ओटीटी का दौर है लेकिन एक समय टीवी को भी काफी दर्शक मिलते थे। टीवी पर एक चैनल से दूसरे चैनल महानायक अमिताभ बच्चन दौड़ते रहते थे। उनका एक विज्ञापन अब कहीं नज़र नहीं आता, जो वर्षों पहले काफी मशहूर था जिसमें वे भारत के लोगों को बताते थे कि शौच करने कहाँ जाना है।
किसी देश को ये समझने की आवश्यकता क्यों पड़ी कि गंदगी का स्थान कहाँ है ?
हाथ क्यों धोने चाहिए? स्वच्छता के क्या लाभ हैं?
स्वच्छता, एक ऐसा विषय जिसका उल्लेख प्राथमिक शिक्षा से लेकर वेदों की ऋचाओं तक में मिल जाता है। यहाँ तक कि ‘स्वच्छता आजादी से ज्यादा जरूरी है’ ऐसा गाँधी जी कहा करते थे। गाँधी जी के स्वच्छ भारत के सपने को एक नई किरण तब मिली जब 2 अक्टूबर 2014, उनकी 150 वीं जयंती पर लाल किले की प्राचीर से पीएम मोदी द्वारा एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन की शुरूआत की गई।
इस अभियान को शुरू हुए आज 8 वर्ष बीत गए हैं। इस स्वच्छता की आवश्यकता हम आज समझ रहे हैं लेकिन वर्ष 2014 से पहले स्थितियां अलग थी।
गाँधी जी जब कहते थे ”वह जो सचमुच में भीतर से स्वच्छ है, वह अस्वच्छ बनकर नहीं रह सकता” यह बात भारतीय परिपेक्ष्य में हास्यास्पद प्रतीत होती थी । 1947 से ही भारत में स्वच्छता के प्रति लोगों का रुख कुछ खास सकारात्मक नहीं रहा।
भारत सरकार की पहली पंचवर्षीय योजना के एक भाग के रूप में वर्ष 1954 में ग्रामीण भारत के लिए पहला स्वच्छता कार्यक्रम शुरू किया गया था। वर्ष 1988 की जनगणना में ग्रामीण भारत में स्वच्छता कवरेज मात्र 1% था।
अक्टूबर 2014 में जब यह स्वच्छ अभियान यात्रा शुरू हुई तब भारत में स्वच्छता का स्तर केवल 39% था। सड़क ,स्कूल-कॉलेज, बस स्टेशन ,रेलवे स्टेशन हर वो स्थान जो सार्वजनिक स्थलों की सूची में आता है बखूबी इस 39% के आंकड़े का समर्थन करता था।
130 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में यह अभियान मुश्किल इसलिए था क्यों कि असल में स्वच्छता की परिभाषा कभी स्पष्ट ही नहीं थी। क्या स्वच्छता सिर्फ बाहरी परिवेश में साफ़-सफाई को ही समझा जाए ? आंतरिक स्वच्छता का पहलू नगण्य था।
आंतरिक स्वच्छता की महत्ता को बापू ने 10 दिसंबर, 1925 के ‘यंग इंडिया’ के अंक में कुछ इस प्रकार रेखांकित किया था “आंतरिक स्वच्छता पहली वस्तु है, जिसे पढ़ाया जाना चाहिए,अन्य बातें प्रथम और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पाठ सम्पन्न होने के बाद लागू की जानी चाहिए ”।
गाँधी कहते हैं “एक पवित्र आत्मा के लिए एक स्वच्छ शरीर में रहना उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि किसी स्थान, शहर, राज्य और देश के लिए स्वच्छ रहना जरूरी होता है, ताकि इसमें रहने वाले लोग स्वच्छ और ईमानदार हों ”
इस विषय की मार्मिकता इस तथ्य से सामने आई जब 2014 में प्रधानमंत्री ने एक भाषण में साधारण महिलाओं की गरिमा के मुद्दे को, उनकी दुर्दशा से जोड़कर नागरिकों की अंतरात्मा का आह्वान किया।इसी भाव को लक्ष्य बनाते हुए केंद्र सरकार ने इस स्वच्छ्ता अभियान की शुरुआत की।
केंद्र ने इस मिशन को दो भागों में बांटा था।
पहले भाग में, स्वच्छ भारत ग्रामीण, जिसके तहत गांवों के हर घर में शौचालय बनाने और खुले में शौच मुक्त रखने का लक्ष्य रखा गया।
दूसरे भाग में, स्वच्छ भारत शहरी। इसमें घरों के अलावा सार्वजनिक स्थानों पर भी शौचालय बनाने का लक्ष्य था।
पीएम मोदी ने स्वयं झाड़ू उठाकर स्वच्छता अभियान को एक जन-आंदोलन का रूप देने का प्रयास किया। उन्होंने “न गंदगी करेंगे, न करने देंगे।” का मंत्र देकर नौ लोगों को स्वच्छता अभियान में शामिल होने के लिए भी आमंत्रित किया और उनमें से हर एक से यह अनुरोध किया वो अन्य नौ लोगों को इस पहल में शामिल होने के लिए प्रेरित करें।
अपने साथ अन्य को आगे बढ़ाने वाली इस पहल में गाँधी जी के विचार परिलक्षित होते दिख रहे थे। दरअसल ,महात्मा गांधी ने सदैव समग्र स्वच्छता की पैरोकारी की और सम्पूर्ण स्वच्छता के लिए इसे आवश्यक बताया। यही कारण है कि उन्होंने सिर्फ व्यक्तिगत स्वच्छता पर बल नहीं दिया, अपितु समग्र रूप से सामाजिक स्वच्छता पर विशेष बल दिया। कहा कि यदि कोई व्यक्ति अपनी स्वच्छता के साथ दूसरों की स्वच्छता के प्रति संवेदनशील नहीं है, तो ऐसी स्वच्छता बेईमानी है।
इस अभियान ने जोर पकड़ा और लोग स्वच्छता कार्यक्रमों से जुड़ने शुरू हुए। चौक-चौराहों पर स्वच्छता की बात होने लगी और मुहिम आगे बढ़नी लगी। सरकार ने इस बदलाव को ऐतिहासिक बनाने के प्रयास शुरू किये।
55 करोड़ लोग थे जो बिना शौचालय के जीवन व्यतीत कर रहे थे। महिलाएं ,बच्चे खुले में शौच के लिए मजबूर थे। स्वास्थ्य पर इसका दुष्परिणाम स्वाभाविक था। यही स्वच्छता की कमी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
इसी विषय पर सरकार ने सबसे अधिक फोकस किया ,स्वच्छ भारत मिशन ने केवल 5 वर्षों की छोटी सी यात्रा में ही बड़ा लक्ष्य हासिल कर लिया था। वर्ष 2019 में , प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को ‘खुले में शौच मुक्त’ घोषित किया और बताया कि अब 100 प्रतिशत घरों में शौचालय का निर्माण किया जा चुका है।

व्यक्तिगत रूप से हम स्वच्छता की ओर बढ़ रहे थे लेकिन सामूहिक तौर पर एक पूरे समाज के लिए मिलकर कदम उठाना आवश्यक था।
घर साफ़ थे लेकिन शहरों की स्थिति में अधिक बदलाव नहीं था।
इस संदर्भ में 25 अप्रैल, 1929 के यंग इंडिया के अंक में बापू की यह टिप्पणी अत्यंत महत्वपूर्ण है —“हम अपने घरों से गंदगी हटाने में विश्वास करते हैं, परन्तु हम समाज की परवाह किए बगैर इसे गली में फेंकने में भी विश्वास करते हैं। हम व्यक्तिगत रूप से साफ सुथरे रहते हैं, परन्तु राष्ट्र के, समाज के सदस्य के तौर पर नहीं, जिसमें कोई व्यक्ति एक छोटा-सा अंश होता है।
जब हम कूड़े से भरा थैला अपने दरवाजे या खिड़की से फेंकते हैं, हम खुश हो सकते हैं कि हमारा घर साफ है, परन्तु हमारा आस-पड़ोस भी हमारी बस्ती का ही हिस्सा है और यदि कोई जान-बूझकर इसे गंदा करने का काम करता है, तो पूरा परिसर गंदगी का ढेर हो जाएगा, क्योंकि किसी बस्ती में रहने वाला हर व्यक्ति एक ही तरह से व्यवहार करता है और उसे इस बात की कोई चिन्ता नहीं होती कि वह अपने पड़ोस, समुदाय और शहर को किस प्रकार गंदा कर रहा है।”
इसी सामूहिकता के ध्येय को प्राप्त करने के लिए जनवरी 2016 में शुरू किया गया – ‘स्वच्छ सर्वेक्षण अभियान’। जो दो भागों में बांटा गया।
स्वच्छ सर्वेक्षण शहरी, जिसमें भारत के 73 प्रमुख शहरों में स्वच्छता और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन स्थिति का आकलन करने के लिए सर्वे शुरू किया गया।
दूसरा, स्वच्छता सर्वेक्षण ग्रामीण, जिसमें पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय मई 2016 में शुरू किए गए ग्रामीण स्वच्छ सर्वेक्षण में 22 पहाड़ी जिलों और 53 मैदानी जिलों को शामिल किया गया था।
ये अभियान सिर्फ भू-भाग तक सीमित नहीं रहा।
असल में, सनातन धर्म में पावन कहलाने वाली नदियां लम्बे समय से प्रदूषण का दंश झेल रही थी।
बापू ने भी बहुत पहले ही इस बारे में आगाह करते हुए कहा था,
“नदियां हमारे देश की नाड़ियों की तरह हैं और हमारी सभ्यता हमारी नदियों की स्थिति पर निर्भर है। यदि हम उन्हें गंदा करना जारी रखेंगे, जिस तरह से हम कर रहे हैं, वह दिन दूर नहीं, जब हमारी नदियां जहरीली हो जाएंगी और यदि ऐसा हुआ तो हमारी सभ्यता नष्ट हो जाएगी’’
इस सोच को कार्यान्वित करने के लिए सरकार ने गंगा नदी के प्रदूषण को समाप्त करने और नदी को पुनर्जीवित करने के लिए ‘नमामि गंगे’ नामक एक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन का शुभारंभ किया। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नदी की सफाई के लिए बजट को चार गुना करते हुए पर 2019-2020 तक नदी की सफाई पर 20,000 करोड़ रुपए खर्च करने की केंद्र की प्रस्तावित कार्य योजना को मंजूरी दी।
8 वर्ष पूर्ण कर चुके इस स्वच्छता अभियान के सफर में कईं प्रेरक किस्से भी सामने आये।
जब 15 साल की स्कूली लड़की ने अपने घर में शौचालय की माँग के लिए 48 घंटे की भूख हड़ताल की, उनकी यह पहल कर्नाटक के सिरुगुप्पा तालुक में बड़े बदलाव का कारण बना।
ऐसे ही, छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के कोताभरी गाँव की 104 वर्षीय कुंवर बाई जिन्होंने अपने घर पर शौचालय बनाने के लिए अपनी बकरियाँ बेच दीं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विशेष सराहना करते हुए कहा कि यह बदलते भारत का एक बड़ा संकेत है। पीएम ने बूढ़ी महिला कुंवर बाई के पैर भी छुए।

देश के ऐसे ही कई साधारण लोगों ने इस स्वच्छता आंदोलन को राष्ट्रव्यापी बनाया था। शायद इसलिए महात्मा गाँधी ने कहा था, “असली भारत उसके गाँव में बसता है”।
स्वच्छता में एक कदम आगे बढ़कर भारतीयों ने महामारी का सामना बखूबी किया लेकिन वैश्विक प्रतिस्पर्धा के इस सफर में अभी कई मील चलने बाकी हैं। ये शायद महात्मा गाँधी के उस विचार को अपनाने से आसान हो जाएगा जब वे कहते हैं “वो बदलाव बनिए जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं”।