आज रामनवमी है। श्री राम का जन्मदिन। श्री राम के चरित्र की विशेषता यह है कि उन्हें किसी भी रूप में देखा जाए, श्रेष्ठता से ही परिचय होगा। श्रेष्ठ पुत्र, श्रेष्ठ योद्धा, श्रेष्ठ पति, श्रेष्ठ राजा, श्रेष्ठ भ्राता, अर्थात जीवन का ऐसा कोई पहलू नहीं है, जहाँ श्री राम श्रेष्ठ न रहे हों। हमारी संस्कृति में जिस रामराज की बात हजारों वर्षों से की जाती रही है, उसकी स्थापना केवल श्री राम के ही सामर्थ्य में था।
हाल के महीनों में विदेश मंत्री जयशंकर का वक्तव्य कि उन्होंने कूटनीति का पाठ रामायण और महाभारत से सीखा है, बहुत महत्वपूर्ण है। कारण यह है कि राज्य के शासन और प्रशासन का शायद ही कोई पहलू हो जिसका वर्णन रामायण में न हो। यदि हनुमान जी से कूटनीति सीखी जा सकती है तो श्री राम से राज्य चलाने का गुर सीखा जा सकता है।
भारतीय परंपरा में आज भी रामराज की ही परिकल्पना की जाती है, राम राज माने आदर्श राज्य। कारण यह है कि राम को सदैव आदर्श राजा ही माना जाता है। रघुकुल नंदन, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम हर युग में आदर्श के परिचायक रहे है।
ढाल में ढले समय की, शस्त्रु में ढले सदा।
सूर्य थे मगर वो सरल, दीप से जले सदा।।
ताप में तपे स्वयं की, स्वर्ण से गले सदा।
राम ऐसा पथ थे जिसपे, राम ही चले सदा।।
शास्त्रों में राम की अलौकिक कथाएं हैं। उन्ही कथाओं में से एक यह है कि राज्य की स्थिति और राज्य के कार्यभार को कैसे रेखांकित किया जाना चाहिए।
रामायण में अनेक प्रसंग हैं। एक राजा को राज्य की राजनीति और कूटनीति के बारे में कितना पता होना चाहिए, और राज्य को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है, ये श्री राम से बेहतर कौन ही जाने। भरत श्री राम से मिलने चित्रकूट आते है और गले मिलकर फूट-फूट कर रोने लगते है।
इसी मिलाप और कुशल क्षेम पूछने के बहाने श्री राम भरत को राजनीति का उपदेश देते है। जिसमें श्री राम राजधर्म से संबंधित बहुत सी बातें भरत को बताते है। उपदेश देते वक़्त श्री राम भरत से राज्य की कुशल मंगल, पिताजी के स्वास्थ्य और गृहस्थी के बारे में पूछते है।
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वर्तमान की बात करें तो एस. जयशंकर एक 2016 की एक घटना को याद करते हुए कहते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफ़ग़ानिस्तान के मजार-ए-शरीफ में हो रहे आक्रमण के बाद मुझे फ़ोन कर वहां का हाल चाल पूछते हैं और वो भी मध्यरात्रि में। जब एस. जयशंकर कहते है की बहुत रात हो चुकी है, वो इस हो रहे आक्रमण के बारे में दूसरी सुबह बता सकते है, तो हमारे प्रधानमंत्री उन्हें बस यही कहते है की ‘मुझे फ़ोन कर देना’।
यह मात्र कुशल मंगल पूछने के उद्देश्य से नहीं पूछा गया बल्कि यह जानने का प्रयास था कि देश का आम नागरिक कैसा है?
एक राजा को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उसकी प्रजा सुरक्षित और कुशल मंगल हो। राम भरत को भी यही सीख देते हैं। प्रजा का सदैव सुखी और संपन्न रहना राज्य की समृद्धि का कारण बनती है।
राम भरत को कहते हैं कि कृषि और गो-रक्षा से आजीविका चलाने वाले सभी वैश्य तुम्हारे प्रीति पात्र होने चाहिए। कृषि और व्यापार में संलग्न रहने के बाद ही लोक सुखी एवं उन्नतशील होता है।
राम भरत को आदर का महत्व बताते हैं। वे देवताओं, पितरों, भृत्यो, गुरुजनों, पिता के समान आदरणीय लोगों को सम्मान देने की बात कहते हैं। वे भरत से कहते हैं कि योग्य लोगों को ही मंत्री बनाना क्योंकि अच्छे मंत्री ही राजाओं के विजय का मूल मंत्र होते हैं।
कोई भी गुप्त मंत्रणा दो से चार कानों तक ही गुप्त रहती है, छः पर जाते ही फूट जाती है, ये भरत के लिए राम के वचन है। राम उनसे कहते हैं कि जिसका साधन छोटा और फल बड़ा हो उस कार्य में कभी विलम्ब नहीं करना।
राम भरत को चित्रकूट में जो सलाह देते हैं, वह किसी भी राज्य को चलाने का मंत्र हो सकता है। ये ऐसी बातें हैं जो किसी भी भूखंड और किसी भी राज्य पर युगों युगों तक लागू होती हैं। मानवीय मूल्यों के आधार पर निर्धारित ये पाठ किसी भी राज्य या देश को समृद्ध बनाने में सक्षम हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का राजकाज के प्रति यह दृष्टिकोण आज भी स्टेट क्राफ्ट को उच्च स्तरीय रखने में मददगार सिद्ध हो सकता है। ऐसे में यह आश्चर्य की बात नहीं कि हमारे विदेश मंत्री कूटनीति या राजनीति की सीख के लिए रामायण की ओर देखते हैं।
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