हाल ही में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने एक रैली में कहा कि ‘हमें इसकी चिंता नहीं है कि हमें कोई देश वीजा जारी करेगा कि नहीं, हम दूसरों पर निर्भर नहीं रहेंगे, दुनिया में और भी देश और महाद्वीप हैं जहाँ कोई जा सकता है और हम उन देशों के साथ मित्रता बढ़ाएंगे’।
शेख हसीना का यह बयान हाल ही में अमेरिका द्वारा मई माह में जारी की गई नई वीजा नीति को लेकर था। इस नीति के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति बांग्लादेश में होने वाले चुनावों में गड़बड़ी का आरोपित है तो उस पर अमेरिका के वीजा को लेकर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
क्या है पूरा मामला?
पिछले कुछ दिनों से अमेरिका के बायडेन प्रशासन और शेख हसीना की सरकार के बीच राजनयिक स्तर पर रिश्ते बिगड़ रहे हैं। इसका कारण अमेरिका का लगातार बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप करना है। दरअसल, शेख हसीना वर्ष 2009 से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं और उनकी पार्टी बांग्लादेश आवामी लीग चुनाव दर चुनाव जीतते आई है।
शेख हसीना के विरोधियों और विशेष कर उनसे पहले सत्ता में रहीं खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) का कहना है कि हसीना सरकार और उनकी पार्टी मानवाधिकारों का उल्लंघन करती है और चुनावों को निष्पक्ष ढंग से नहीं होने देती, जबकि शेख हसीना खालिदा जिया की पार्टी पर देश में इस्लामी कट्टरपंथ को बढ़ावा देने का आरोप लगाती आई हैं।
अमेरिका ने बांग्लादेश से आने वाली इन आवाजों पर ध्यान देना चालू कर दिया है और लगातार वह ऐसे कदम उठा रहा है जिससे शेख हसीना पर यह दबाव पड़े कि वह अपनी भूमिका कम कर दें। अमेरिका में जो बायडेन के आने के बाद इस तरह के क़दमों में तेजी आई है, यह बायडेन की उस ‘वैल्यू बेस्ड डिप्लोमेसी’ का हिस्सा हैं जिसके अंतर्गत वह किसी भी देश से अपने रिश्ते मजबूत करने के लिए उसके यहाँ कथित मानवाधिकारों का जायजा लेता है।
इसी कड़ी में अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेंन ने 24 मई को घोषणा की थी कि अमेरिका बांग्लादेश के लिए एक नई वीजा नीति ला रहा है, इस नई नीति के माध्यम से अमेरिका उन लोगों को आने से रोक सकेगा जिनके बारे में यह माना गया हो कि उन्होंने बांग्लादेश के चुनावों में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी का प्रयास किया है। ब्लिंकेन ने लिखा कि यह कदम बांग्लादेश में निष्पक्ष चुनावों को बढ़ावा देने के लिए लाया गया है।
मामला सिर्फ इतना ही नहीं है कि अमेरिका कोई नई वीजा नीति लाया है, बल्कि इससे पहले अप्रैल माह में बांग्लादेश के विदेश मंत्री अब्दुल मोमेन से मिलने के दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री ने यही बात दोहराई थी कि विश्व इस समय बांग्लादेश के आगामी चुनावों को लेकर आशा से देख रहा है। बांग्लादेश में जनवरी 2024 में आम चुनाव प्रस्तावित हैं।
चुनावों पर चिंता जताने और नई नीति लाने के अलावा अमेरिका बांग्लादेश में अपने समीक्षक भेजने वाला है, बांग्लादेश के विदेश मंत्री ने अपने अमेरिकन समकक्ष के साथ हुई बैठक में कहा था कि यदि आपको निष्पक्ष चुनावों पर कोई संदेह है तो आप जितने चाहें उतने समीक्षक भेज दें।
मोमेन ने यह भी कहा था कि भले ही हम विदेशी समीक्षकों को अपने यहाँ अनुमति नहीं देते परन्तु हम अभी यह दिखाना चाहते हैं कि आवामी लीग निष्पक्ष चुनावों में विश्वास रखती है। 2018 के आम चुनावों के दौरान भी अमेरिका ने समीक्षक भेजे थे लेकिन कुछ समीक्षकों को वीजा मिलने में हुई देरी के कारण बांग्लादेश सरकार और ढाका का अमेरिकी दूतावास आमने सामने आ गए थे।
पहले भी आमने-सामने आते रहें हैं हसीना-अमेरिका
इसके अतिरिक्त अन्य कई फ्रंट पर बांग्लादेश और अमेरिका पिछले दिनों आमने सामने आ चुके हैं। एक मामले पर बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अप्रैल महीने में देश की संसद में अमेरिका की कड़ी आलोचना की थी। शेख हसीना ने अमेरिका पर उनकी सरकार को सत्ता से हटाने के प्रयास करने का आरोप लगाए थे।
शेख हसीना ने कहा था कि अमेरिका यह सरकार हटाकर ऐसी सरकार लाना चाहता है जो कि अलोकतांत्रिक होगी। अमेरिका पर हमला बोलते हुए उन्होंने यह भी कहा था कि अमेरिका की लोकतंत्र की परिभाषा प्रशांत महासागर पार करते ही बदल जाती है। शेख हसीना का यह बयान कुछ प्रसिद्ध अमेरिकी व्यक्तित्वों द्वारा लिखे गए एक पत्र के बाद आया था जो उन्होंने बांग्लादेश की ग्रामीण बैंक के संस्थापक मोहम्मद यूनुस के समर्थन में लिखा था।
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मोहम्मद युनुस बांग्लादेश की ग्रामीण बैंक के संस्थापक हैं और यह बैंक बांग्लादेश के गाँवों में लोगों को सूक्ष्म लोन देती आई है, यह कर्ज बिना किसी गारंटी के दिए जाते हैं। इस पूरे प्रोग्राम को चलाने के लिए यूनुस को वर्ष 2006 में नोबल मिला था।
यूनुस ने वर्ष 2007 में देश के लोगों से एक नया राजनीतिक दल बनाने के बारे में पूछा था, तभी से उनके और शेख हसीना के बीच दरार पड़ने की आशंका जताई जाती है, इसके बाद यूनुस के बैंक और उन पर कई तरह के आरोप भी लगते आए हैं। ग्रामीण बैंक पर सैकड़ों मिलियन डॉलर की धनराशि की हेराफेरी का आरोप है।
इसी को लेकर अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन, नारायणमूर्ति समेत 40 प्रसिद्ध शख्सियतों ने अमेरिकी अखबार ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ में एक पूरे पेज पर विज्ञापन के रूप में एक खुला पत्र प्रकाशित किया था, जिसमें यह अपील की गई थी कि शेख हसीना की सरकार, मोहम्मद यूनुस को परेशान ना करे।
शेख हसीना ने इस बयान के दौरान कहा था कि अमेरिका हमें लोकतंत्र पर लेक्चर देता है, उनके अपने देश की स्थिति क्या है? उन्होंने कहा था कि आज मुस्लिम देश समस्याओं का सामना कर रहे हैं और अमेरिका किसी भी देश की सरकार गिरा सकता है, विशेष कर मुस्लिम देश की। शेख हसीना ने इस दौरान अमेरिका पर शेख मुजीबुर्रहमान के हत्यारे राशेद चौधरी को शरण देने का आरोप भी लगाया।
बांग्लादेश में वर्ष 1975 में हुए सैन्य तख्तापलट के दौरान शेख हसीना के पिता और तत्कालीन राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या कर दी गई थी, इस हत्याकांड में शेख हसीना के परिवार कई सदस्य मारे गए थे। हत्या करने वालों का नेतृत्व तब एक सैन्य अधिकारी रहा राशेद चौधरी कर रहा था। वर्तमान में वह अमेरिका में रहता है।
शेख हसीना के इस बयान के बाद दोनों देशों के रिश्तों में और खटास पैदा हो गई, यह बयान देने के बाद अप्रैल महीने के अंत में शेख हसीना अमेरिका की यात्रा पर गईं थी। शेख हसीना की यह यात्रा बांग्लादेश-विश्व बैंक के रिश्तों के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में रखी गई थी। इस दौरान अमेरिका के बायडेन प्रशासन के किसी भी व्यक्ति ने शेख हसीना ने मुलाक़ात नहीं की।
इससे पहले दिसम्बर, 2021 में अमेरिका ने बांग्लादेश की रैपिड एक्शन बटालियन और इससे जुड़े लोगों पर प्रतिबंध लगा दिए थे। अमेरिका का कहना है कि बांग्लादेश का यह अर्धसैनिक बल बांग्लादेश में हसीना सरकार के तहत मानवाधिकारों का उल्लंघन करता आया है।
बांग्लादेश में अमेरिका के राजदूत पीटर हास भी लगातार विवादों में रहे हैं, वह लगातार बांग्लादेश में चुनावों को लेकर बयान देते आए हैं। बीते दिनों उनकी एक विपक्षी नेता के घर की यात्रा पर विवाद खड़ा हो गया था। पीटर BNP के एक नेता के घर गए थे जो कि गायब हो गया था, इस दौरान सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उस घर को घेर लिया था। बांग्लादेश आवामी लीग में यह सोच है कि अमेरिका परोक्ष रूप से बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी का समर्थन कर रहा है।
हसीना सरकार का क्या कहना है?
बांग्लादेश, अमेरिका से अपने रिश्तों को खराब नहीं होने देना चाहता क्योंकि वर्तमान में बांग्लादेश के सर्वाधिक निर्यातों और डॉलर का स्रोत अमेरिका ही है। बड़ी संख्या में बांग्लादेशी अमेरिका में रहते हैं जो एक बड़ी धनराशि अपने देश को भेजते हैं। इस बांग्लादेश को अपनी अर्थव्यवस्था आगे बढ़ाने में सहायता मिलती है।
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बांग्लादेश सरकार लगातार इस बात पर जोर देती आई है कि देश में होने वाले आगामी चुनाव निष्पक्ष होंगे। इसको लेकर शेख हसीना ने विदेश मंत्रियों और बड़े अधिकारियों के बांग्लादेश दौरे के दौरान यह बात दोहराई है कि बांग्लादेश का चुनाव आयोग संवैधानिक संस्था है और यह आने वाले समय में निष्पक्ष चुनाव कराएगा।
बांग्लादेश के विपक्ष का क्या रुख है?
बांग्लादेश का विपक्ष जिसमें मुख्य रूप से इस्लामी पार्टियां शामिल हैं, अमेरिका के इन क़दमों की सराहना करता आया है। विपक्ष की पार्टी BNP पर इस्लामी कट्टरपंथी समूह जमात-ए-इस्लामी से जुड़े होने का आरोप लगता आया है। जमात बांग्लादेश में प्रतिबंधित है और इसके कई सदस्यों को बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान युद्ध अपराध करने के लिए सजाएं हुईं हैं।
BNP की तरफ से प्रधानमंत्री रहीं खालिदा जिया खुद भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण जेल में हैं। अब BNP का प्रभाव बांग्लादेश में कम हुआ है लेकिन वर्तमान मुख्य विपक्षी दल जातीय पार्टी भी दकियानूसी विचारों वाली मानी जाती रही है। जातीय पार्टी लगातार इस्लामी पार्टियों के एक गठबंधन पर काम कर रही है।
शेख हसीना ने बांग्लादेश में कट्टरपंथ को रोकने के लिए काफी कदम उठाए हैं और विश्व की चौथी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी होने के बाद भी बांग्लादेश में इस्लामी आतंकवाद अपने पैर नहीं पसार पाया है। विपक्षी पार्टियों के बड़े नेता शेख हसीना के परिवार को धमकियां देते आए हैं। 2022 में एक नेता ने 1975 नरसंहार को दोहराने की बात की थी।
वर्तमान में विपक्ष चाहता है कि नए चुनाव शेख हसीना की सरकार के अंतर्गत ना होकर एक कार्यवाहक सरकार के शासन में हों। बांग्लादेश में 2008 के चुनाव ऐसी ही एक सरकार के अंतर्गत हुए थे जिसको सेना का समर्थन प्राप्त था। हालांकि, इन चुनावों में शेख हसीना की भारी बहुमत से विजय हुई थी। वर्तमान सरकार ऐसे किसी भी प्रस्ताव के पक्ष में नहीं है जबकि BNP जैसे दलों का कहना है कि वह हसीना सरकार के अंतर्गत आयोजित आम चुनावों में हिस्सा नहीं लेंगे।
भारत पर क्या हैं इस खींचतान के असर?
भारत और बांग्लादेश के आपसी सम्बन्ध पिछले दशक में काफी प्रगाढ़ हुए हैं। बांग्लादेश में शेख हसीना और भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आने के बाद इनमें और मजबूती आई है। वैसे तो भारत बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता परन्तु उसकी भी यही इच्छा है कि शेख हसीना सत्ता में बनी रहें।
बीते दिनों भारत के विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने बांग्लादेश यात्रा के दौरान कहा था कि शेख हसीना की सरकार में हमें पूर्ण विश्वास है। इसे बांग्लादेश में शेख हसीना के प्रति भारत के समर्थन के तौर पर देखा गया था। भारत के शेख हसीना का समर्थन करने के कई कारण हैं।
खालिदा जिया के शासन (2001-2006) के दौरान बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथ ने अपना प्रभाव बढ़ाया था। इसका असर भारत में आंतकी गतिविधियों में हुई बढ़त में भी देखा गया। शेख हसीना ने इस पर काफी नियन्त्रण किया है, ऐसे में भारत चाहेगा कि शेख हसीना सत्ता में बनी रहें।
इसके अतिरिक्त, आर्थिक मोर्चे पर भी दोनों देशों का सहयोग बीते सालों में बढ़ा है जो कि नई सरकार आने पर प्रभावित हो सकता है। भारत, बांग्लादेश को चीनी प्रभाव से मुक्त रखना चाहता है। शेख हसीना ने अमेरिका, चीन और भारत के बीच अच्छा सामंजस्य स्थापित किया है।
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