भारत जोड़ो यात्रा के जितने उद्देश्य थे वो करीब-करीब पूरे कर लिए गए हैं। जो बच गए हैं वो कांग्रेस में इमरान मसूद की एंट्री के बाद पूरे हो जाएंगे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता (अगर कहा जा सकता है तो) राहुल गांधी ने जो मोहब्बत की दुकान खोली थी उसमें अपनी यात्रा के जरिए सिपाहियों को भरने का काम किया है। 9 वर्ष से सत्ता में वापस आने के लिए संघर्षरत कांग्रेस के नबी राहुल गांधी ने साम्प्रदायिकता और अपने प्राइवेट सेक्युलरिज्म के आधार पर वोट बैंक बढ़ाने की रणनीति तैयार की है। उदयनिधि स्टालिन से लेकर बिहार और यूपी में उठे सनातन विरोधी बयान तो इसकी शुरुआत थे। अब पार्टी में इमरान मसूद की वापसी करवाकर कांग्रेस सीधे मैदान में आ गई है, यह संदेश देते हुए कि आगामी चुनावों में किन मुद्दों को देख रही है या किन्हें मुद्दे बनाना चाहती है।
बदलते राजनीतिक समीकरणों में जो लोग विकास के मुद्दों पर चुनाव की संभावनाएं जता रहे थे उनके लिए कांग्रेस ने साफ संदेश जारी किया है कि वो विकास की राजनीति के लिए कभी तैयार थी ही नहीं। उसके लिए मुद्दे तो आज भी जाति, धर्म और साम्प्रदायिकता ही है। राहुल गांधी ने देशभर का भ्रमण कर बताया कि वो मोहब्बत की दुकान खोलना चाह रहे हैं। अब वे चुनावी रणनीतियां और अपने सिपाहियों को चुनकर बता रहे हैं कि मोहब्बत की दुकान किनके लिए है और इसमें क्या मिलेगा?
दानिश अली से मुलाकात कर हेट स्पीच के प्रति लड़ने का संदेश देने के साथ ही राहुल गांधी ने इमरान मसूद को पार्टी में जगह देकर यह भी बता दिया है कि मोदी विरोधी हेट स्पीच को मोहब्बत की दुकान में क्या ईनाम मिलता है। मसूद, जो कभी प्रधानमंत्री मोदी की ‘बोटी-बोटी’ करना चाहते थे अब मोहब्बत की दुकान के जरिए अपना काम करेंगे और कोई उनपर प्रश्न नहीं उठा सकता क्योंकि यह सब प्यार-मोहब्बत के नाम पर किया जाएगा।
जो लोग इमरान मसूद की पार्टी में वापसी से आश्चर्यचकित हैं उनकी राजनीतिक समझ पर संदेह होता है। दरअसल, चुनाव के नजदीक आने के साथ यह वापसी होनी ही थी। अल्पसंख्यकों के कथित दमन के खिलाफ विदेश में बोलने और मुस्लीम लीग को सेक्युलर बताने के साथ राहुल गांधी ने बहुत पहले संदेश दे दिया था कि मोहब्बत की दुकान किनके लिए खुली है।
एक राजनेता के तौर पर राहुल गांधी अल्पसंख्यकों के लिए संघर्ष करना चाहें तो यह कोई गलत बात नहीं होती पर वोट बैंक के आधार पर मुद्दे बनाना उनकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाता है। अब 2019 के लोकसभा चुनावों में जब प्रियंका गांधी सहारनपुर दौरे पर थी तो इमरान मसूद के कहने पर अपनी जैन मंदिर की यात्रा को रद्द कर दिया था। मुस्लिम बहुल सीट पर जैन वोट बैंक को नकारना प्रियंका गांधी की राजनीतिक समझ थी। प्रियंका या उनके भाई राहुल गांधी इसका सामान्यीकरण अल्पसंख्यक कार्ड खेल कर कर सकते हैं पर उनसे क्या यह पूछा नहीं जाना चाहिए कि जैन संप्रदाय उनकी अल्पसंख्यक कार्ड की श्रेणी में क्यों नहीं आता?
इमरान मसूद मोहब्बत की दुकान में प्रवेश कर चुके हैं। वोट बैंक के जरिए ही विचारधारा और मुद्दों को तय करती आई कांग्रेस के लिए राहुल गांधी की मोहब्बत की दुकान भी पुराने पैकेट में नए माल की तरह है। इस दुकान से जाति भी बांटी जाएगी, धर्म भी बांटे जाएंगे और जो इसपर प्रश्न उठाएगा उसे नफरती बता दिया जाएगा।
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