भारत में न्याय व्यवस्था का कितना बुरा हाल है, इसका एक उदाहरण सुप्रीम कोर्ट की एक नोटिस से पता चलता है। सुप्रीम कोर्ट ने एक नोटिस जारी करके दशकों पुराने मुकदमों की सुनवाई करने का फैसला लिया है। इन मुकदमों की संख्या 300 है जिनकी सुनवाई अगले माह 11 अक्टूबर से होने वाली है।
सुप्रीम कोर्ट के अतिरिक्त रजिस्ट्रार के दफ्तर से 26 सितम्बर को जारी हुआ यह नोटिस लगातार मीडिया में सुर्खियाँ बटोर रहा है। इसके अंदर उन 300 मुकदमों के नाम दिए गए हैं जिनकी सुनवाई 11 अक्टूबर से होने वाली है।
सुप्रीम कोर्ट में पदभार ग्रहण करने के बाद नए मुख्य न्यायधीश यूयू ललित का ध्यान इन मुकदमों पर रहा है, जिसमें उन्होंने पुराने मुकदमों को नए मुकदमों के साथ-साथ सुनने की बात कही है। इसी कारण से अब पुराने मुकदमों की भी तारीख दी जा रही है।
1979 का मुकदमा, अब सुना जा रहा
नोटिस के अंदर दी गई सूची में सभी मुकदमों की संख्या एवं दायर करने वाले पक्षों के नाम लिखे हुए हैं। सूची के अनुसार, सबसे पुराना मुकदमा वर्ष 1979 में दायर किया हुआ है। यह मुकदमा दक्षिण की एक कम्पनी नव भारत फेरो अलॉयस लिमिटेड ने अपील के रूप में दायर किया गया था।
इस मुकदमे में दूसरा पक्ष भारत सरकार है। मुकदमे के बारे में कोई अन्य सूचना उपलब्ध नहीं है। पर इसमें संलिप्त पक्षों के नाम देख कर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह चीनी मिलों से जुड़ा हुआ कुछ मामला है। इसके बाद दूसरा सबसे पुराना मुकदमा 1985 में प्रसिद्ध वकील और पर्यावरणविद एम सी शाह के द्वारा दायर किया हुआ है।
इसके अतिरिक्त एक और मुकदमा जो कि वर्ष 1993 में दायर किया गया था, यह मुकदमा उदयपुर के राजपरिवार से जुड़ा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर इस मुकदमे के बारे में यह पता चलता है कि यह मुकदमा कोर्ट की अवमानना के विषय में है।
एक और मुकदमा जो कि वर्ष 1996 में दायर किया गया है, अयोध्या राम जन्मभूमि से जुड़ा हुआ जान पड़ता है क्योंकि इसके अंदर पक्ष और विपक्ष में राम जन्मभूमि मुकदमे के मुद्दई मोहम्मद हाशिम और सुब्रमन्यम स्वामी हैं। हालांकि, इस मामले का फैसला अब हो चुका है और हाशिम की मृत्यु भी हो चुकी है।
इन फंसे हुए मुकदमों में मोदी सरकार के द्वारा 2016 में नोटबंदी किए जाने के फैसले पर भी सुनवाई होनी है।
30 से ज्यादा मुख्य न्यायाधीश बदल गए, केस जहाँ के तहाँ
वर्ष 1979 में भारत के मुख्य न्यायधीश वाई वी चंद्रचूड़ थे, उन के बाद के सालों में 30 से ज्यादा मुख्य न्यायाधीश बन चुके हैं। स्थिति यह है कि सबसे पुराने मुकदमे के दायर होने के दौरान वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के पिता ही मुख्य न्यायाधीश थे। सुप्रीम कोर्ट में दूसरी पीढ़ी के न्यायाधीश आ गए। 40 साल बीत गए हैं, लेकिन केसों का निपटारा नहीं हो पाया है।
इस सूची में 1 मुकदमा सत्तर के दशक का, 1 मुकदमा अस्सी के दशक का और 20 से ज्यादा मुकदमे नब्बे के दशक के हैं। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि इतने सालों पहले दायर किए गए मुकदमों की प्रासंगिकता क्या बची होगी? यदि बची भी होगी तो मुकदमे करने वाला जीवित भी है या नहीं और विषय का आज के समय के साथ कोई सम्बन्ध है भी कि नहीं।
भारत में मुकदमों का पहाड़, सुप्रीम कोर्ट भी अछूता नहीं
संसद में दिए गए एक जवाब के अनुसार, भारत के न्यायलयों में कुल 4.8 करोड़ से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं, इनमें से सबसे ज्यादा मुकदमे निचले स्तर के न्यायालयों जैसे कि जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में हैं। वहीं देश के विभिन्न हाईकोर्ट में 60 लाख के करीब मुकदमे लंबित हैं।
सुप्रीम कोर्ट की स्थिति भी कुछ ख़ास अच्छी नहीं है। 34 स्वीकृत पदों वाले देश के सबसे ऊंचे न्यायालय में 70 हजार से ज्यादा मुकदमे जून 2022 तक लंबित थे, इसमें नए मुख्य न्यायधीश यूयू ललित के आने के बाद कुछ बदलाव हुआ है।