बग़ैर गँवाए, उसका बखूबी उपयोग किया हो, उससे ये आशा बिलकुल नहीं की जा सकती कि उसने अपनी संतति में हिंदू धर्म के प्रति प्रेम और आदर का भाव भरा होगा। 

यहाँ ये बताना भी आवश्यक हो जाता है कि सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के अपने परिवार में अब उनकी स्कॉटिश मूल की माँ मौरीन ही बचीं हैं। परिवार के बाक़ी तीन सदस्य – पिता, भाई और बहन- रहस्यमयी हालात में एक के बाद एक स्वर्गलोक सिधार गये। इसको भी एक विचित्र संयोग ही कहा जाएगा। 

सोनिया के पुत्र राहुल का तो ख़ैर क्या ही कहना। उनको तो मोदी सरकार के नाम पर भारत से लड़ रहे लोगों से अगाढ़ प्रेम किसी से छुपा नहीं है। कुछ ही दिन पहले वो अमरीका और लन्दन में उन सभी मोदी विरोधियों के साथ काम करके भारत लौटे हैं। 

बात सिर्फ़ इतनी सी है कि वास्तविक घटनायें ये साफ़ दर्शाती  हैं कि सोनिया गांधी की रग-रग में जो हिंदू विरोध और इस धर्म के प्रति द्वेष की दबी छुपी भावना है यही भावना उनके पुत्र और पुत्री को भी आनुवंशिकता में मिली है। इसलिए कांग्रेस का मालिकाना हक़ नेहरू परिवार से गांधी परिवार और अब वहाँ से भी एंटोनियो माइनो परिवार में स्थानांतरित हो चुका है। सोनिया गांधी के भारतीय राजनीति में सीधे प्रवेश के बाद राजनीति के गिरते स्तर और उसका हिंदू विरोधी हो जाना, इसका सबसे बड़ा द्योतक है।

जब ‘सुपर सरकार’ सोनिया गांधी के लिए कांग्रेस ने बदला देश का कानून

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