आप सभी कट्टर ‘ईमानदार’ केजरीवाल जी को तो जानते ही होंगे। वे जितने अनूठे हैं, उनके कारनामे भी उतने ही मौलिक। अभी देखिए, 1 सितंबर को उन्होंने दिल्ली विधानसभा में फिर से ‘विश्वास-मत’ हासिल किया। हालाँकि, किसी ने नहीं कहा था कि उनकी सरकार अल्पमत में है।
वैसे, केजरीवाल जी ने जो बात नहीं बताई, हम आपको बताते हैं। विधानसभा में कही किसी बात पर कार्रवाई नहीं होती, इसलिए दिल्ली के ‘अंतरराष्ट्रीय मुख्यमंत्री’ ने यह विशेष सत्र बुलाया था, ताकि वो अपनी भड़ास निकाल सकें और ‘मीडिया मैनेजर’ तो वह एक नंबर के हैं ही। उनको पता ही था कि सारे चैनल्स उनको लाइव ही दिखाएंगे, इसलिए उन्होंने यह दांव चला।
इसका कारण यह था कि केजरीवाल जी बाहर जो भी कुछ बाहर बोलते रहते हैं, उसके लिए उनको गडकरी और स्वर्गीय अरुण जेटली जैसे लोग कोर्ट में घसीट लेते थे। फिर, पूरे जमाने की शर्मिंदगी उठाकर वह लिखित या मौखिक माफी मांगते थे, तो इस बेइज्जती से बचने के लिए उन्होंने विधानसभा के सत्र का सहारा लिया, ताकि माफी-वाफी मांगने के झंझट से दूर रह सकें।

एक और मजे की बात है कि केजरीवाल जी ने अपने पास कोई विभाग नहीं रखा है। तीसरी बार जब उन्होंने शपथ ली, तो दिल्ली जल बोर्ड की जिम्मेदारी से भी खुद को मुक्त कर लिया। याद रहे कि उससे पहले दिल्ली जल बोर्ड पर बहुत सारी गड़बड़ी के आरोप लगे थे। AAP की सरकार जब से बनी है, केजरीवाल जी कभी केंद्र सरकार पर तो कभी एलजी पर आरोप लगाते रहते हैं कि देखिए साहब, वह तो बहुत काम करना चाहते हैं, लेकिन ये लोग उनको काम करने ही नहीं देते।
अब लेफ्टिनेंट गवर्नर साहब का भी कसूर तो कम नहीं है। उन्होंने दिल्ली के ही नहीं, विश्व के ‘सर्वश्रेष्ठ शिक्षामंत्री’ को दिल्ली के शराब घोटाले में इंगित कर दिया। उन्होंने कहा कि दिल्ली की राजस्व नीति में ‘भयंकर गड़बड़ियाँ’ हुी हैं। यहां तक कि उन्होंने दिल्ली के सरकारी स्कूलों में हुए घोटालों का भी उल्लेख कर दिया। अब केजरीवाल जी तो ‘कट्टर ईमानदार’ पार्टी के स्व-अभिप्रमाणित बेहद ईमानदार सेनापति ठहरे। उनको भला यह बर्दाश्त कैसे होता?
इन सबसे बढ़कर लेफ्टिनेंट गवर्नर ने गुनाह-ए-अजीम कर दिया कि उन्होंने यह भी कह दिया कि केजरीवाल साहब कोई भी फाइल अपने हस्ताक्षर के बिना ही भेज दे रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री को इतनी फुरसत है क्या? वह फाइलें भेज दे रहे हैं, यही तो बड़ा अहसान है।
एलजी सर, अब मोंटेनेग्रो के वाणिज्य दूतावास में पानी नहीं है, तो इसमें केजरीवाल भला क्या करेंगे? पहली बात तो यह कि मोंटेनेग्रो किधर का देश है, ये भला कितने आदमी जानते होंगे और केजरीवाल जी अमेरिका-इंग्लैंड से नीचे की बात भी सोचें, यह उनके स्तर की बात नहीं है। उनके दूतावास में पानी नहीं है, तो दिल्ली के भी कई इलाके हैं, जहां पानी नहीं है। जब तक केजरीवाल जी के यहां पानी चौबीसों घंटे है, उनको भला क्या परवाह करने की जरूरत है? जहां तक कैबिनेट मीटिंग की फाइलें देर से भेजने की बात है, केजरीवाल जी अपने से ऊपर किसको समझते हैं, जो वह आपको भेज देंगे फाइलें?
वैसे भी, वह सीधा प्रधानमंत्री से मुकाबला करते हैं।

पंजाब में भी उन्होंने भगवंत मान को मुख्यमंत्री बनाकर फिर पीछे अपने प्यारे राघव चड्ढा को भेज दिया। ठीक वैसे ही, जैसे कई वर्षों तक भारत के प्रधानमंत्री कहने को तो मनमोहन सिंह थे, लेकिन सारी ताकत सोनिया जी के पास थी। केजरीवाल जी ने दिल्ली को शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में स्वयंभू तरीके से नंबर वन तो घोषित कर ही दिया है। आप उनको कोई भी डाटा दिखाइए, कितने भी तर्क दीजिए, कोई भी प्रमाण ला दीजिए, वह तो खुद को कट्टर ईमानदार बताएंगे ही। वैसे भी केजरीवाल जी, समझ में तो आते नहीं हैं। वह खुद जो बताएं, वही परम सत्य है। उनका कोई अगला घोटाला सॉरी खबर आते ही हम आपको फिर से इत्तला करेंगे।