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आर्थिकी

GST के 6 साल: 460% बढ़ा कर संग्रह, चोरी रुकी, व्यवस्था हुई डिजिटल

GST के लागू किए जाने से पहले के वित्त वर्ष 2016-17 में किसी भी वस्तु अथवा सेवा की बिक्री पर लगने वाले कर का संग्रह कुल ₹3.91 लाख करोड़ था, जो कि वित्त वर्ष 2022-23 में बढ़ कर ₹18.10 लाख करोड़ हो गया। इस तरह इसमें सात वर्षों के भीतर 4.5 गुने से अधिक की वृद्धि हुई हुई है। 
अर्पित त्रिपाठीBy अर्पित त्रिपाठीJuly 1, 2023No Comments9 Mins Read
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छः वर्षों में GST ने कई नए कीर्तिमान गढ़े हैं।
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1 जुलाई 2023 को देश के अप्रत्यक्ष कर सुधारों की दिशा में उठाए गए सबसे बड़े कदम वस्तु एवं सेवा कर (GST) को लागू किए जाने के 6 वर्ष पूरे हो गए हैं। देश की स्वतंत्रता के बाद कर सुधारों की दिशा में उठाया गया यह सबसे ऐतिहासिक कदम है जिसके लागू होने के बाद देश में करो का जंजाल खत्म हुआ और व्यापार करना आसान हुआ।

6 वर्षों का समय किसी भी नई नीति या व्यवस्था के सकारात्मक या नकारात्मक प्रभावों का आकलन करने के लिए पर्याप्त है। वर्ष 2017 से वर्ष 2023 के बीच GST के शुरूआती रूप से इसमें कई सारे बदलाव लाए गए हैं। इन बदलावों के बीच GST की सफलता का आकलन करने के लिए हमें 2017 से पहले की व्यवस्था के परिणामों और GST के बाद आर बदलावों का परीक्षण करना होगा।

GST से पहले

वर्ष 2017 में GST लागू होने से पहले देश में केंद्र और राज्य सरकारों के अपने-अपने स्तर पर अलग-अलग कर थे जिनके संग्रह के लिए अलग-अलग विभाग थे। GST के भीतर 17 तरह के करों को समाहित किया गया और इन्हें सिर्फ GST का रूप दिया गया।

GST से पहले केंद्र द्वारा केन्द्रीय बिक्री कर, केन्द्रीय एक्साइज ड्यूटी, सेवा कर और अन्य कर लगाए जाते थे तो वहीं राज्य स्तर पर मनोरंजन कर, लग्जरी कर, लाटरी और जुए जैसी गतिविधियों पर कर लगाए जाते थे। इनकी वसूली के लिए मनोरंजन कर विभाग, बिक्री कर विभाग, लाटरी विभाग और अलग-अलग विभाग थे जो कि करों को एक जगह एक साथ किफायती ढंग से इकट्ठा होने की प्रक्रिया को मुश्किल बनाते थे।

अलग-अलग राज्यों में माल की आवाजाही एक बड़ा सिरदर्द था क्योंकि राज्यों के इंट्री पॉइंट पर लगने वाले करों को लेकर ट्रकों की लम्बी लाइन लगती थी। इससे समय की बर्बादी होती थी और माल को लाने ले जाने की लागत बढ़ती थी।

सड़क एवं राजमार्ग परिवहन मंत्रालय की एक रिपोर्ट बताती है कि GST के लागू होने से पहले एक ट्रक अपनी यात्रा का 20% समय अलग-अलग राज्यों के चेकपॉइंट पर बिताता था। इस देरी की वजह से देश में चलने ट्रक औसतन एक वर्ष में 50,000 -60,000 किलोमीटर चल पाते थे जबकि पश्चिमी देशों में यह आँकड़ा 2 लाख किलोमीटर से अधिक था।

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट GST से पहले की समस्याओं को दर्शाती है
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट GST से पहले की समस्याओं को दर्शाती है

इन सब समस्याओं के अतिरिक्त, कर जमा करना और उसकी कागजी कार्यवाही पूरा करना भी एक सामान्य व्यापारी के लिए आसान नहीं था। जहाँ GST जमा करने के लिए आज एक डिजिटल पोर्टल है जिस पर सामान्य समझ वाला व्यापारी भी अपने करों का भुगतान कर सकता है, वहीं GST से पहले अधिकाँश कर वसूली ऑफलाइन तरीके से होती थी जिसके लिए व्यापारियों को बैंकों और दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते थे।

अलग-अलग राज्यों में एक ही प्रकार की वस्तु पर करों की अलग-अलग दरें थी। इससे देश में करों की एकरूपता की भी समस्या थी। इन सबके अतिरिक्त, अधिक कागजी कार्यवाही, कई विभागों में बंटा होने और ज्यादा जटिल होने के कारण करों की चोरी भी एक समस्या थी, जिससे राजस्व का नुकसान होता था। इससे केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व के बंटवारे में भी समस्याएं खड़ी होती थीं।

GST का सफ़र: वाजपेयी लाए, कॉन्ग्रेस ने लटकाया, PM मोदी ने लागू किया

GST को अवश्य वर्ष 2017 में लागू किया गया था लेकिन इसकी संकल्पना इससे लगभग 2 दशक पहले की जा चुकी थी। GST यानी एक देश एक टैक्स की दिशा में सबसे पहले वर्ष 1999 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार के दौरान प्रयास चालू हुए थे। इसको लेकर भारतीय रिजर्व बैंक के तीन पूर्व गवर्नर बिमल जालान, सी रंगराजन और आईजी पटेल की बैठक में GST के प्रमुख बिन्दुओं पर चर्चा हुई थी।

इसके पश्चात बाजपेयी सरकार द्वारा पश्चिम बंगाल के तत्कालीन वित्त मंत्री असीम दासगुप्ता की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था जिसका काम GST के मुख्य ढाँचे को तैयार करना था। जिसके बाद विजय केलकर की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया जिसने GST के सम्बन्ध में अपनी सिफारिशें केंद्र सरकार को वर्ष 2005 में दी। तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिंदम्बरम ने वित्त वर्ष 2006-07 के बजट भाषण में कहा कि देश में वर्ष 2010 से GST को लागू कर दिया जाएगा।

हालांकि, ऐसा नहीं हो सका और वर्ष 2014 तक कॉन्ग्रेस सत्ता में रहने के बाद भी GST लागू न कर सकी। GST लागू करने के पीछे इस दौरान राज्यों की चिंताएं, आपस में करों का बंटवारा, पेट्रोल-डीजल को GST में लाने या नहीं लाने समेत अन्य कई कारण रहे। 

इस दौरान लाए गए GST के प्रारूप में यह समस्या भी थी कि कई अलग-अलग वस्तुओं को एक ही स्लैब में रखा गया था। ऐसे में संभवतः यह होता कि सामान्य सा जूता और महँगी घड़ी दोनों पर एक ही समान दर से कर लगता, जबकि दोनों को खरीदने वाला उपभोक्ता वर्ग पूरी तरह से अलग होता।

वर्ष 2014 में देश में सत्ता परिवर्तन होने के पश्चात GST पर तेजी से काम चालू हुआ और इसके नए प्रारूप जिसमें चार कर स्लैब- 5%, 12%, 18%, 28% लाए गए। जहाँ 5% कर सामान्य आवश्यकता के उत्पादों पर लगाया गया तो वहीँ 28% कर लग्जरी सामानों पर लगाया गया। 

आम जनता के अनाजों को 0% कर स्लैब में रखा गया और उन पर कोई भी कर नहीं आरोपित किया गया। इसके अतिरिक्त राज्यों को राजी करने के लिए अगले GST लागू होने के पांच वर्षों तक राजस्व में होने वाली कमी की भरपाई के लिए पांच वर्षों तक केंद्र सरकार ने मुआवजा देने का भी निर्णय लिया।

सभी राज्यों की सहमति के बाद और उन्हें विश्वास में लेने के बाद वर्ष 2017 में 1 जुलाई को मध्यरात्रि में इन कर सुधारों को लागू कर दिया गया। इस ऐतिहासिक निर्णय को लागू करने के लिए संसद का विशेष अधिवेशन बुलाया गया था। तब से लगातार GST से होने वाले फायदों से देश की आर्थिक तरक्की को बल मिला है।

क्या-क्या बदल गया GST से?

GST आने के बाद से कई बदलाव देखने को मिले हैं। सबसे बड़ा बदलाव तो देश के अप्रत्यक्ष कर संग्रह में देखने को मिला है। वित्त वर्ष 2022-23 में हर माह औसतन ₹1.51 लाख करोड़ का GST संग्रह हुआ जो कि एक रिकॉर्ड है। 

वित्त वर्ष 2023-24 के पहले माह अप्रैल में ₹1.87 लाख करोड़ का GST संग्रह हुआ जो कि एक माह में हुआ सर्वाधिक GST संग्रह है। इसकी तुलना GST लागू होने के पहले के समय से की जाए तो चौंकाने वाले आंकड़े सामने आते हैं।

GST के लागू किए जाने से पहले के वित्त वर्ष 2016-17 में किसी भी वस्तु अथवा सेवा की बिक्री पर लगने वाले कर का संग्रह कुल ₹3.91 लाख करोड़ था, जो कि वित्त वर्ष 2022-23 में बढ़ कर ₹18.10 लाख करोड़ हो गया। इस तरह इसमें सात वर्षों के भीतर 4.5 गुने से अधिक की वृद्धि हुई हुई है। 

UPA सरकार के दौरान अप्रत्यक्ष करों के संग्रह की बात कि जाए तो पुरानी व्यवस्था के अंतर्गत यह मात्र ₹3.08 लाख करोड़ ही थे। इस बढे हुए कर संग्रह का बड़ा फायदा केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को मिला है। अब उनके पास जनता के कामों पर खर्च करने के लिए अधिक धन मौजूद है।

GST के लागू होने से एक बड़ा बदलाव माल की आवाजाही पर पड़ा है। अब सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने के लिए ई-वे बिल की व्यवस्था की गई है। इसके आधार पर वाहन बिना किसी रोकटोक के एक राज्य से दूसरे राज्य तक माल ले जाते हैं और उन्हें रुकावटों का सामना नहीं करना पड़ता। 

इसके अतिरिक्त, अलग-अलग रुकावटों के कारण GST से पहले माल की आवाजाही की लागत कुल लागत का 14% थी जो कि अब धीमे-धीमे कम हो रही है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की एक रिपोर्ट बताती है कि GST के पहले ट्रकों को बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में चेकिंग पॉइंट्स पर २ घंटे से अधिक लगते थे। माल की आवाजाही में तेजी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मात्र मार्च महीने में ही GST पोर्टल पोर्टल पर 9 करोड़ से अधिक ई-वे बिल जारी किए गए।

यातायात में तेजी के अतिरिक्त एक बड़ा फायदा व्यवस्था के डिजिटल होने से हुआ है। GST पोर्टल के माध्यम से व्यापारी आसानी से अपना कर भुगतान कर पा रहे हैं। इससे व्यापारियों का व्यवस्था में विश्वास बढ़ा है और जो अब तक व्यवस्था के जटिल होने के कारण इससे बचते वह भी अब सारा काम पूरी ईमानदारी से करना चाह रहे हैं। एक आंकड़े के अनुसार, GST पोर्टल पर लगभग 1.4 करोड़ व्यापारी पंजीकृत हैं।

GST के अंतर्गत देश भर में एक सामान कर होने से वस्तुओं की कीमत में दिखने वाला अंतर भी अब खत्म हो गया है। वहीं करों का जंजाल खत्म होने के कारण अब नई कम्पनियों को भी व्यापार प्रांरभ करने में आसानी हो रही है।

GST के अंतर्गत देश भर में एक समान कर होने से वस्तुओं की कीमत में दिखने वाला अंतर भी अब खत्म हो गया है। वहीं करों का जंजाल खत्म होने के कारण अब नई कम्पनियों को भी व्यापार प्रांरभ करने में आसानी हो रही है। GST लागू होने का असर प्रत्यक्ष कर के आंकड़ों पर भी पड़ा है, कर एकत्रित करने में पारदर्शिता आने और सभी लेनदेन का पैन कार्ड से जुड़ने के कारण अब व्यापारिक गतिविधियों के कारण होने वाली आय को अब छुपाया नहीं जा सकता और आयकर देना ही पड़ता है।

करों के जंजाल के आसान होने का असर विश्व बैंक की ईज ऑफ़ डूइंग बिजनेस इंडेक्स में भारत की रैंकिंग पर भी पड़ा है। भारत इस इंडेक्स में वर्ष 2014 में 142वें स्थान पर था, GST लागू होने के बाद अब यह 63वें स्थान पर है। इस रैंकिंग में भारत के आगे बढ़ने से विदेशी निवेशकों का विश्वास भी भारत में बढ़ा है और वह अब भारत में व्यापार करने के लिए आकर्षित हो रहे हैं।   

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  • अर्पित त्रिपाठी
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