चर्च में (05 मार्च, 2012) को अचानक हलचल मच गई। ये मामला था मुंबई का, आज ‘वीपिंग क्रूसीफिक्स’ कहलाने वाला ‘आवर लेडी ऑफ वेलानकन्नी’ नाम के चर्च के पास स्थित ये एक मूर्ति थी। कथित रूप से लकड़ी की बनी इस मूर्ति की आँखों से पाँच मार्च 2012 को अचानक पानी (आँसू) टपकने लगे, जिसकी सूचना किसी स्त्री ने नजदीकी चर्च और पादरियों को दी।
जाहिर है, इसके बाद कई लोग वहाँ जाकर मामले की सच्चाई देखने पहुँचे। मूर्ति की आँखों से सचमुच आँसू टपकते लग रहे थे। भीड़ जुटने लगी। इसे चमत्कार बताया जाने लगा। ईसाइयों में ‘चमत्कार को नमस्कार’ की पुरानी परंपरा है और तथाकथित ‘संत’ इसी आधार पर घोषित होते हैं कि उन्होंने कितने ‘चमत्कार’ किए हैं।
फिर जैसा कि होना ही था, सभी को इस ‘चमत्कार’ पर विश्वास नहीं हुआ। TV9 नाम के न्यूज चैनल ने इसकी जाँच की। उन्हें शक हुआ तो उन्होंने ‘द रेशनलिस्ट’ नाम की पत्रिका चलाने वाले सनल एडामरुकू को जाँच करने के लिए कहा। सनल एक इंजीनियर के साथ वहाँ पहुंचे और जाँच में पाया गया कि पाइप से सीवेज का पानी लीक कर रहा था। प्लंबिंग में कुछ खराब हो गया था और उसी वजह से गन्दा पानी था, जोकि बहकर आता हुआ, जीजस के आँसुओं का भ्रम पैदा कर रहा था। ये जो चमत्कार था, ये जैसे 05 मार्च को शुरू हुआ था, वैसे ही 08 मार्च, 2012 को बंद भी हो गया। मगर कहानी यहीं समाप्त नहीं होती। असली कहानी यहीं से शुरू होती है।
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सनल ने एक टीवी इंटरव्यू के दौरान ये खुलासा कर दिया कि ईसाई अक्सर ऐसी धोखाधड़ी, ऐसे अंधविश्वासों का प्रयोग धर्म परिवर्तन करवाने के लिए करते रहते हैं। इससे मिले पैसे से वो बड़े और नए चर्च बनाते हैं, नए कॉन्वेंट बनाते हैं। इसके अलावा उन्होंने बताया कि पोप कितने विज्ञान विरोधी हैं। वैसे भी सबको पता ही है कि चर्च ने कोपरनिकस, गलीलियो या डार्विन जैसों के साथ कैसा सलूक किया था या जोन ऑफ आर्क को कैसे डायन बताकर जीवित ही जला दिया गया था।
इस पर एक कैथोलिक वकील ने सनल को माफी माँगने कहा और सनल ने माफी माँगने से भी इनकार कर दिया। नतीजा ये हुआ कि ‘कैथोलिक सेक्युलर फोरम’ नाम के एक संगठन ने आईपीसी की धारा 295 (ए) के तहत सनल पर अप्रैल 2012 में मुकदमे करने शुरू किए। एक-एक करके अलग-अलग जगहों से सनल पर 17 एफआईआर दर्ज हुई।
एक ‘आल इंडिया कैथोलिक यूनियन’ थी, जिसने कहा कि कानून का सही प्रयोग नहीं हो रहा। इण्डिया सेण्टर फॉर ह्यूमन राइट्स एंड लॉ के कोलिन गोंजाल्विस ने भी कहा कि सनल ने कोई अपराध नहीं किया है। वैसे भी मुकदमे हटाए बिना खाली बतोलेबाजी से क्या होना था? आईपीसी 295 (ए) के सत्रह एफआईआर तो हटे नहीं थे और इस धारा में चार साल तक की कैद या जुर्माना या फिर दोनों हो ही सकते थे। मुंबई के कैथोलिक आर्चबिशप की ओर से सनल से माफी माँगने को कहा गया और मुकदमा करने वालों से भी मुकदमा वापस लेने का निवेदन किया गया। काफी समय बाद तक, 2014 में भी, ‘कैथोलिक सेक्युलर फोरम’ मुकदमा वापस लेने को तैयार नहीं थी। सनल 31 जुलाई, 2012 को फ़िनलैंड चले गए और भारत वापस नहीं आए। यह कुछ-कुछ वैसा ही था जैसा एक कुख्यात पेंटर के कहीं दुबई-कतर चले जाने के मामले में हुआ था, वैसा कोई शोर इस मामले पर नहीं मचा था, इसलिए सनल एडामरुकू का नाम किसी को याद नहीं आता।
जिस किस्म की बातें ईसाइयों के बारे में सनल कर रहे थे, वो कोई पहली बार नहीं की गई थी। अगर कैथरीन निक्सी की लिखी ‘द डार्कनिंग एज: द क्रिस्चियन डिस्ट्रक्शन ऑफ द क्लासिकल वर्ल्ड’ जैसी किताबें देखें, तो ईसाइयों के इतिहास में धोखे या बलप्रयोग से सभ्यताओं को नष्ट करने के कई आरोप बनते हैं। कुछ इसी तरह सनल एडामरुकू लम्बे समय तक ‘संत’ घोषित करने के लिए चर्च द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया पर बोलते रहे थे। अपनी जाँच में उन्होंने पाया कि मोनिका बेसरा पर हुए जिस चमत्कार के आधार पर टेरेसा को संत बताया जाता है, वो तो असल में बुलुरघट के सरकारी अस्पताल और नार्थ बंगाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हुए इलाज का नतीजा था। बंगाल के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री पार्थो डे भी यही बात बता चुके हैं। सनल तो टेरेसा को सीधे-सीधे ‘फ्रॉड’ यानी धोखाधड़ी का मामला बताते रहे।
इसका नतीजा ये हुआ कि सनल को भारत छोड़ना पड़ा। यहाँ गौर करने लायक ये भी है कि सनल ने एक हिन्दू तांत्रिक को इंडिया टीवी पर एक कार्यक्रम में धोखाधड़ी करने वाला बताया था। इसके लिए उन पर कोई मुकदमा नहीं हुआ था। भारत के दूसरे दर्जे के नागरिक, यानी हिन्दुओं के लिए शायद आईपीसी की धारा 295 (ए) वाला ‘ईश निंदा कानून’ नहीं होता।
हाँ, ये जरूर है कि इतना कुछ होते रहने पर भी हिन्दुओं को ही भारत में असहिष्णु भी बताया जाता है। अभी जब बागेश्वर धाम विवादों के घेरे में है तो एक बार सनल एडामरुकू का नाम भी याद किया ही जाना चाहिए। जिस मजहबी असहिष्णुता के लिए दूसरे मजहब-रिलिजन जिम्मेदार हैं, उसका आरोप हिन्दुओं के सर कैसे थोपा जाता है, कम से कम ये तो याद रहे।
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