लद्दाख के क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक इन दिनों केवल अपने देश की मीडिया की सुर्खियों में ही नहीं हैं बल्कि अपने देश की सारी दुर्गति वाली खबरों के बावजूद पाकिस्तान की मीडिया में भी उन्हें पर्याप्त जगह दी जा रही है।
कारण है लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने को लेकर चल रहा अनशन।
सोनम वांगचुक ने तो यहाँ तक कह दिया है कि डर यह नहीं है कि लद्दाख के लोग भारत के ख़िलाफ़ हो जाएंगे, डर यह है कि भारत के लिए प्यार कम हो जाएगा और ऐसा होना उस देश के लिए ख़तरनाक है जो चीन का सामना कर रहा है।
वांगचुक यह बात इतने विश्वास के साथ कह रहे हैं जैसे भारत के लिए लद्दाख के लोगों के प्यार को मापने का यंत्र मात्र उनके पास है। वांगचुक के इस बयान को देखकर कोई भी यही समझेगा कि सरकार को ना तो समस्याओं की समझ है और ना ही स्थानीय मुद्दों की।
वैसे इस पर विचार अवश्य होना चाहिए कि वांगचुक के इस बयान को सरकार धमकी समझे या फिर चेतावनी?
इनोवेशन और इन्वेंशन के लिए पहचान रखने वाले सोनम वांगचुक आजकल इनोवेटर कम और एक्टिविस्ट अधिक दिखाई देते हैं और ऐक्टिविस्ट की यही समस्या है कि वह एबसोल्यूटिज्म का मारा रहता है। ऐसे में उसे ना तो अपने बयानों पर शंका होती है और ना ही अपनी सोच पर।
दरअसल ऐक्टिविस्ट इस सोच का होता है कि किसी मुद्दे पर उसकी सोच के आगे और किसी सोच के लिए स्पेस है ही नहीं। उसका यह मानना रहता है कि उसके मुद्दे की जितनी समझ उसे है उतनी और किसी को नहीं है और उस मुद्दे पर उसका कहा ही अंतिम सत्य है।
यह सोच ही तानाशाही सोच होती है। जैसे तानाशाह को लगता है कि उसके देश को कोई और उतना प्यार कर ही नहीं सकता जितना वह करता है।
सोनम वांगचुक को इस बात का विश्वास है कि लद्दाख, उसके भूगोल और उसकी समस्याओं की समझ केवल उन्हें है और इतनी है कि उतनी किसी और स्थानीय व्यक्ति की हो ही नहीं सकती।
आधुनिक वैश्विक लिबर्टी सिद्धांत के अनुसार एक व्यक्ति की समझ समूह की समझ के ऊपर होती है और वांगचुक इसी लकीर के फ़क़ीर हैं।
इसी सिद्धांत के तहत उन्होंने लद्दाख के उप-राज्यपाल आरके माथुर पर सवाल उठाते हुए कहा है कि उप-राज्यपाल बाहरी व्यक्ति हैं जो उन पर शासन कर रहे हैं। यहाँ एक व्यक्ति सब कुछ तय कर रहा है।
सोनम वांगचुक कश्मीर घाटी के अलगाववादी नेताओं, हुर्रियत, गुपकार गैंग की तर्ज पर घाटी के स्वास्थ्य के लिए अनुच्छेद 370 को बेहतर बताते नजर आ रहे हैं। वे कह रहे हैं कि अनुच्छेद 370 ने यह सुनिश्चित किया था कि बाहरी लोग लद्दाख के उद्योग, संसाधनों का दोहन करने में सक्षम नहीं होंगे।
370 को लेकर जिस तरह के बयान सोनम वांगचुक दे रहे हैं इससे तो लगता है कि किसी दिन वे गीत भी गुनगुनाने लगेंगे कि बहती हवा सा था वो, उड़ती पतंग सा था वो, कहाँ गया उसे ढूंढ़ो।
सोनम वांगचुक के इस तरह के तमाम बयान किसी नेता द्वारा दिए गए बयान जैसे प्रतीत हो रहे हैं। पर उनकी समस्या यह है कि फ़िलहाल उन्हें ऐक्टिविस्ट दिखना है। हाँ, नेता का सफ़र वे बाद में भी तय कर सकते हैं।
वैसे भी वे राजनीतिक परिवार से आते हैं इसलिए उन्हें इस मामले में तो कम से कम कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। वैसे भी मैगसेसे उनके क़ब्ज़े में पहले से ही है।
वे लोगों को यह विश्वास दिलाना चाहते हैं कि उनकी समझ वोट पाकर शासन में आई एक सरकार की कलेक्टिव समझ से ऊपर है और सरकार लद्दाख में जो कुछ भी कर रही है, वह अचानक, बिना किसी प्लानिंग और स्टडी के कर रही है, ऐसे में लोग वांगचुक का समर्थन करें।
सोनम वांगचुक अपने समर्थन में सोशल मीडिया पर धन्यवाद का पर्चा बाँटते नजर आ रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि लोग उनका समर्थन कर रहे हैं। हालाँकि इन्हें लोगों का तोला भर समर्थन ही मिल रहा है।
संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत जिस छठी अनुसूची की बात सोनम वांगचुक कर रहे हैं वह पूर्वोत्तर राज्य असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम के जनजातीय क्षेत्रों में स्वायत्त जिला परिषद और स्वायत्त क्षेत्र बनाने का नियमन करता है।
आसान शब्दों में कहें तो यहाँ कुछ विशेषाधिकार होते हैं। मसलन, स्थानीय स्तर पर बाकी राज्यों के नियमों से इत्तर अपनी काउंसिल बनाना, उसमें चुनाव करवाना, अपने हिसाब से टैक्स लगाना, कुछ मुकदमों की सुनवाई करना, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि पर कानून बनाना जैसे विशेषाधिकार जिनमें केन्द्र या संविधान का हस्तक्षेप ना हो।
वांगचुक समझते तो हैं पर उन्हें यह स्वीकार करना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन के नाम पर छठी अनुसूची की माँग करना या 370 को बेहतर बताना उनके आंदोलन का आधार नहीं हो सकता।
वांगचुक क्या लद्दाख के उन लोगों की बात को झुठलाना चाहते हैं जो दशकों तक यह कहते आए कि 370 के कारण कश्मीर घाटी को जो सुविधाएँ मिली वह लद्दाख के लोगों को नहीं मिली क्योंकि 7 दशक तक शासन और प्रशासन घाटी के क़ब्ज़े में रहा?
लद्दाख में सोलर पैनल लगाने के लिए सरकार द्वारा ज़मीन आवंटन का विरोध करते हुए सोनम वांगचुक कहते हैं कि वे इसके खिलाफ नहीं हैं कि सौर ऊर्जा भारत के उपयोग में आए पर जमीन का उपयोग चरवाहों द्वारा किया जाना चाहिए ना कि उस पर सोलर पैनल लगने चाहिए। अगर वे हमारी जमीन लेते हैं और चरवाहों को निकाल देते हैं, तो इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
हालाँकि ऐसी कोई स्थिति अभी तक पैदा नहीं हुई है पर यह एक्टिविज्म का तक़ाजा है कि वह भविष्यवाणी करके जो चाहे कर सकता है। ठीक वैसे ही जैसे मेधा पाटकर ने कहा था कि सरकार चाहे कुछ भी कर ले नर्मदा का जल कच्छ में कभी नहीं पहुँच पाएगा। ठीक वैसे ही जैसे तमाम आंदोलनजीवियों ने यह फैला रखा था कि CAA आने से भारत के मुसलमानों की नागरिकता खत्म हो जाएगी। ठीक वैसे ही जैसे यह फैलाया गया कि फार्म बिल की सहायता से उद्योगपति किसानों की ज़मीन हड़प लेंगे।
ऐसे में यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि राजनीतिक तौर पर अनुच्छेद 370 के कारण लंबे समय से उपेक्षित लद्दाख में जब सुविधाओं का आगमन हो रहा है तब क्या सोनम वांगचुक अपने लिए राजनीतिक ज़मीन पैदा कर रहे हैं?
चीन की सीधी सीमा लद्दाख से जुड़ती है। हाल के वर्षों में पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग त्सो, गलवान घाटी, डेमचोक और दौलत बेग ओल्डी में भारतीय और चीनी सेना के बीच गतिरोध देखे गए ।
1962 में हमने देखा ही कि कैसे चीन ने लद्दाख का उत्तर-पूर्वी हिस्सा हथिया लिया था जिसे हम आज अक्साई चीन के नाम से जानते हैं। इस तरह की स्थिति देखने के बाद भी जिस स्वायत्तता और चीन के नाम पर सोनम वांगचुक आज केन्द्र सरकार को धमकी देते नजर आ रहे हैं, वह ऐसे कई और प्रश्न खड़े करता है।
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