“मेरे हृदय परिवर्तन का कारण यह एहसास था कि माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक निस्वार्थ व्यक्ति हैं जो भारत को बदलने के लिए मौलिक निर्णय ले रहे हैं। उन्होंने तीखी आलोचनाओं का सामना किया है लेकिन समावेशी विकास के अपने दृष्टिकोण पर कायम रहे, जिसमें कोई भी पीछे नहीं छूटता।”
What caused my change of heart is the realisation that the Hon'ble PM @narendramodi is a selfless man who is taking radical decisions to transform India. He has braved intense criticism but remained steadfast to his vision of inclusive development that leaves no one behind. pic.twitter.com/s06cA2Q2ua
— Shehla Rashid (@Shehla_Rashid) November 16, 2023
ये शब्द शेहला रशीद के हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास” की बात करते हैं तो शेहला रशीद के ये शब्द उस ध्येय को चरितार्थ करते हैं।
समाचार एजेंसी ANI के एक ताजा पॉडकास्ट में JNU की पूर्व छात्रनेता शेहला रशीद के मुख से निकले ये शब्द सभी के लिए चौंकाने वाले हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं। एक तो छात्रनेता के रूप उनकी सरकार-विरोधी छवि और दूसरा उनके पिता अब्दुल रशीद शौरा का बयान जिसमें वे कहते हैं कि शेहला का इरादा कश्मीर में युवाओं को बरगला कर अलगाववाद के साथ जोड़ने का था।
ऐसे में आज जब शेहला रशीद कहती हैं कि ‘कश्मीर गाजा नहीं है’ यह बताता है कि जम्मू-कश्मीर की पहचान अब अलगाववाद नहीं है, घाटी अब बदलाव की नई राह पर है।
कश्मीर में आए बदलाव का श्रेय शेहला रशीद वर्तमान सरकार, खासतौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को दे रही हैं। उनका कहना है कि इसके लिए एक ऐसी राजनीतिक स्थिति सुनिश्चित की है, जिसे रक्तहीन कहना चाहिए।
शेहला रशीद की बातों का बल तब और भी बढ़ जाता है जब घाटी के प्रमुख नेता यह चेतावनी दे चुके थे कि कश्मीर में तिरंगे को कंधा देने वाला भी कोई नहीं होगा।
शेहला रशीद के बदले सुर नए कश्मीर की नई तस्वीर पेश कर रहे हैं। उनका कहना है कि “घाटी में बहुत तेजी से बदलाव आया है और इसके तथ्य पेश करने के लिए वो तैयार हैं।”
केंद्र सरकार की नीतियों पर वे कहती हैं कि उनमें कोई कमी नहीं है और वो इसके लिए किसी से भी बहस के लिए तैयार हैं और घाटी में हो रहे बदलावों पर तथ्य पेश भी कर सकती हैं।
बहरहाल, शेहला राशिद यह बात जानती हैं कि उनके एक-एक शब्द का राजनीतिक अर्थ टटोलने का प्रयास किया जाएगा। इसके जवाब में वे पहले ही कह चुकी हैं कि “कुछ लोग कहेंगे कि अब आप केंद्र का साथ क्यों दे रहे हैं तो मैं कहूंगी कि आप अभी कश्मीर जाकर नहीं आए हैं।”
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में टिट्टर) पर एक यूजर ने शेहला रशीद में आए बदलावों को लेकर टिप्पणी करते हुए लिखा कि भाजपा का टिकट किसी भी समय आने ही वाला होगा।
इस पर शेहला रशीद की टिप्पणी बेहद नपी-तुली है। वे लिखती हैं, “यह राजनीति के बारे में कम, उन नैरेटिव के बारे में अधिक है जिन्हें हमें आगे बढ़ाना है। क्या मैं पीड़ित होने की भावना को बढ़ावा दूँ? क्या मैं अल्पसंख्यकों को राष्ट्रीय प्रगति में भाग लेने से हतोत्साहित करूँ? भारत प्रतिभा और समावेशी विकास युक्त है। हमें प्रतिस्पर्धा करने के लिए खुद को सही कौशल से लैस करना होगा।”
शेहला रशीद के इन शब्दों से भारतीयता झलकती है। यह इस ओर इशारा करता है कि कश्मीर का युवा अब मुख्यधारा से जुड़ना चाह रहा है, जिसके लिए केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार हर संभव प्रयास कर रही है। हैरानी की बात यह है कि इस बार शेहला रशीद की आलोचना इस्लामी कट्टरपंथियों से अधिक गैर-मुस्लिमों से सुनने को मिल रही है। इसके भी दो अर्थ निकलते हैं; पहला तो यह कि या तो वे इस परिवर्तन पर यकीन नहीं करना चाहते हैं और दूसरा यह कि वे चाहते हैं कि जिन लोगों ने यह कर दिखाया, उन्हें इसका क्रेडिट ही न जाए।
सिर्फ शेहला रशीद ही नहीं बल्कि शेहला रशीद के समर्थन में खड़े होने वाले भूतपूर्व सैनिकों से भी लोग असहमत नजर आ रहे हैं। इनमें से एक नाम सेवानिवृत कर्नल हनी बख्शी का भी है। कश्मीर की स्थिति को एक सैनिक से अधिक बेहतरीन ढंग से और कौन समझ सकता है। उन्होंने अपने ‘एक्स अकाउंट’ पर लिखा कि हमें शेहला रशीद के इस कदम को स्वीकार करना चाहिए।
Friends, I am astonished what society has come to@Shehla_Rashid shud be welcomed, it’s not right to humiliate her
— Col Hunny Bakshi, VSM (@colhunnybakshi) November 15, 2023
History has shown us “ungalimal” too changed
If you don’t give them a chance & acceptance, we will never move fwd
Request hold ur horses
Celebrate her home coming
अनुच्छेद 370 अतीत की बात हो गई है। यह शेहला रशीद की तरह हर कश्मीरी अब स्वीकार कर रहा है। वह 370 या आजादी की बात नहीं कर रहा है बल्कि विकास कार्यों की बात कर रहा है।
इसे इस रूप में भी देखा जाना चाहिए कि कश्मीर में बदलाव की मुखर आलोचक एक युवा लड़की समय के साथ इस निष्कर्ष पर आती है कि कश्मीर के युवाओं का हित कश्मीर के हित में ही निहित है और कश्मीर का हित क्या है यह विश्वास देश के वर्तमान नेतृत्व पर छोड़ दिया जाना चाहिए। कहीं न कहीं वह भी इस बदलाव की साक्षी हैं।
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