बीआर आंबेडकर यानी बाबा भीमराव रामजी आंबेडकर। एक भारतीय न्यायविद, अर्थशास्त्री और समाजसुधारक। साथ ही, एक राजनैतिक व्यक्ति जो भारत की जनता पर अच्छा ख़ासा प्रभाव रखते थे।
यह तो सभी जानते हैं कि उन्होंने भारत के संविधान के प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और वह जवाहरलाल नेहरू की पहली कैबिनेट में कानून और न्याय मंत्री थे। ज्ञात हो कि उन्होंने हिन्दू धर्म त्यागकर बौद्ध धर्म अपनाया एवं दलित बौद्ध आंदोलन के प्रेरणास्रोत बनकर उभरे।
आंबेडकर ने धर्मपरिवर्तन क्यों किया और इसकी पृष्ठभूमि क्या थी इस पर चर्चा न करते हुए हम बाबा भीम के जीवन से जुड़े एक अन्य विषय पर आपको जानकारी देंगे
बाबा के जीवित रहते उनका राजनैतिक जीवन काफी चर्चित रहा और उनकी मृत्यु के पश्चात भी उनके जीवन पर काफी पुस्तकें प्रकाशित की गई। हालाँकि उनके निजी जीवन के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं।
पूना पैक्टः आज ही के दिन अंबेडकर ने गाँधी के सामने रखी थी यह शर्त
कौन थीं सविता आंबेडकर
बाबा साहब का निजी जीवन बेहद ही सामान्य एवं सादगीपूर्ण बीता। हालाँकि उनके वैवाहिक जीवन पर अक्सर चर्चा नहीं की जाती और यही कारण है कि शायद ही कोई जानता हो कि आंबेडकर ने दो विवाह किए थे। पहली पत्नी रमाबाई की मृत्यु के बाद आंबेडकर अकेले हो गए और बुढ़ापे एवं बीमारी के कारण उनकी स्थिति ख़राब रहने लगी।
1940 के दशक का अंत आते आते जहाँ भारत के संविधान का मसौदा पूरा हो चुका था, वहीं बाबा अनिंद्रा, पैर के न्यूरोपैथिक दर्द से जूझ रहे थे साथ ही वह इन्सुलिन और होम्योपैथिक दवा का भी इस्तेमाल कर रहे थे। अपने इलाज के लिए वह अक्सर बॉम्बे जाया करते थे जहाँ उनकी मुलाकात शारदा कबीर से हुई जो पेशे से डॉक्टर एवं सामाजिक कार्यकर्ता थी।
हिन्दू से मुसलमान बना व्यक्ति जातिगत आरक्षण का हकदार नहीं: मद्रास हाईकोर्ट
पहली मुलाकात में ही शारदा कबीर बाबा साहब के अद्भुत व्यक्तित्व से प्रभावित हो चुकी थीं। बातचीत का यह सिलसिला पत्र व्यवहार तक पहुंचा। आने वाले वर्षों में भी पत्रों में आंबेडकर के स्वास्थ्य एवं साहित्य सहित धर्म जैसे मुद्दों पर बात होती रही।
15 अप्रैल, 1948 को शारदा कबीर ने भीमराव आम्बेडकर से शादी की। वह 39 वर्ष की थी और वह 57 वर्ष के। शादी के बाद उन्होंने अपना नाम बदलकर सविता अंबेडकर रख लिया। बाबा आंबेडकर के अनुयायियों द्वारा उन्हें लोकप्रिय रूप से ‘माई’ कहा जाता जिसका अर्थ माँ होता है।
यह तब की बात है जब अपने जीवन के अंतिम वर्षों में बाबा आंबेडकर बहुत बीमार रहने लगे, उनके लिए हर किसी से मिल पाना संभव नहीं था। माई उनकी देखभाल करती, साथ ही अपनी डॉक्टर की भूमिका भी बखूबी निभाती।
मौत के बाद की राजनीति एवं आरोप
आपको जानकर हैरानी होगी कि दिसंबर 1956 में बीआर आम्बेडकर की मृत्यु के बाद, अंबेडकरवादियों के एक वर्ग ने आरोप लगाया कि बाबा साहब की मौत जहर देने से हुई है। उनका मानना था कि सविता आंबेडकर ने ही बाबा को धीरे धीरे जहर दिया जिससे बाबा की मृत्यु हो गई।
बाबा साहब के जीवन पर काफी रिसर्च कर चुके विजय सुरवड़े के अनुसार,
“एक वर्ग का मानना है कि बाबा साहब की मृत्यु एक षड़यंत्र था जिसके तहत दो संभावनाएं थीं कि या तो सविता ने उनका गला तकिए से दबाया या फिर सविता ने बाबा को दूध के ग्लास में जहर देकर मार डाला।”
यह विवाद इतना बढ़ा कि प्रधानमंत्री नेहरू को इस विषय पर हस्तक्षेप करना पड़ा और साजिशों के आरोप की जांच के लिए एक जांच समिति नियुक्त की गई। समिति ने हत्या के षड्यंत्र के आरोप को पूरी तरह नकार दिया था।
बीआर आंबेडकर की मृत्यु एवं उसके बाद लगे इन आरोप के पश्चात सविता आंबेडकर को दलित आंदोलन से किनारे कर दिया गया। बताया जाता है कि सविता आंबेडकर के विवाह पूर्व ब्राह्मण होने के कारण भी उन्हें किनारे किया गया।
बीआर आम्बेडकर ने अपनी पुस्तक ‘द बुद्ध एंड हिज़ धम्मा’ की प्रस्तावना में अपनी पत्नी से प्राप्त सहयोग का उल्लेख किया है। उन्होंने कहा कि सविता अंबेडकर ने उनकी उम्र 8-10 साल बढ़ा दी है। हालाँकि आम्बेडकर के निधन के बाद, इस प्रस्तावना को बाबा साहेब के करीबी मित्रों और समर्थकों द्वारा पुस्तक से हटा दिया गया था।
सविता आंबेडकर के जीवन के अंतिम वर्ष
1972 तक सविता अंबेडकर दिल्ली में रह रही थीं। जीवन के अंतिम वर्षों में उन्हें कांग्रेस पार्टी द्वारा राज्यसभा में सांसद बनाने का प्रयास किया गया। नेहरू, इंदिरा और राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने उन्हें यह प्रस्ताव दिया, लेकिन उन्होंने तीनों बार यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। वह अपने पति के सिद्धांतों के खिलाफ नहीं जाना चाहती थीं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, “दलित पैंथर्स की स्थापना के बाद, रामदास अठावले और गंगाधर गाडे जैसे युवा रिपब्लिकन नेताओं ने उन्हें आंबेडकरवादी आंदोलन की मुख्यधारा में लाया,” हालांकि उन्हें लोगों द्वारा स्वीकार नहीं किया गया था।”
उन्होंने अपने पति की विरासत को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 29 मई, 2003 को 93 वर्ष की आयु में उनका निधन जेजे मुंबई में अस्पताल।
उनकी मृत्यु पर तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शोक व्यक्त किया था और उन्होंने उन्हें बीआर अंबेडकर के लिए ‘प्रेरणा का प्राथमिक स्रोत’ करार दिया था।
बीआर आम्बेडकर की पुण्यतिथि पर, भारतीयों और विशेष रूप से अम्बेडकरवादियों को सविता आम्बेडकर पर लगे झूठे दागों को मिटाने का संकल्प लेना चाहिए। जिनके साथ इतिहास के इतिहास में बहुत अन्याय हुआ है। वह न केवल बीआर आम्बेडकर के काम में भागीदार थीं, बल्कि एक सामाजिक कार्यकर्ता भी थीं, जो भारतीय समाज में समानता के लिए लड़ रही थीं।