22 अगस्त, ये वो तारीख है जो आजाद भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हुई है। हर साल ये तारीख बताएगी कि इस देश में मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों और उनके सोशल रिफॉर्मेशन के लिए सात दशक बाद इन्स्टेंट तीन तलाक खत्म कर दिया गया।
22 अगस्त, 2017 जब सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को गैरकानूनी माना और केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार को इसके ख़िलाफ़ कानून बनाने को कहा। कानून बना, लागू हुआ और उसका पालन भी हो रहा है। सवाल ये है कि क्या यह काम सरल था? शायद नहीं, इसे बनाने में तीन दशक लग गए।
23 अप्रैल, 1985 के दिन सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक से जुड़े शाहबानो बनाम अहमद खान मामले में शाहबानो के पक्ष में फैसला सुनाया था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में अहमद खान को 179 रुपए प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था, जबकि मुस्लिम पर्सनल लॉ कहता है कि तलाक के तीन महीने बाद अहमद खान, शाहबानो को गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य नहीं थे। फिर क्या था, राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के फैसले को बरकरार रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया।
ऐसा भी नहीं था कि यह पहला मामला था कि शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिला के पक्ष में फैसला सुनाया हो। इससे पहले 1979 में बाई ताहिरा बनाम अली हुसैन फिसल्ली मामला हो या फिर 1980 का फुजलुनबी बनाम खादर वली मामला, अदालत ने मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में ही फैसला सुनाया है।
अदालतें हमेशा से इन्सटेंट तीन तलाक को गैरकानूनी मानती आई थी। इसी का नतीजा था कि शाहबानो मामले में भी गुजाराभत्ता देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने CRPC को मजहबी कानून से ऊपर माना। हालाँकि, तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के लिए मजहबी कानून ही सर्वोपरि था, भारतीय संविधान नहीं, जो समान अधिकार की बात करता है, जो धर्मनिरपेक्ष होने की बात करता है।
शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया गया। हालाँकि, मुस्लिम महिलाओं का संघर्ष अभी भी जारी रहा। इसके बाद सायरा बानो, इशरत जहां, जाकिया, गुलशन, अतिया साबरी, आफ़रीन रहमान समेत न जाने कितनी मुस्लिम महिलाओं ने इस संघर्ष में खुद को झोंक दिया।
1986 से लेकर 2017, लगभग तीन दशक लग गए, दोबारा वही स्थिति पाने में, जिसे राजीव गांधी ने बदलकर रख दिया था।
आज दोनों का आकलन करते हैं तो एक ओर प्रचण्ड बहुमत की राजीव गांधी सरकार जिसने मुस्लिम कट्टरपंथियों के दबाव और मुस्लिम वोट बैंक के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया और दूसरी ओर नरेंद्र मोदी सरकार, जिसने तुष्टिकरण नहीं अपितु महिला सशक्तिकरण का रास्ता अपनाया और फतवों की चिंता किए बगैर मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण अधिनियम ले आई।
आज जब हम शाहबानो मामले को पीछे मुड़कर देखते हैं तो सुप्रीम कोर्ट की समान नागरिक संहिता को लेकर की गई टिप्पणी पर भी गौर करना चाहिए। आज भी कांग्रेस और उसके कुछ सहयोगी दल राजीव गांधी की तर्ज पर मुस्लिम तुष्टिकरण करने का प्रयास कर रहे हैं, उन्हें समझने की आवश्यकता है कि हर व्यक्ति के लिए, हर मजहब, धर्म के लिए समान कानून हों यह विकसित भारत के उद्देश्य के लिए बेहद आवश्यक है।
यह भी पढ़ें: जब राजीव गांधी ने अटल-आडवाणी पर मारा था ‘हम दो हमारे दो’ का तंज: भाजपा स्थापना दिवस