क़रीब पांच हजार से अधिक वर्षों से भारतीय उपमहाद्वीप में मोटा अनाज उगाया और खाया जा रहा है। आज हम इसे मिलेट्स नाम देते हैं। कभी इसे ‘गरीब का भोजन’ नाम दिया जाता था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार साल 2018 में प्रत्येक देशवासी की थाली में मिलेट्स शामिल होने की बात कही थी। भारत के प्रस्ताव के बाद संयुक्त राष्ट्र (UN) ने साल 2023 को इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर घोषित किया।
केंद्र सरकार की ओर से पेश किए गए आम बजट में श्री अन्न का जिक्र किया गया है। 1 फ़रवरी के दिन अमृत काल का पहला बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाजरा को लोकप्रिय बनाने की भारत की योजना के बारे में बताया। वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि भारत बाजरा को बढ़ावा देने के लिए प्रयास कर रहा है।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान मोटे अनाजों की महत्ता पर विशेष ध्यान दिया है। इसी मोटे अनाज को आज श्रीअन्न नाम दे कर संसद में प्रमुखता से सामने रखा गया। श्रीअन्न ही देवान्न भी हैं।
इसी श्रीअन्न को अनाजों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। बड़े बुजुर्गों ने हमेशा इसे महत्व दिया। हालाँकि समय के साथ इसके उत्पादन के साथ-साथ इसके बाज़ार पर भी काफ़ी हद तक प्रभाव पड़ा। समय के साथ लोग गेहूं, चावल की ओर तेजी से बढ़ते चले गए। इसका नतीजा ये हुआ कि श्रीअन्न यानी मोटे अनाज की उपज, इसकी पैदावार और भोजन में इसको इस्तेमाल पर कभी कोई ध्यान ही नहीं दिया गया। मोदी सरकार ने हाल ही के कुछ वर्षों में आम आदमी की थाली में एक बार फिर श्रीअन्न लाने की तैयारी की हैं।
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वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि श्रीअन्न के लिए हैदराबाद के भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान को सेंटर ऑफ एक्सिलेंस बनाने की तैयाारी की जा रही है। उल्लेखनीय है कि भारत इस समय बाजरा का सबसे बड़ा उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक राष्ट्र है।
मोटे अनाज के लिए भारत घरेलू खपत को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करेगा और बाजरा की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ब्रांडिंग पर भी काम करेगा। इस बार सरकार 5 साल की योजना के साथ आई है जो विभिन्न मंत्रालयों और इसके विदेशी दूतावासों तक फैली हुई है। बाजरे की खपत को लोकप्रिय बनाने के लिए मीडिया, स्टार्ट अप और होटल उद्योग को भी साथ लेने की तैयारियों कि जाएँगी।
ग़ौरतलब है कि बाजरा निर्यात वर्तमान में कुल बाजरा उत्पादन का केवल 1% है। सरकार यदि इसे ‘श्रीअन्न’ नाम दे रही है तो उसके पास निश्चित तौर पर इसके प्रसार के लिए योजना भी होगी। बाजरे के निर्यात के आँकड़ों में वृद्धि के लिए सरकार की ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, जापान, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया, बेल्जियम और जर्मनी जैसे कई देशों में रोड शो और फूड शो में भागीदारी के माध्यम से बाजरा प्रचार गतिविधियों को आयोजित करने की योजना भी है।
यहाँ पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि वर्ष 2020 में भारत बाजरा का सर्वोच्च उत्पादक था और दुनिया के 41% प्रतिशत बाजरे का उत्पादन करने वाला एकमात्र देश भारत ही था। राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश इसके प्रमुख उत्पादक हैं। साल 2020-21 की बात करें तो कोविड महामारी के दौरान इसका चलन बढ़ा और इसने 17.96 मिलियन टन बाजरा का उत्पादन किया। अब सरकार इस संख्या को बढ़ाने का प्रयास करना चाहती है।
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ये वही बाजरा है जिसे कभी मोटा अनाज या फिर गरीबों का अन्न माना जाता था। इसकी पौष्टिकता के कारण केंद्र सरकार ने इनका नाम बदलकर ‘न्यूट्री-अनाज’ कर दिया था। यदि पोषण के आधार पर देखा जाए तो बाजरा आहार में एक से अधिक पोषक तत्व उपलब्ध कराता है। तुलनात्मक रूप से यह चावल और गेहूं से अधिक पौष्टिक भी है।
श्रीअन्न का उत्पादन और उसका बाज़ार अभी भी है बड़ा प्रश्न
बाजरे के लिए किसानों को किस तरह से प्रोत्साहित किया जाए यह सरकार के समक्ष एक बड़ा सवाल हो सकता है। बाजरे की बुआई को प्रोत्साहित करने के लिए नीतियों के साथ-साथ जमीनी स्तर पर और भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। यह कहना ग़लत नहीं होगा कि 2023 के इस बजट में इस कार्य के लिये नींव रखने का प्रयास किया गया है।
इस से भी बड़ी चिंता बाजरा उत्पादकों की सालाना आमदनी का है। बाजरे का उत्पादन करने वाले किसानों की सालाना आमदनी बेहद कम है। ऐसे में यदि बाजरे की बुआई से ले कर इसके बाज़ार तक पर सरकार नीतिगत रूप से काम करती है तो निश्चित रूप से यह किसानों के लिए एक बड़ी मदद साबित होगी और इसके उत्पादन पर भी इसका प्रभाव नज़र आएगा।
रिपोर्ट्स की मानें तो बाजरे के घटते उत्पादन पर सबसे पहले काम करने की आवश्यकता है। इसका कारण यह है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत के बाजरे के उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई है। ज्वार का उत्पादन साल 2010-11 में 7 मिलियन टन था जो कि घटकर 2018-19 में 3.5 मिलियन टन हो गया। वहीं, रागी का उत्पादन 2.2 मिलियन टन से गिरकर 1.2 मिलियन टन हो गया और छोटे बाजरा का उत्पादन 440 हजार टन से घटकर 330 हजार टन रह गया।
बाजरा, या श्रीअन्न जैसा कि वित्त मंत्री ने भी उल्लेख किया है, केंद्र सरकार की प्राथमिकता सूची में है। भारत के किसानों के लिए बाजरा के विशाल आर्थिक और इसकी गुणवत्ता के मूल्य को दुनिया के सामने प्रदर्शित करने का यह सुनहरा अवसर है। बाजरे के उत्पादन के साथ साथ इसका उद्योग ‘श्रीअन्न’ का भाग्य बदल सकता है।