Indus Water treaty पर पाकिस्तान को बड़ा झटका लगा है क्योंकि World Bank द्वारा नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञ (Neutral expert) ने इस मुद्दे पर भारत का सपोर्ट किया है। जी हां, विश्व बैंक द्वारा नियुक्त expert ने किशनगंगा और रातले hydroelectric projects पर भारत और पाकिस्तान के बीच विवादों को हल करने के लिए भारत के दृष्टिकोण का समर्थन किया है।
विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत सिंधु जल संधि, 1960 के लिए अपाइंट किए गए तटस्थ विशेषज्ञ के निर्णय का भारत स्वागत करता है। विदेश मंत्रालय ने बताया कि अभी भी तटस्थ विशेषज्ञ आगे के कार्यवाही करेंगे। भारत-पाकिस्तान के बीच लगभग सात मतभेदों पर तटस्थ विशेषज्ञ जांच करेंगे और उनके अंतिम निर्णय के बाद स्थिति साफ हो पाएगी।
कमाल की बात ये है कि पाकिस्तान ने ही इस मामले में न्यूट्रल एक्सपर्ट की मांग की थी और उसी को सेटबैक का सामना करना पड़ रहा है।
दरअसल किशनगंगा Hydroelectric power plants, जो सिंधु की सहायक नदियों पर स्थित है, का निर्माण 2007 में शुरू हुआ और चिनाब पर बने रतले Hydroelectric power plants की आधारशिला 2013 में रखी गई। पाकिस्तान के विरोध के बावजूद, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने मई 2018 में किशनगंगा परियोजना का उद्घाटन किया।
इस परियोजना से 300 मेगावाट से अधिक बिजली पैदा की जा सकती है और किशनगंगा परियोजना द्वारा उज्ह नदी से मिली लगभग 0.65 मिलियन एकड़-फीट (MAF) पानी का उपयोग करके कम से कम 30,000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकती है। नितिन गडकरी ने 2019 में घोषणा की थी कि भारत घातक पुलवामा हमले के जवाब में पाकिस्तान को पानी की आपूर्ति बंद कर सकता है।
हालांकि भारत ने पाकिस्तान को पानी की आपूर्ति तो बंद नहीं की पर किसानों की सहायता के लिए Hydroelectric power plants योजनाएं जरूर शुरु कर दीं। तबसे पाकिस्तान इसका विरोध करता आ रहा है।
इसी विरोध के चलते पाकिस्तान ने 2015 में भारत के किशनगंगा और रैतल Hydroelectric power plants पर अपनी तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिए एक “तटस्थ विशेषज्ञ” की मांग की थी। उसी वर्ष नवंबर में दोनों परियोजनाओं के बारे में विश्व बैंक द्वारा एक तटस्थ विशेषज्ञ और मध्यस्थता न्यायालय (सीओए) के अध्यक्ष को नामित किया गया था।
इससे पहले, भारत ने अगस्त 2024 में औपचारिक रूप से पाकिस्तान को यह भी बताया था कि इंडस वैली ट्रीटी जैसे 63 साल पुराने समझौते को दोबारा रीव्यू करने की आवश्यकता है, मुख्य रूप से बॉर्डर इश्यूज पर पाकिस्तान के Non-supportive रवैए को लेकर।
भारत नेशनल इंट्रेस्ट में इंडस वैली ट्रीटी में बदलाव चाहता है। सीमा पार से चल रहे आतंकवाद, पर्यावरण संबंधी टेंशन्स और भारत के Emissions targets को पूरा करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन में तेजी लाने की आवश्यकता जैसे मुद्दों को सुलझाना भारत के नेशनल इंट्रेस्ट में है।
अब आपको इंडस Water ट्रीटी के बार में बताते हैं जो 19 सितंबर 1960 को कराची में अस्तित्व में आई और आज तक इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया। इस पर तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति मुहम्मद अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे।
सिंधु नदी 1947 में भारत के विभाजन के बाद से ही भारत, पाकिस्तान, चीन और अफ़गानिस्तान के बीच विवाद का स्रोत रही है। नदी का स्रोत तिब्बत है। 1948 में भारत द्वारा पाकिस्तान को पानी की आपूर्ति अस्थायी रूप से बंद कर दी गई थी, लेकिन युद्धविराम के बाद इसे फिर से खोल दिया गया।
पाकिस्तान ने 1951 में इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के समक्ष उठाया, जिसमें आरोप लगाया गया कि भारत ने कई पाकिस्तानी बस्तियों का पानी काट दिया है। यह समझौता 1954 में विश्व बैंक द्वारा संयुक्त राष्ट्र की सिफारिशों के आधार पर विकसित किया गया था।
विश्व बैंक सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर करने वालों में से एक था, जिस पर भारत और पाकिस्तान ने नौ साल की चर्चा के बाद 1960 में हस्ताक्षर किए थे। दोनों राष्ट्र अंततः एक समझौते पर पहुँचे, जिसके तहत छह नदियों का स्वामित्व साझा किया गया। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के समय पाकिस्तान निचला तटवर्ती राज्य था, क्योंकि दोनों देशों के बीच सीमा सिंधु बेसिन के पार निर्धारित की गई थी।
इस संधि ने भारत को तीन पूर्वी नदियों के पानी का एकमात्र उपयोग करने का अधिकार दिया, जिसका औसत लगभग 33 मिलियन एकड़ फीट (MAF) था। पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों, सिंधु, झेलम और चिनाब के पानी पर लगभग 135 MAF के औसत के साथ समान नियंत्रण दिया गया था, हालाँकि, एक शर्त भी रखी गई थी। संधि भारत को पश्चिमी नदियों पर रन-ऑफ-रिवर (RoR) परियोजनाओं के माध्यम से पनबिजली का उत्पादन करने का अधिकार देती है, बशर्ते कि कुछ डिज़ाइन और संचालन आवश्यकताओं को पूरा किया जाए।
संधि के अनुसार, पाकिस्तान को सिंधु नदी प्रणाली से 80% पानी मिलता है, जबकि भारत को 20% मिलता है। इसने बताया कि भारत और पाकिस्तान, बाढ़ सुरक्षा या बाढ़ नियंत्रण योजना को लागू करते समय, यथासंभव एक-दूसरे को होने वाले किसी भी भौतिक नुकसान को रोकेंगे। दोनों देशों को बाढ़ के पानी या अन्य अतिरिक्त पानी को छोड़ने के लिए नदियों के प्राकृतिक मार्गों के उपयोग को प्रतिबंधित करने का कोई अधिकार नहीं है, और कोई भी देश ऐसी गतिविधियों से होने वाले किसी भी नुकसान के लिए दूसरे को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकता है।
बीते वर्षों से पाकिस्तान के आतंकवाद पर रुख और भारत की पर्यावरण संबंधी चिंताओं ने देश को Hydroelectric power plants परियोजनाओं की ओर आगे बढ़ाया है और अब वर्ल्ड बैंक के न्युट्रल एक्सपर्ट के फैसले से लग रहा है कि भारत को आगे बढ़ने में कोई परेशानी नहीं आएगी।
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