देश की पहली महिला शिक्षिका के रूप में पहचानी जाने वाली सावित्री बाई फुले की आज यानि 10 मार्च को पुण्यतिथि है। सावित्री बाई का जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था। औपनिविशिक काल में जन्मी सावित्री बाई ने विवाहोपरांत अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ महिला शिक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में बड़ा काम किया। महिला शिक्षा के साथ ही उन्होंने कृषकों एवं मजदूरों के लिए रात्रि विद्यालय की शुरुआत की जिससे वो बिना अपना रोजगार छोड़े शिक्षा ग्रहण कर सकें।
सावित्री बाई द्वारा वर्षों पहले बोया गया शिक्षा का बीज आज समाज में महिला सशक्तिकरण के रूप में सामने है। आज सरकार द्वारा महिला शिक्षा और उनके उत्थान की दिशा में चलाई जा रही योजनाओं का सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहा है। शिक्षा मंत्रालय के अनुसार वर्ष, 2022 में 2021-22 में 12.29 करोड़ से अधिक लड़कियों ने प्राथमिक से उच्चतर माध्यमिक में दाखिला लिया है। साथ ही 2020-21 में लड़कियों के नामांकन की तुलना में वर्ष 2022 में 8.19 लाख की वृद्धि देखी गई है।
बीते वर्षों में चलाई गई सरकारी योजनाओं ने महिलाओं की हर क्षेत्र में भूमिका सुनिश्चित की है। आज विज्ञान, स्वास्थ्य, कला और औद्योगिक क्षेत्र में महिलाएं देश का नेतृत्व कर रही हैं।
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सावित्री बाई फुले ने दलितों के उत्थान एवं पिछड़ी जातियों में ज्ञान का प्रसार करने की जो मुहिम छेड़ी थी, उसको न केवल समर्थन बल्कि प्रसार सही मायनों में अब मिल रहा है। आज बेशक वे हमारे बीच नहीं है पर उनकी विरासत और शिक्षाएं आज भी सरकार के कार्यों में परिलक्षित हो रही हैं। शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार प्राथमिक से उच्चतर माध्यमिक तक अनुसूचित जाति (एससी) के छात्रों की कुल संख्या वर्ष 2022 में 4.83 करोड़ हो गई है, जो 2020-21 में 4.78 करोड़ थी।
साथ ही अनुसूचित जनजाति (एसटी) के छात्र 2.49 करोड़ से बढ़कर 2.51 करोड़ हो गए हैं और अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) के छात्र 11.35 करोड़ से बढ़कर 11.49 करोड़ 2020-21 और 2021-22 के दौरान हो गए हैं।
औपनिविशिक काल में महिला उत्थान के प्रति सतर्क और योगदान देने वाली सावित्री बाई फुले पर अंग्रेजों का प्रभाव रहा। यह उनके कविता संग्रह में दिखाई भी देता है। इसी का उपयोग कर उन्हें दलित पुनरुत्थानवाद एवं ब्राह्मणवाद के विरुद्ध नायक के रूप में दर्शाया जाता है। विडंबना यह है कि सावित्रीबाई फुले के नाम से नरैटिव चला रहे सत्यसाधक उनकी कविताओं को और पढ़ें तो उनमें राजे शिवाजी, महारानी ताराबाई का जिक्र मिलेगा।
सावित्री बाई छत्रपति शिवाजी को अपनी कविताओं के जरिए नमन करती हैं जो सभी को अपने साथ लेकर चलते थे। महारानी तराबाई से वे शिक्षा लेती हैं। क्या इससे यह पता नहीं चलता कि वो दमन के खिलाफ थी, हिंदुओं के नहीं।
शिक्षा के अलावा भी सावित्री बाई सामाजिक सरोकारों से जुड़ी रहीं। उनके जरिए नारी मुक्ति आंदोलन चलाया गया। उन्होंने बालिकाओं को शिक्षा देने के लिए 18 स्कूल भी खोले। सावित्री बाई ने अपना संपूर्ण जीवन समाज को कुरीतियों के दलदल से निकालने में लगा दिया।
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वर्ष 1897 के दौरान पुणे में फैले प्लेग के दौरान अंग्रेजों के अत्याचारों को कौन नहीं जानता? जिनके द्वारा किसी परिवार में एक सदस्य के भी संक्रमित होने पर पूरे परिवार को मार दिया जाता था। ऐसे कठिन समय में सावित्रीबाई फुले ने अपने एक विधवा बाह्मण महिला से गोद लिए पुत्र के साथ मिलकर काम किया और लोगों की सहायता की।
प्लेग से लोगों को बचाने में लगी सावित्रीबाई फुले अधिक दिनों तक इस महामारी से बच नहीं पाईं और प्लेग के कारण 10 मार्च, 1897 को दुनिया को अलविदा कह दिया। सावित्री बाई फुले के जीवन में संघर्ष, क्रांति एवं शिक्षा सभी शामिल रहे। उनकी शिक्षा से प्रेरणा ही आज देश की हजारों लाखों छात्राओं को दिशा दिखा रही है और यही एक महान आत्मा के प्रति हमारी श्रद्धांजलि है कि हम उनके सपनों को पूरा करने के लिए काम करें।