शुक्रवार से बिहार में नहाय-खाय के साथ ही महापर्व छठ पूजा की शुरूआत हो गई है। छठ पूजा को लेकर बिहार के लोगों के मन में क्या भाव है इसकी एक झलक सोशल मीडिया पर देखने को मिल रही है लेकिन बिहार की नीतीश सरकार ने छठ पर्व को लेकर ना तो बिहारियों की भाव को समझा ना ही महापर्व छठ की आस्था को, बस सुना दिया अपना फरमान। सुशासन की सरकार ने अपने नये कारनामे के तहत छठ पूजा पर बिहार के सभी सरकारी टीचर्स की छुट्टियां रद्द कर दी हैं और उन्हें स्कूल आने का आदेश जारी किया है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक शिक्षा विभाग ने 8 नवंबर को सर्कुलर जारी कर 13 से 21 नवंबर तक सभी स्कूलों में छुट्टी का आदेश जारी किया था।आदेश में कहा गया था कि भैया दूज और छठ पूजा को देखते हुए ये छुट्टियां रद्द की जा रही हैं। इन छुट्टियों के दौरान सभी स्कूलों के प्रिंसिपल और हेडमास्टरों को रोजाना स्कूल में उपस्थित रहने का आदेश दिया गया था। हालांकि इस बीच राज्य सरकार ने छुट्टी को लेकर एक और नया फरमान जारी किया है। यह फरमान 14 नवंबर को जारी किया गया है, जिस पर बिहार के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के हस्ताक्षर हैं। इस फरमान में छठ पूजा की सरकारी छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं। आदेश में कहा गया है कि सभी स्कूलों के टीचर्स और नॉन-टीचिंग स्टाफ की छठ की छुट्टियां कैंसिल की जा रही हैं। इन सभी को इस दौरान रोजाना स्कूलों में उपस्थिति दर्ज करानी होगी। हालांकि स्कूलों में बच्चों की छुट्टियां रहेंगी, जिससे शिक्षण कार्य नहीं रहेगा। नीतीश सरकार के इस तुगलकी आदेश से बिहार के शिक्षकों में काफी गुस्सा है। बिहार, झारखंड, पूर्वी यूपी में छठ पूजा आस्था का लोक पर्व है, जिसका लोग सालभर इंतजार करते हैं।
इफ्तार पार्टी के सितारे CM नीतीश कुमार की सरकार ने हाल के दिनों में कई ऐसे निर्णय लिए हैं, जिसमें किसी एक समुदाय को टारगेट करने का प्रयास किया गया है। ये कहना गलत नहीं होगा कि एक समुदाय को खुश करने के चक्कर में नीतीश कुमार मुस्लिम तुष्टीकरण के पिछलग्गू नेता बन गए हैं। मुस्लिम तुष्टीकरण और सुशासन के ढोंग के लिए उन्होंने बहुत काम किए हैं। महीन राजनीति करने वाले नीतीश कुमार को सनातन धर्म से कोई न कोई दिक्कत तो जरुर है। हां, लेकिन ‘इफ्तार-इफ्तार’ खेलने से उन्हें कोई परहेज नहीं है।
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