कॉन्ग्रेस पार्टी के अन्दर भले ही एक परिवार की चलती आई हो लेकिन जब बड़े-बड़े नेता पार्टी छोड़ कर जाने लगे हैं, तब कॉन्ग्रेस को पार्टी के भीतर लोकतंत्र की याद आई है। अक्टूबर माह में 17 तारीख को होने वाले इस चुनाव के लिए कॉन्ग्रेस के नेता राजमाता का आशीर्वाद पाने में जुट गए हैं।
फिलहाल तक की जानकारी के अनुसार, दो नाम अभी इस लिस्ट में सबसे ऊपर हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बाद अब तिरुअनंतपुरम से सांसद और मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली केंद्र सरकार में मंत्री रहे शशि थरूर ने भी इस पद पर अपना दावा ठोंका है।
सितम्बर 19, 2022 को सामने आई खबरों के अनुसार, शशि थरूर ने वर्तमान कॉन्ग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी से मंजूरी लेने के बाद चुनाव लड़ने का मन बनाया है। वह बात अलग है कि कॉन्ग्रेस में चुनाव लड़ने के लिए भी ऊपर से मंजूरी की आवश्यकता आ गई है, यह थोड़ा आश्चर्यजनक है।
इन दो उम्मीदवारों के नाम सामने आने के बाद अलग-अलग राजनीतिक चर्चाएँ तेज हो गई हैं। गहलोत पुराने नेता होने के साथ-साथ अपने राज्य में फंसे हुए है, वहीं ऐसा माना जा रहा है कि अमेरिका से लौट कर राजनीति में कदम रखने वाले थरूर जमीनी राजनीति से अनभिज्ञ हैं।
गहलोत- कुर्सी भी चाहिए, अध्यक्ष पद भी
राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत का नाम इस अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे पहले आया था, कयास लगाए जा रहे थे कि गांधी परिवार उनको ही कॉन्ग्रेस की अध्यक्ष पद की गद्दी पर बिठाना चाहता है। गहलोत, गांधी परिवार के पुराने सिपाहसालार होने के साथ ही जमीनी चुनावी राजनीति को समझने वाले नेता हैं।
इंडिया टुडे के संपादक सौरभ द्विवेदी से हुई एक बातचीत में पत्रकार राहुल श्रीवास्तव के अनुसार, गहलोत कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष बनना तो चाहते हैं, पर उनको एक धर्मसंकट ने घेर रखा है। दरअसल उनके अध्यक्ष बनने के बाद कॉन्ग्रेस को राज्य में कोई दूसरा मुख्यमंत्री बनाना पड़ेगा जिसके लिए सबसे पहला नाम युवा सचिन पायलट का है। गहलोत को पायलट का राजस्थान का मुख्यमंत्री बनना मंजूर नहीं है। दोनों के बीच की आपसी लड़ाई पहले से ही जगजाहिर है।
इसके अलावा राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि गहलोत मुख्यमंत्री को मिलने वाली सरकारी सुख-सुविधाओं को भी छोड़ना नहीं चाह रहे जो उन्हें कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष बनने के बाद नसीब नहीं होने वाली।
ऐसी परिस्थतियों में गहलोत चाहते हैं कि वह अध्यक्ष बनने के साथ-साथ राजस्थान के मुख्यमंत्री बने रहें और पायलट को मुख्यमंत्री ना बनाया जाए, साथ ही उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर मिलने वाली सुरक्षा और सुविधाएँ भी बदस्तूर मिलती रहें।
हालांकि, गहलोत के पास लंबा राजनीतिक अनुभव और कॉन्ग्रेस की अंदरूनी राजनीति का ज्यादा अनुभव होने के कारण उन्हें इस अध्यक्ष पद की लड़ाई में आगे माना जा रहा है, साथ ही उनके ऊपर गांधी परिवार की भी विशेष कृपा मानी जा रही है।
थरूर- जमीनी राजनीति में अनुभवहीन, एलीट होने का टैग
अब जब कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनाव की तारीख नजदीक आ गई है तो कॉन्ग्रेस के चर्चित नेताओं में से एक और तिरुअनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने अपना नाम आगे बढ़ाया है। हाल ही में हुई थरूर की सोनिया से मुलाकात से यह सामने निकल कर आया है कि सोनिया गांधी ने थरूर को चुनाव लड़ने के लिए हरी झंडी दे दी है।
इसके साथ ही गहलोत के तुलना में थरूर राजनीति में भी नए हैं व उन्हें कॉन्ग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी और जमीनी राजनीति का उतना अनुभव नहीं है जितना गहलोत को है। थरूर को साथ ही साथ हिंदी पट्टी के राज्यों में उतना समर्थन नहीं मिलने वाला जितना थरूर को मिलेगा क्योंकि उनके ऊपर अमेरिकी लहजे में अंग्रेजी बोलने वाले एलीट होने का आरोप लगता आया है।
इतनी बात जरुर कही जा रही है कि थरूर को लुटियंस वाले अभिजात्यों और खान मार्केट गैंग का समर्थन जरूर मिलेगा। उनका नाम सामने आने के बाद से ही वामपंथी पत्रकारों ने थरूर के समर्थन में हवा बनानी चालू कर दी है।
दरबारी गैंग अपनी जुगत में
वह अलग बात है कि कॉन्ग्रेस में चुनाव की बातें जोर-शोर से चल रहीं हैं पर अभी भी कॉन्ग्रेस का दरबारी गुट इस बात पर जोर दे रहा है कि राहुल गांधी अध्यक्ष पद लेने को राजी हो जाएं तो किसी को भी चुनाव लड़ना ही ना पड़े। इसी के साथ ही कई वरिष्ठ कॉन्ग्रेेसी नेताओं राज्यों की कॉन्ग्रेस समितियों को यह प्रस्ताव पास करने की हिदायत दी है जिसमें यह आग्रह किया गया हो कि सोनिया गांधी कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष का पद ले लें।
इन सब कवायदों से राहुल गांधी और सोनिया गाँधी को फिर से भारतीय राजनीति के केंद्र में स्थापित करने की कोशिश करी जा रही है, वह बात अलग है कि पिछले कुछ दिनों में गुलाम नबी आजाद सहित कई अन्य नेताओं का कॉन्ग्रेस छोड़ने के साथ ही अलग सुर अपनाना गांधी परिवार को कठघरे में खड़ा करता आया है। गांधी परिवार पर पार्टी में तानाशाही का आरोप भी लगता आया है।