यह प्रश्न हम नहीं उठा रहे बल्कि इस प्रश्न के पीछे एक कारण है।
श्री दरबार साहिब, अमृतसर में हजूरी रागी सरबजीत सिंह (लाडी) का SGPC यानी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को लेकर एक बयान सामने आया है।
बयान क्या है, आप ख़ुद ही सुनिए:
जी हाँ, उनका कहना है,
“SGPC ने सख्त निर्देश दिए हैं कि हिन्दू देवी-देवताओं से जुड़े अवतारों से सम्बन्धित गुरबानी नहीं बोलनी है। SGPC ने धमकी दी है कि अगर कोई रागी गुरबानी गाकर हिन्दू अवतारों का जिक्र करता है तो उसका तबादला दुर्गम क्षेत्र में कर दिया जाएगा। हमसे गुरबानी के सभी भाग पढ़ने की स्वतंत्रता छीनी जा रही है। अब जैसे ब्रह्मा, विष्णु, महेश का उल्लेख गुरबानी में है तो फिर हम उसे क्यों नहीं गा सकते हैं ?“
उन्होंने यह भी कहा “वो हिम्मत करके ये बोल रहे हैं बाक़ी जो होगा, देखा जाएगा।”
यह सुनकर प्रश्न उठता है कि SGPC क्या ऐसा करते हुए असहिष्णु नहीं हो रहा है? और ग़ुरबानी गाने वालों को ऐसी हिदायत का अर्थ क्या हो सकता है, सिवाय इसके कि सनातन धर्म के विरुद्ध आम सिखों के मन में असहिष्णुता पैदा की जाए? सनातन धर्म के विरुद्ध मन में ऐसी खटास क्यों है कि पवित्र ग़ुरबानी के कुछ हिस्सों को गाने से रोकना पड़े?
आखिर, ग़ुरबानी में यदि हिंदू देवी देवताओं का वर्णन है तो वह तो सदियों से होगा और धार्मिक ग्रंथों में जो सदियों से है उसके वहाँ रहने का कोई ठोस आधार होगा। ग़ुरबानी गाने वालों को ख़ास हिस्से न गाने देने का उद्देश्य क्या हो सकता है?
ध्यान देने वाली बात यह है कि SGPC के निर्देश को लेकर यह शिकायत कोई ऐसा व्यक्ति नहीं कर रहा जिसे ग़ुरबानी की समझ नहीं है। कहने वाले गायक का कोई राजनीतिक उद्देश्य हो, ऐसा भी नहीं लगता।
आपको बता दें कि सरबजीत सिंह (लाडी) एक प्रसिद्ध रागी हैं और उन्हें वर्ष 2012 में जवाड़ी टकसाल द्वारा गुरमत संगीत पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।यहाँ प्रश्न यह उठता है कि SGPC अपने कर्तव्यों के निर्वाह के अलावा यह सब कुछ क्यों कर रहा है?
दरअसल शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी SGPC भारत में मौजूद वह संस्था है जो गुरुद्वारों के रख-रखाव के लिये उत्तरदायी है। इसका अधिकार क्षेत्र पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश तक है। अमृतसर स्थित प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर का रख रखाव और संचालन का उत्तरदायित्व भी SGPC पर हैं।
यह कमेटी गुरुद्वारों की सुरक्षा, उनके वित्तीय प्रबंध, सुविधा रख-रखाव और धार्मिक पहलुओं का प्रबंधन करती है।
पर क्या गुरुबानी न गाने देना या गाने न देने की हिदायत SGPC का अधिकार क्षेत्र हो सकता है? क्या SGPC यह काम अपने संविधान से मिले अधिकार के अनुसार कर रहा है?
प्रश्न यह भी है कि SGPC यदि ऐसा आदेश दे रही है तो क्या वह ग़ुरबानी को बदलने के बराबर नहीं हुआ? जो पवित्र ग़ुरबानी पूरे सिख समुदाय का धार्मिक आधार है, उसे बदलने का काम SGPC कर सकती है?
SGPC वैसे तो सैद्धांतिक तौर पर स्वतंत्र निकाय है लेकिन इसके प्रशासन पर हमेशा शिरोमणि अकाली दल का ही दबदबा रहा है। वर्ष 1920 में एसजीपीसी की राजनीतिक शाखा के तौर पर बनाई गई पार्टी शिरोमणि अकाली दल इसके कामकाज को नियंत्रित करती है। तो क्या यह सब अकालियों के इशारे पर हो रहा है ? वह ऐसा क्यों चाहते हैं
एसजीपीसी भाजपा और RSS पर सिख मामलों में दखल देने का आरोप लगाती रहती है। हालांकि सिख धर्म से जुड़े लोगों का मानना है कि एसजीपीसी का इस तरह कट्टरपंथी रास्ता अपनाना सिख धर्म के लिए अच्छा नहीं है।
हिन्दू राष्ट्र की कथित मांग करने वालों को असहिष्णु बताया जाता है लेकिन क्या किसी हिन्दू समिति या संगठन की और से ऐसा सुना गया कि किसी हिन्दू धर्म में अपने हितों के अनुसार बदलाव लाया जाए?
अब यदि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी गुरुबानी को बदलने का प्रयास कर रही है तो इनटॉलेरेंट कौन है?
ऐसे प्रयास करने वालों को जानना चाहिए कि सिख धर्म के गुरुओं ने कभी भी हिंदू-सिखों को अलग-अलग नहीं देखा। लेकिन आज ये कमेटियाँ बता रही हैं कि हिंदू और सिख अलग-अलग थे।
हिन्दू धर्म को सिख धर्म से अलग नहीं किया जा सकता है। ऐसा क्यों है कि गुरु ग्रंथ साहिब के अधिकांश लेखक ब्राह्मण हैं? गुरु ग्रंथ साहिब के 43 लेखकों में से 22 ब्राह्मण हैं। इनमें 17 भट्ट और 5 भगत शामिल हैं।( स्रोत : Who Wrote the Guru Granth Sahib? (learnreligions.com) )
क्या यह सत्य नहीं है कि प्रत्येक हिंदू परिवार ने एक बेटे को सिख बनाने के आगे किया ताकि मुगल आक्रांताओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी जा सके।
“सकल जगत में खालसा पंथ गाजे, जगे धर्म हिंदू सकल भंड भाजे”
यह कहकर गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ का उद्देश्य स्पष्ट कर दिया था
सिख समाज के बुद्धिजीवियों को SGPC से प्रश्न करने की आवश्यकता है। आशा है SGPC अपने इस कदम पर पुनर्विचार करेगा।