आम बोलचाल में हंसी-मज़ाक़ के तौर पर प्रयोग किए जाने वाले ‘पप्पू’ शब्द ने भारतीय राजनीति में कब और कैसे जगह बना ली, इसका ठीक-ठीक अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन भी है। हालाँकि, यह विशेष शब्द समय-समय पर कॉन्ग्रेस नेताओं और उनके कार्यकर्ताओं को घाव अवश्य देता रहता है।
इस बार ‘पप्पू’ शब्द के इस्तेमाल से मीडिया और राजनेता फिर चिंतित हैं। इसकी वजह समाचार पोर्टल ‘द लल्लनटॉप’ के सम्पादक सौरभ द्विवेदी का एक ट्वीट है। दिलचस्प बात यह है कि ये ट्वीट तक़रीबन दस साल पुराना है, लेकिन अचानक ही ऐसे समय पर बाहर आ गया जब कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी ‘भारत को जोड़ने’ की बात करने निकले हैं।
क्या है ‘पप्पू’ का मामला
कॉन्ग्रेस नेता और उनके सोशल मीडिया के सिपहसालार समाचार पोर्टल ‘द लल्लनटॉप’ के सम्पादक सौरभ द्विवेदी के कुछ ऐसे ट्वीट से आहत हैं, जो उन्होंने साल 2014-2015 में की थे। सौरभ द्विवेदी के कुछ ट्वीट को कॉन्ग्रेस नेता एवं उनके आइटी सेल से जुड़े लोग आपत्तिजनक बता रहे हैं।
दरअसल, इन ट्वीट में सौरभ द्विवेदी ने कथित तौर पर राहुल गाँधी के लिए ‘पप्पू’ शब्द का इस्तेमाल भी किया है। कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता पूजा त्रिपाठी ने ऐसे ही कुछ ट्वीट के स्क्रीनशॉट उठा कर ट्वीट किए और लिखा –
“आप जानते हैं कि यह ‘पप्पू’ नैरटिव कैसे स्थापित हुआ! यह कोई 2 रुपए के ट्रोल नहीं थे (वो इतने ताकतवर नहीं थे)। यह मीडिया था, पत्रकार इस प्रॉपगेंडा को मजबूत कर रहे थे! उन्होंने इसे जीवित रखा।सौरभ द्विवेदी के ऐसे ट्वीट देखकर निराशा होती है, शर्मनाक! इस भाषा से मुझे नफ़रत हो रही है!”
इन कुछ ट्वीट में सौरभ द्विवेदी ने ‘इंडियन यूथ कॉन्ग्रेस का एक ट्वीट शेयर करते हुए लिखा, “के नहीं कि। लिंग दोष दूर करें टीम पप्पू जी।”
एक अन्य ट्वीट में सौरभ द्विवेदी ने लिखा है, “गाँव में थे हम। 21 मई को जोर की आँधी चली। पप्पू भइया ने रेडियो पर संस्कृत न्यूज में राजू गांधी के मरने की खबर सुनी। सबको बताई #RajivGandhi”
सौरभ द्विवेदी के ऐसे ही कुछ ट्वीट ‘अनसीन इंडिया’ के संस्थापक (ट्विटर पर मौजूद जानकारी के अनुसार) उत्कर्ष सिंह ने भी ऐसे ही कुछ ट्वीट उठा कर लिखा है, “जो दिखता है, वो होता नहीं है और जो दिखाया जाता है वो तो बिलकुल नहीं होता। मीडिया इंडस्ट्री में बड़ा नाम और पहचान बनाने के लिए ये गुण होना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है।”
‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बीच ‘पप्पू’ का बचाव
सवाल यह है कि आख़िर ‘पप्पू’ शब्द की समीक्षा ऐसे समय पर क्यों अचानक से होने लगी जब राहुल गाँधी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पर निकले हैं? कहीं ऐसा तो नहीं है कि इस यात्रा के बहाने मीडिया संस्थानों को यह ज़िम्मेदारी दी गई हो कि राहुल गाँधी की छवि को सुधारने के क्रम में सबसे पहले ‘पप्पू’ शब्द का अस्तित्व सोशल मीडिया से हटा दिया जाए?
यह संदेह इस कारण पैदा होता है क्योंकि दस साल पुराने कुछ ट्वीट्स को अब सार्वजनिक किया जा रहा है और ‘द वायर’ जैसे कुछ प्रॉपगेंडा मीडिया चैनल्स के सम्पादक भी इसी ‘पप्पू’ शब्द से नाराज़ नज़र आए हैं।
प्रॉपगेंडा वेबसाइट ‘द वायर’ ने हाल ही में कुछ ऐसे लेख प्रकाशित किए हैं, जिनमें उन्हें राहुल गाँधी को ‘पप्पू’ कहे जाने पर नाराज़गी प्रकट की है।
‘द वायर’ ने ही अपने यूट्यूब चैनल पर कुछ वीडियो प्रकाशित किए हैं जिनमें ‘पप्पू’ शब्द पर पर्दा डालने का प्रयास किए गया, हालाँकि, यह दुर्भाग्यपूर्ण तरीक़े से उल्टे साबित हो रहे हैं। शायद यही वजह होगी कि सौरभ द्विवेदी के इन ट्वीट्स के सामने आने के बाद ‘द वायर’ अपने शीर्षकों से छेड़खानी करता प्रतीत हो रहा है।
फ़िलहाल, ‘द लल्लनटॉप’ या सौरभ द्विवेदी की ओर से इस पप्पू प्रकरण पर किसी भी प्रकार का कोई स्पष्टिकरण नहीं दिया गया है। भले ही कुछ लोग Congress के एक मीडिया संस्थान के सम्पादक के खिलाफ़ इस प्रकार के आक्रामक रवैए पर सवाल अवश्य उठा रहे हैं। इसमें एक सफ़ाई यह दी जा रही है कि सौरभ द्विवेदी द्वारा यह सभी ट्वीट उस समय किए गए थे जब वह ‘द लल्लनटॉप’ के सम्पादक नहीं थे।