आज यानी 4 जुलाई, 2023 से श्रावण मास शुरू हो गया है। शास्त्रों में श्रावण मास को ‘पवित्र मास’ माना गया है। ऐसी मान्यता है कि श्रावण भगवान शिव का सबसे प्रिय मास है और उनके भक्त उस पूरे मास उनकी भक्ति में लीन रहते हैं, उनकी आराधना करते हैं।
श्रावण जिसे औघड़दानी का महीना भी कहा जाता है। शिव पुराण के अनुसार अगर भगवान शिव की भक्ति के अलावा श्रावण माह में सोमवार का व्रत करें तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
इस श्रावण मास में खास बात यह है कि इस बार का श्रावण दो महीने का होने वाला है। यानी 04 जुलाई से शुरू होकर 31 अगस्त, 2023 को पूरा होगा। श्रावण का यह महीना इस बार 58 दिनों का होगा।
दरअसल अधिक मास के कारण ऐसा हो रहा है। अधिक मास दो महीने का होगा, जिसकी शुरुआत 18 जुलाई से होगी और समापन 16 अगस्त को होगा। अनोखी बात यह है कि यह संयोग 19 वर्षों बाद बना है। अधिक मास को मलमास और पुरुषोत्तम के नाम से भी जाना जाता है।
वैदिक पंचांग के अनुसार हर माह सूर्य का राशि परिवर्तन होता है, जिसे सूर्य संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन तीन साल के अंतराल पर एक माह संक्रांति नहीं है और इसी कारण इसे अधिक मास कहा जाता है।
भोले बाबा और बैजनाथ धाम
श्रावण का महत्व जितना भगवान भोले के लिए है, उतना ही भोले बाबा के श्रद्धालुओं के लिए भी है। श्रावण आते ही भोले बाबा की ही छवि हृदय में उतरती है और उनके 12 ज्योतिर्लिंग की भी। इन्हीं 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है बाबा बैजनाथ धाम जो झारखंड के देवघर जिले में स्थित है।
सावन में शिवभक्त कावड़ लेकर दूर-दराज के इलाकों और शहरों से भगवान शिव को जल चढ़ाने को बाबाधाम आते हैं। उनकी यात्रा काफी कष्टप्रद होती है परन्तु यह भक्ति का ही प्रभाव है कि उनकी सारी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं। बोल बम के नारे के साथ जब कांवडिए बाबा के दर्शन करने आते हैं तब वह भक्तिमय माहौल देखने योग्य होता है।
बोल बम का नारा है
बाबा एक सहारा है
इस बार बाबा बैजनाथ धाम में भक्तों की संख्या और बढ़ने के कारण श्रद्धालु अर्घ्य के माध्यम से ही बाबा बैजनाथ को जल चढ़ा पाएंगे। आज से श्रावणी मेला भी हो रहा है, जिसमें श्रद्धालु अलग-अलग क्षेत्रों से कांवड़ में जल भर कर 108 किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हुए बाबाधाम आते हैं और बाबा को जल अर्पण करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं।
बैजनाथ धाम का इतिहास: भगवान शिव को लंका ले जाने को इच्छुक रावण
बाबा बैजनाथ धाम का महत्व श्रावण में अधिक हो जाता है। कारण है शिव भक्त। आइए जानते हैं ऐसे ही एक शिव भक्त की कहानी जो महादेव के सबसे प्रिय और महान भक्तों में जाना जाता है। रावण को सदैव महादेव के सबसे बड़े भक्त के रूप में जाना जाता है।
एक बार रावण महादेव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या कर रहा था। तपस्या के कर्म में वह अपने एक-एक सिर शिवलिंग पर चढ़ाने लगा। जब अंतिम सिर को दान करने की बारी आई, तो भगवान शिव प्रकट हो गए और उससे अपनी इच्छा व्यक्त करने को कहा। रावण ने अपनी इच्छा जताई और शिव को लंका अपने साथ चलने को कहा।
महादेव ने उसकी इच्छा मान ली और एक शर्त उसके सामने रखी कि अगर उसने शिवलिंग को बीच रास्ते में कहीं भी रखा तो भगवान महेश वहीं विराजमान हो जाएंगे। रावण ने शर्त मान ली और शिवलिंग को कंधे पर उठा कर चलने लगा, जब वो देवघर पहुँचा तब उसे बहुत जोर से लघु शंका आ गई परन्तु वो शिवलिंग को नीचे नहीं रख सकता था। उसे पास ही एक चरवाहा दिखा, उसने उस चरवाहे को शिवलिंग पकड़ाते हुए आदेश दिया कि वह शिवलिंग को नीचे ना रखे और वो जल्द वापस आ जाएगा।
परन्तु उस चरवाहे ने उस शिवलिंग को नीचे रख दिया। जब रावण वहाँ आया तो उस चरवाहे को डाँटने लगा। फिर उसने शिवलिंग को उठाने की कोशिश की पर वह शिवलिंग को हिला तक नहीं सका। रावण भोले बाबा की लीला समझ गया था। वहाँ से वह स्थान बाबा धाम के नाम से जाना जाने लगा।
लोग उस स्थान को और बाबा बैजनाथ को पूजने लगे, उस स्थान को रावणेश्वर धाम भी कहा जाता है। भगवान शिव ने ये वरदान दिया था कि वहाँ भगवान शंकर की पूजा करने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामना पूर्ण होगी।
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शिव और शक्ति एक साथ विराजमान हैं
बाबा बैजनाथ मंदिर विश्व का एकमात्र शिवालय है जहाँ पर शिव और शक्ति एक साथ विराजमान हैं। यही कारण है कि इसे शक्ति पीठ और हृदय पीठ भी कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस नगरी में आने से शिव और शक्ति दोनों का आशीर्वाद मिलता है। पुरोहित बताते हैं कि यहाँ पहले शक्ति स्थापित हुई उसके बाद शिवलिंग की स्थापना हुई है। भगवान भोले का शिवलिंग सती के ऊपर स्थित है इसलिए इसे शिव और शक्ति के मिलन स्थल के रूप में भी जाना जाता है।
बाबा बैजनाथ की महिमा
बाबा बैजनाथ धाम एक ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो शक्तिपीठ भी है। माना जाता है कि माता सती का हृदय इसी जगह गिरा था इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को हृदय पीठ भी कहा जाता है। बाबा धाम में पंचशूल लगा है जो सुरक्षा कवच है। कहते हैं ये हर आपदा से मंदिर की सुरक्षा करता है और मनुष्य के शरीर के पांच विकार काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद को अंत करने का प्रतीक भी है।
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि लोग अपनी इच्छाएं तो लेकर आते है, परन्तु यहाँ आकर, त्रिशूल स्पर्श कर सारी मनोकामनाएं भूल जाते हैं।
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