कबीरदास की पंक्ति “जस की तस रख दीनी चदरिया” का अर्थ सामान्यतः हम सब जानते हैं। जैसा मिला था, उसे वैसा ही लौटाना। यह पंक्ति मीडिया से हाथ जोड़ते हुए पीछले 18 वर्षों से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान ने भावुक होते हुए विगत दिनों कही। अब इस पंक्ति के कई मायने निकाले जा रहे हैं। मध्यप्रदेश के आम आदमी के मामा शिवराज सिंह चौहान ने नवंबर 2005 में पहली बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। उसके बाद से आज तक नर्मदा नदी में कितना ही पानी बह चुका है और मध्यप्रदेश जो 2005 में था, वह वर्तमान में बिल्कुल अलग व विकास की ओर बढ़ता राज्य बन गया है।
एक बेहद बीमारु राज्य को विकास के पथ पर लाने में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व का बहुत बड़ा योगदान है। उनके मुख्यमंत्री काल में मध्यप्रदेश ने कई ऐतिहासिक निर्णय देखे। राज्य समृद्धि के मार्ग पर अग्रसर हुआ। मध्यप्रदेश की जनता के बीच ‘मामा’ नाम से चर्चित शिवराज सिंह चौहान ही थे जो सबसे पहले केन्द्र में मनमोहन सिंह सरकार से मध्यप्रदेश के लिए बड़े विकास कार्यों के लिए संघर्ष किया। उन्होंने केंद्र के द्वारा मध्यप्रदेश के साथ हुए भेदभाव के लिए पुरजोर आवाज उठाई और मध्यप्रदेश में विकास के लिए कई मार्ग खोले। अपने सहज व सरल स्वभाव के कारण शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश की जनता के बीच बहुत जल्द ही लोकप्रिय हो गए थे और अपने 18 वर्षों के कार्यकाल में आखिर तक लोकप्रियता के चरम पर रहे।
आज जब मध्यप्रदेश की राजनीति में सबसे बड़ा व लोकप्रिय चेहरा यदि कोई है तो निसंदेह मामाजी ही है। ऐसे में यह कह देना कि ‘मित्रों अब विदा…जस की तस रख दीनी चदरिया !’ इस बात के कई अर्थ हो सकते हैं। क्या वे अब राजनीति से सन्यास लेंगे? या फिर भाजपा में नई जिम्मेदारी के लिए उनका मन नहीं है या फिर वे कहना चाहते है कि मुझे जो संगठन व संघ ने जिम्मेदारी दी थी, मैंने उसका निर्वाह कर दिया? या फिर अपने संगठन व दल से किसी तरह की असंतुष्टि जाहिर करना चाहते हो। इन सब बातों के अलावा इन पंक्तियों के ओर भी मायने हो सकते हैं। लेकिन विगत 18 वर्षों से मध्यप्रदेश की राजनीति में मामाजी का कार्याकाल विकास, संवाद, विवाद, घोटाले के आरोप, भ्रष्टाचार से संबंधित बातें, महिलाओं के लिए विशेष योजनाएं व अपनी अलग राजनीतिक शैली की लंबी लकीर खींच गया है।
वो भले मध्यप्रदेश की सड़कों का निर्माण हो या फिर महिलाओं व बच्चों के लिए कितने ही लाभकारी योजनाएं हो। उसी के साथ जुड़ा है डंपर कांड, जो राष्ट्रीय राजनीति में काफी चर्चा में रहा। व्यापम घोटाले को भला कौन भूल सकता है? मध्यप्रदेश की जीवन रेखा नर्मदा नदी में रेत उत्खनन से संबंधित अनियमितता हो या फिर आम आदमी का भ्रष्टाचार के कारण परेशान होना। ये कुछ ऐसी बातें हैं जो शिवराज सिंह चौहान के पूरे कार्यकाल में निरंतर चर्चा के विषय रहे। वहीं कांग्रेस की 15 महीनों की सरकार के समय विपक्ष में रहते हुए शिवराज सिंह चौहान का मध्यप्रदेश के अंचलों में सरकार के खिलाफ माहौल बनाना। ऐसे विषय है जो उनकी राजनीतिक सक्रियता व जुझारूपन को दिखाते हैं।
शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में 2023 के चुनाव में मिली अपार सफलता के बाद वे भले कहे कि मित्रों अब विदा! लेकिन इसके गहरे अर्थ व भाजपा संगठन को बड़ा संदेश तो माना जा सकता है। आज मध्यप्रदेश में मामा मोदीजी से भी लोकप्रिय बनकर उभरे हैं। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व अब इसे कैसे देखता है यह अगले कुछ माह चर्चा का विषय रहना है। सोशल मीडिया पर शिवराज सिंह चौहान ने अपने आप को जनता का ‘भाई व मामा’ लिख दिया है। आम जनता से जुड़कर रहने की उनकी यह कला उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में अलग पहचान दिलाती है। मध्यप्रदेश का पांचवीं बार मुख्यमंत्री नहीं बनाये जाने के बाद मामाजी राजनीतिक छवि ओर बढ़ गई है।
लाड़ली लक्ष्मी व लाड़ली बहना योजनाओं से उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में अपना एक अलग ही स्थान बना लिया है। इस कारण ही इस बार के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश की महिलाओं ने भाजपा को भारी मतों से जिताया। इस मास्टर स्ट्रोक की सफलता के लिए मध्यप्रदेश की जनता मामाजी को श्रेय देती हैं और इस जीत के लिए उन्हें असली नायक मानती हैं। लेकिन उसके बाद भी शिवराज सिंह चौहान का इतनी सहजता से कह देने कि मित्रों अब विदा…! उनके बड़े राजनीतिक कद को दर्शाता है। वे अटल-आडवाणी युग की राजनीति से संबंध रखते है इसलिए आगे राष्ट्रीय व मध्यप्रदेश की राजनीति में उनकी भूमिका क्या रहेगी, यह महत्वपूर्ण प्रश्न आम जनता में चर्चा का विषय बन गया है।
अपने 18 वर्षों के कार्यकाल में शिवराज सिंह चौहान पर विपक्ष के द्वारा कई आरोप भी लगाए गए। लेकिन विपक्ष उन आरोपों को सिद्ध नहीं कर पाया। मामाजी निरंतर मध्यप्रदेश के विकास के लिए संघर्ष करते रहे व मध्यप्रदेश को आखिरकार विकास के पथ पर ले ही आये। 2005 में जो मध्यप्रदेश शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, सिंचाई, बिजली, पर्यटन , परिवहन आदि के मामलों में पिछड़ा व बीमारु राज्य था। वह 2023 में आज एक तेज गति से आगे बढ़ता राज्य बन गया है। मामाजी को जो चदरिया मिली थी उन्होंने उसे आज साफ व चमकदार करके डॉ मोहन यादव के हाथों में सोंपी है। यह सही है कि शिवराज सिंह चौहान के ऊपर कई घोटालों व भ्रष्टाचार के आरोप लगे, लेकिन उन मामलों का न्यायालय तक जाना व वहां से कोई ठोस निर्णय नहीं आना, आरोपों को खोखला साबित करता है व मामाजी की छवि को ज्यादा धूमिल नहीं कर पाये। राजनीति काजल की कोठरी के समान है लेकिन मामाजी इस कोठरी से बेदाग निकलने में बहुत कुछ सफल हुए हैं।
यह आज मध्यप्रदेश की जनता के मन में उनके लिए प्रेम, लोकप्रियता व स्नेह सिद्ध कर रहा है।
नोट- यह लेख भूपेंद्र भारतीय द्वारा लिखा गया है।
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