नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड एक नई समस्या में फंसते दिखाई दे रहे हैं। नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने प्रचंड को एक नोटिस भेज कर 15 दिनों के भीतर उनसे जवाब माँगा है। प्रचंड को यह नोटिस उनके द्वारा नेपाली गृहयुद्ध के दौरान नाबालिगों को सरकार के विरुद्ध लड़ने के आरोप पर भेजा गया है।
गौरतलब है कि नेपाल में वर्ष 1996 से लेकर वर्ष 2006 तक राजशाही के विरुद्ध युद्ध चला था जिसके पश्चात नेपाल में राजशाही का अंत हुआ। इस दौरान राजशाही के विरुद्ध युद्ध करने वालों में प्रमुख भूमिका प्रचंड और नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टाराई की थी। यह दोनों नेता माओवादी विचारधारा से जुड़े हुए हैं।
क्या है पूरा मामला?
बीते सप्ताह नेपाल में राजशाही के विरुद्ध लड़ाई में शामिल रहे सामाजिक कार्यकर्ता लेनिन बिस्टा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई की थी कि गृहयुद्ध के दौरान प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल (माओ) और पीपल्स लिबरेशन आर्मी में नाबालिगों को सैनिकों की तरह भर्ती किया गया था और तत्कलीन सत्ता के खिलाफ लड़ाई में उनका उपयोग किया गया जो कि अंतरराष्ट्रीय नियमों के विरुद्ध है। बिस्टा ने यह भी मांग की कि इस कृत्य के लिए वर्तमान प्रधानमंत्री दहल और पूर्व प्रधानमंत्री भट्टाराई पर मुकदमा चलाया जाए।

इस पर सुनवाई करने के बाद नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने प्रचंड के खिलाफ याचिका को दर्ज करने को कहा था, अब इसी मामले में उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने कारण बताओ नोटिस भेज कर 15 दिनों के भीतर जवाब देने को कहा है। इस पूरे मामले की नेपाल में बड़े स्तर पर चर्चा हो रही है।
याचिका दाखिल करने वाले बिस्टा एवं उनके साथ के अन्य बाल सैनिकों ने सुप्रीम कोर्ट से यह मांग की है कि इस पूरे मामले की जांच एक ट्रिब्यूनल के माध्यम से की जाए। उन्होंने दावा किया है कि तत्कालीन नेताओं ने बच्चों को युद्ध में शामिल करके युद्ध अपराध किए हैं।
बिस्टा का कहना है कि वर्ष 2006 में युद्ध विराम होने के बाद बाद जब माओवादी लड़ाकों को नेपाली सेना में मिलाया गया था तब बिस्टा समेत इन बाल लड़ाकों को उनकी आयु कम होने के कारण भर्ती नहीं किया गया था और उन्हें वह लाभ नहीं मिले जो कि अन्य माओवादी सैनिकों को हथियार डालने के एवज में मिले थे। गौरतलब है कि वर्ष 2006 में नेपाल में राजशाही के विरुद्ध युद्ध करने वाली नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) और नेपाल सरकार के बीच शान्ति समझौता हो गया था।
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इसके पश्चात संयुक्त राष्ट्र के नेपाल मिशन (UNMIN) ने माओवादी सैनिकों को नेपाली सेना में मिलाने के लिए सत्यापन का कार्य संभाला था, इस दौरान बिस्टा समेत हजारों की संख्या में पूर्व माओवादी लड़ाकों को आयु कम होने के कारण इस प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया था।
द काठमांडू पोस्ट के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र ने 2,973 माओवादियों को नाबालिग बताया गया था। नेपाल की सरकार ने इस दौरान लड़ाई से हटने और घरों को वापस लौटने वाले सभी माओवादी लड़ाकों को 5 लाख से 8 लाख के बीच धनराशि दी थी। जबकि बिस्टा जैसे लड़ाकों को मात्र कुछ हजार रुपए संयुक्त राष्ट्र की नेपाल एजेंसी की तरफ से दिए गए थे।
नेपाल गृहयुद्ध 1996-2006
नेपाल में वर्ष 2008 में लोकतांत्रिक सरकार बनने के पहले राजशाही थी, इस दौरान नेपाल में शाह राजवंश का शासन था। नेपाल में लम्बे समय से लोकतंत्र के प्रयास हो रहे थे, नेपाली कॉन्ग्रेस समेत तमाम दल नेपाल में लोकतंत्र लाने की मांग कर रहे थे।
इसी दौरान लोकतंत्र की मांग करने वाले एक धड़े ने वर्ष 1996 में क्रान्ति का रास्ता चुन लिया और हथियारों के भरोसे सत्ता परिवर्तन की बात की। इस धड़े ने खुद को नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) घोषित किया और नेपाल की सरकार और सेना के विरुद्ध हमले चालू कर दिए। इसके नेता प्रचंड ने सरकार के खिलाफ इस युद्ध को लोगों की लड़ाई का नाम दिया।

वर्ष 2006 तक चले इस संघर्ष में 17,800 लोगों की मृत्यु हुई और 1,000 से अधिक लोग लापता हो गए। इसके अतिरिक्त बड़ी संख्या में पलायन भी हुआ और लोग घायल भी हुए। दोनों पक्षों के बीच नेपाल में वर्ष 2006 में शान्ति समझौता हुआ। इसके पश्चात वर्ष 2008 में आम चुनाव कराए गए और प्रचंड सता में आए। इसी के साथ लगभग 250 वर्षों से चली आ रही राजशाही का अंत हो गया था।
नेपाल में इससे पहले भी प्रचंड के विरुद्ध दायर की गईं हैं याचिकाएं
इससे पहले मार्च महीने में प्रचंड के विरुद्ध नेपाल के सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गईं थी जिसमें मांग की गई थी कि नेपाल में गृहयुद्ध के दौरान 5,000 लोगों की हत्या के लिए प्रचंड की जांच की जाए और उनको गिरफ्तार किया जाए।
यह याचिकाएं प्रचंड द्वारा काठमांडू में दिए गए उस बयान के पश्चात दाखिल की गईं थी जिसमें उन्होंने कहा था कि मुझ पर राजशाही के विरुद्ध युद्ध के दौरान 17,000 लोगों को मारने का आरोप लगाया जाता है जो कि सही नहीं है।
प्रचंड ने कहा था कि उन्होंने 17,000 नहीं बल्कि 5,000 लोगों की हत्या गृह युद्ध के दौरान की है, बाकी 12,000 लोगों की हत्या सामंतवादी सरकार ने की है। उन्होंने यह भी कहा था कि मैं 5,000 लोगों की मृत्यु जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हूँ।
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